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October 2001

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हे सत्य! हे मेरी अंतरात्मा के बीच निवास करने वाले अंतर्निहित सत्य!! सब कुछ आप ही हैं। इस आत्मा में जो आप हैं, इसलिए फिर देश−काल, गंभीरता−निविडता की कोई सीमा नहीं। यह आत्मा अनंतकाल तक रहने वाला है। सत्यम् मंत्र इसका द्योतक है। आप हैं और केवल आप ही हैं। आत्मा की अतल−स्पर्श गंभीरता से यह मंत्र निकला है, मानों वह हमारे मन एवं संसार के अन्यान्य समस्त शब्दों को अपने में भरकर सबके ऊपर प्रकाशमान है। सत्यम् सत्यम्। उसी सत्य में मुझे पहुँचा दीजिए, हमारी उसी अंतरात्मा के गूढ़तम अनंत सत्य में, जहाँ ‘आप’ हैं और कोई भी नहीं।


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