यतो धर्मस्ततो जयः (Kahani)

October 2001

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महाभारत का घमासान युद्ध चल रहा था। दोनों पक्षों के असंख्य योद्धा घायल होते और मध्य रात्रि को युद्ध बंद करने का नियम था। अँधेरे होते ही युधिष्ठिर वेष बदलकर निकलते और दोनों पक्ष के घायलों को चिकित्सालय पहुँचाने से लेकर पानी पिलाने जैसे उपचार में लगे रहते, दिन निकलने से पूर्व घर लौट आते।

युद्ध समाप्त होने पर उनकी सेवा−सद्भावना का भेद खुला तो प्रजा ने उन्हें धर्मराज की उपाधि दी। उनमें अपने−पराये में भेद न था। इस धर्मपरायणता को अपनाने के कारण ही शक्ति की दृष्टि से हलका पड़ने वाला पाँडव पक्ष जीता और “यतो धर्मस्ततो जयः” का उद्घोष गूँजा।


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