बात उन दिनों की है जब अमेरिका में अब्राहम लिंकन राष्ट्रपति पद पर सुशोभित थे। उनके मित्रों ने एक सभा का आयोजन किया था, जिसमें लिंकन महोद को पहुँचना था। सभास्थल की ओर जा रहे थे कि अचानक उनकी दृष्टि गड्ढे की ओर गई, जिसमें एक सुअर का पिल्ला कीचड़ में फंसा निकलने का असफल प्रयास करता तड़प रहा था। वे तुरंत बग्घी से नीचे आए। गड्ढे में उतरे, कीचड़ तक गए और उस पिल्ले को बाहर निकाला। इस बीच कपड़े कीचड़ से सन गए थे, जिसकी उन्हें कोई परवाह नहीं थी।
सभा का समय भी हुआ जा रहा था। वे हाथ−पाँव धोकर सभा में विराजमान हुए। सबकी निगाहें उनके कपड़ों की ओर थीं और प्रश्नभरी जिज्ञासा और कुतूहल भी। सबकी जिज्ञासा को शाँत करते हुए लिंकन महोदय ने सहज भाव से मंच पर अपने भाषण में कहा, “वास्तव में पिल्ला तड़प रहा था इसलिए उसे बाहर नहीं निकाला, वरन् उसे तड़पते देखकर मेरा स्वयं का अंतःकरण तड़पने लगा था। अतः उसके लिए नहीं, बल्कि मैं अपने लिए गड्ढे में गया और उसे बाहर निकाल कर लाया।”