विध सभा की यज्ञोपचार प्रक्रिया

October 2001

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पहले के लेखों में बताया जा चुका है कि विशेष प्रकार से तैयार की गई औषधीय हवन सामग्री से नित्य−नियमित रूप से सूर्य गायत्री मंत्र द्वारा हवन करने से सभी प्रकार की शारीरिक एवं मानसिक आधि−व्याधियों से छुटकारा पाया जा सकता है। जिन स्थानों पर प्रतिदिन हवन या अग्निहोत्र होता है, वहाँ रोग उत्पन्न करने वाले रोगाणु−विषाणु पनपने ही नहीं पाते। यदि दूषित वातावरण या गंदगी अथवा संक्रमण के कारण फैल भी गए, तो यज्ञीय ऊर्जा के प्रभाव से वहाँ पर अधिक दिनों तक वे टिक नहीं पाते। यज्ञीय ऊर्जा केवल रोगाणुओं का ही शमन नहीं करती, वरन् वातावरण को सुगंधित बनाने, प्राणपर्जन्य उत्पन्न करने एवं पुष्टि प्रदान करने की महत्त्वपूर्ण भूमिका भी संपन्न करती है। इसका प्रमुख कारण यह है कि हवन में जो पदार्थ डाले जाते हैं, वे वस्तुतः चार प्रकार के होते हैं, (1) पुष्टिकारक (2) रोगनाशक (3) सुगंधित और (4) मिष्ट। इनमें से मिष्ट और पुष्टिकारक औषधियों के सूक्ष्म परमाणु यज्ञाग्नि में पड़कर वायुभूत होकर पुष्टि−पोषण प्रदान करते हैं और सुगंधित औषधियाँ चित्त को प्रसन्न करती हैं। चिरायता, बच, गूगल, नीम, नागरमोथा, लौंग, जायफल, जावित्री, अपराजिता, कालमेघ, अगर, चंदन आदि के रोगनाशक परमाणु जीवाणुओं−विषाणुओं को नष्ट करते एवं रक्तशोधन कर जीवनीशक्ति का अभिवर्द्धन करते हैं।

पिछले अंकों में संक्रामक रोग, क्षय या राजयक्ष्मा के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया कि यज्ञ चिकित्सा द्वारा इस प्राणघातक बीमारी से किस तरह बचा जा सकता है। यहाँ इन पृष्ठों में चेचक, खसरा (मीजल्स) एवं प्लेग के अतिरिक्त अन्यान्य रोगों की विशिष्ट यज्ञोपचार प्रक्रिया का वर्णन किया जा सकता है।

खसरा एवं चेचक की विशेष हवन सामग्री :— ये दोनों बीमारियाँ प्रायः गंदगी के कारण फैलती हैं। बच्चों एवं महिलाओं पर इसका प्रकोप ज्यादा पाया जाता है। संक्रामक होने के कारण यह एक व्यक्ति से दूसरे तक शीघ्र फैलती हैं। मलिन बस्तियाँ में इसका प्रसार अधिकतर देखा जाता है। इससे बचने के लिए पहले से ही तथा रोगोत्पत्ति के समय या बाद में नीचे लिखी गई औषधियों से बनाई गई विशेष हवन सामग्री से रोगी के निकट अथवा रोगी के कमरे में नित्य हवन करने से न केवल चेचक एवं खसरे के प्रकोप को रोका जा सकता है, वरन् इसे पूरी तरह समूल नष्ट किया जा सकता है।

चेचक की विशिष्ट हवन सामग्री में प्रयुक्त होने वाली औषधियाँ इस प्रकार हैं—

मेहँदी की जड़ (2) नीम की छाल (3) हल्दी (4) पटोल पत्र (5) श्योनाक (6) टीक अर्थात् सागौन के फल (7) कलौंजी (प्याज के बीज) (8) जावित्री (9) बाँस की छाल (10) खैर की छाल (11) धमासा (12) धनिया (13) चौलाई की जड़ (14) गिलोय (15) तुलसी पत्र (16) बच (17) ब्राह्मी (18) हुलहुल (19) नागरमोथा (20) सारिवा (21) पाढ़ (22) कुटकी (23) खिरैंटी (24) खस (25) वासा−अडूसा (26) चिरायता (27) पित्त पापड़ा (28) चंदन (29) जायफल (30) दाख।

