महिला संत राबिया अपने पूजा स्थल पर एक जल कलश रखती थी और एक जलता अंगारा।
लोग इन पूजा−प्रतीकों का रहस्य पूछते, तो वे कहतीं, मैं अपनी आकाँक्षाओं को पानी में डुबाना चाहती हूँ और अहंकार को जलाना चाहती हूँ, ताकि पतन के इन दोनों अवरोधों से पीछा छुड़ाकर प्रियतम तक पहुँच सकूँ।
किसी ने कहा, आप तो संत हैं, सिद्ध हैं, आप में अब दोष कहाँ रह गए, जिन्हें डुबाना−जलाना चाहती हैं। राबिया बोलीं, जिस दिन अपने आपको त्रुटिहीन मान लूँगी, उस दिन संत तो क्या, इंसान भी न रह जाऊँगी।
गुरुपूर्णिमा विशेष−2