गुलाब से मधुमक्खी बोली, “तुम जानते हो कि एक−एक करके तुम्हारे सब पुष्प तोड़ लिए जाते हैं, फिर भी तुम पुष्प उत्पन्न करना बंद क्यों नहीं करते?” गुलाब ने हँसकर कहा, “देवि! मनुष्य क्या करता है, यह देखकर संसार को सुँदर बनाने के कर्तव्य से मैं क्यों गिरूँ?”
“बहन, फूल टूटने का दुःख कम है, दूसरों को प्रसन्नता बाँटने का संतोष अधिक महत्त्व का है।”