उपर्युक्त सभी 30 चीजों को बराबर मात्रा में लेकर कूट−पीसकर जौकुट पाउडर बना लेना चाहिए और उससे हवन करना चाहिए। इसी जौकुट पाउडर की कुछ मात्रा को खूब महीन पीसकर कपड़छन कर लेना चाहिए और सुबह−शाम एक−एक चम्मच जल के साथ रोगी व्यक्ति को खिलाते रहना चाहिए। चूर्ण रूप में यदि न देना चाहें तो इसे क्वाथ रूप में भी दे सकते हैं। 6-7 चम्मच चूर्ण को आधा लीटर पानी में मंद आँच में उबलने देना चाहिए और जब क्वाथ चौथाई रह जाए, तो उसे छानकर ठंडा होने पर रोगी को सुबह−शाम पिलाते रहने से वह जल्दी स्वस्थ होता है।

किसी भी व्यक्ति की किसी बीमारी की यज्ञ चिकित्सा करते समय इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए कि हवन करते समय रोग विशेष के लिए बनाई गई हवन सामग्री में अखण्ड ज्योति के विगत अंकों में वर्णित काँमन हवन सामग्री नंबर 1 को भी बराबर मात्रा में मिला लेना चाहिए। हवन का प्रभावी लाभ तभी मिलता है। इस काँमन हवन सामग्री में जो चीजें मिलाई जाती हैं, वे हैं—

अगर (2) तगर (3) देवदार (4) चंदन (5) लालचंदन (6) जायफल (7) लौंग (8) गूगल (9) चिरायता (10) गिलोय और (11) अश्वगंधा। खाने वाले पाउडर में इन्हें नहीं मिलाया जाता, इसलिए हवन करने से पूर्व ही रोग विशेष की हवन सामग्री की कुछ मात्रा कपड़छन करके अलग डिब्बे में रख लेते हैं। वन करने का मंत्र सूर्य गायत्री मंत्र ही रहेगा, अर्थात् “ॐ भूर्भुवः स्वः भास्कराय विद्महे दिवाकराया धीमहि तन्नः सूर्यो प्रचोदयात्।” यही सूर्य गायत्री मंत्र है।

हवन सामग्री बनाते समय पूर्वोक्त 30 औषधियों में से यदि सभी उपलब्ध नहीं हो पातीं, तो ऐसी स्थिति में जितनी भी चीजें आसानी से मिल जाती हैं, उन्हें ही जौकुट करके हवन चिकित्सा आरंभ कर देनी चाहिए। जो औषधियाँ अधिक महँगी हों, उनकी मात्रा कम की जा सकती है तथा उनकी भरपाई अन्य निर्धारित औषधियों की मात्रा बढ़ाकर की जा सकती है। जहाँ तक हो सके, हवन के लिए समिधा चीड़, सागौन, आम व देवदार में से किसी एक की उपयोग में लानी चाहिए। नीम व सिरस का प्रयोग सभी कार्यों में किया जा सकता है। नीम की पत्तियाँ द्वार पर टाँगी जा सकती हैं। इससे संक्रमण फैलने नहीं पाता।

खसरे एवं चेचक को फैलाने से रोकने के लिए यदि उपर्युक्त हवन सामग्री न जुटाई जा सके तो निम्नलिखित चीजों को मिलाकर भी हवन किया जा सकता है।—

(1) गूगल (2) सूखे अर्क पत्र (3) काला तिल (4) शक्कर और (5) घी।

इस संदर्भ में शास्त्र कहते हैं—

मधुत्रितयहोमेन नयेच्छान्तिं मसूरिकाम्। कपिलासर्पिषाहुत्वा नयेच्छान्तिं मसूरिकाम्। —देवीभागवत् 11/24/29/30

अर्थात् त्रिमधु− दूध, दही और घी का हवन करने से मसूरिका चेचक रोग को शाँति किया जा सकता है। इसी तरह अकेले कपिला गाय के घी से हवन करके भी चेचक रोग को ठीक किया जा सकता है। बड़−बरगद, मंजीठ, सिरस एवं गूलर की छाल को पीसकर घी मिलाकर लेप करने से भी चेचक के दाने जल्दी सूख जाते हैं और जलन शाँत हो जाती हैं।

प्लेग की विशिष्ट हवन सामग्री

यों तो ‘प्लेग‘ नामक महामारी को चिकित्सकीय प्रयासों के कारण समाप्तप्रायः मान लिया गया है, लेकिन कभी−कभी चूहों में पाए जाने वाले एक विशेष प्रकार के पिस्सुओं के कारण फैलने वाली यह प्राणघातक महामारी देखते−ही−देखते बहुत बड़ी आबादी को अपने चपेट में ले लेती हैं। पिछले दिनों सन् 1994 में गुजरात के सूरत जिले व विस्तार में व्यापक पैमाने पर प्लेग फैला था। ऐसी स्थिति में एंटीबायोटिक दवाओं के अभाव में अधिकाँश संक्रमित व्यक्ति काल के ग्रास बनने लगते हैं। इन परिस्थितियों में जगह−जगह पर व्यापक पैमाने पर हवन करने से रोग के प्रसार को रोका जा सकता है और रोगग्रस्त व्यक्तियों को यज्ञोपचार के माध्यम से स्वस्थ किया जा सकता है।

प्लेग के लिए यज्ञोपचार में प्रयुक्त होने वाली विशिष्ट हवन सामग्री में जो औषधियाँ मिलाई जाती हैं, वे इस प्रकार हैं—(1) कुटकी 100 ग्राम (2) असगंध 200 ग्राम (3) चिरायता 100 ग्राम (4) गिलोय 100 ग्राम (5) कालमेघ 100 ग्राम (6) अपराजिता 200 ग्राम (7) नीमपत्र या नीम की छाल 100 ग्राम (8) बच 200 ग्राम (9) नागर मोथा 200 ग्राम (10) गूगल 200 ग्राम (11) लाल चंदन 100 ग्राम।

इन ग्यारह चीजों को मिलाकर जौकुट रूप में जो हवन सामग्री बनाई जाती है, उसी में से कुछ हिस्सा बारीक कपड़छन करके अलग डिब्बे में रख लेना चाहिए और रोगी व्यक्ति को सुबह−शाम एक−एक चम्मच शहर के साथ खिलाते रहना चाहिए।

हवन करते समय चेचक की विशिष्ट हवन सामग्री प्रकरण में बताई गई, ‘काँमन हवन सामग्री (नं. 1) को बराबर मात्रा में मिला लेना चाहिए। साथ ही इसमें घी 100 ग्राम, शक्कर 100 ग्राम और काला तिल 100 ग्राम अतिरिक्त रूप में मिलाकर तब हवन करना चाहिए।

प्लेग के कारण शरीर पर उभरी हुई गाँठों पर असगंध, जिसे गुजराती में ‘घोड़ाकुन’ और दक्षिण में ढोरगुँज’ तथा गोवा में ‘पत्थर फोड़ी’ कहते हैं एवं जिसका वानस्पतिक नाम ‘विथेनिया सोमनिफेरा’ है, इसकी ताजी या सूखी जड़ को पानी में घिसकर चंदन की तरह लेप करने से गाँठें सूख जाती हैं। इसके साथ ही सूजन वाले स्थान पर इसे लेप करने से सूजन एक जगह इकट्ठी हो जाती है और रोगी को आराम मिलता है। बराबर लेप करते रहने पर गाँठ पककर अंत में फूट जाती हैं। ऐसी स्थिति में गाँठ के मुँह पर गेहूँ के आटे की पुल्टिस बाँधने और आस−पास असगंध की जड़ का लेप लगाते रहने से सारा मवाद बाहर आज जाता है और रोगी व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है। अंत में गाँठ के मुँह पर कोई भी एण्टीबायोटिक क्रीम, गाय का शुद्ध घी या मात्र पेट्रोलियम जेली मलहम लगाते रहने पर यह घाव पूरी तरह भर जाता है।


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