सत्यं, शिवं, सुंदरम्, का शंखनाद करती पत्रकारिता

October 2001

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समय और समाज के संदर्भ में सजग रहकर नागरिकों के दायित्व बोध कराने की कला ही पत्रकारिता है। पत्रकारिता गीता की शुभ दृष्टि तथा गाँधी की समदृष्टि द्वारा व्यवहृत होती है। समान हित में सम्यक् प्रकाशन को पत्रकारिता कहते हैं। पत्रकारिता समाज को नवीन दिशा प्रदान करती हैं। इसने भारतीय स्वतंत्रता आँदोलन में त्याग और बलिदान का प्रखर स्वर फूँका। क्राँति की चिंगारी दावानल बनकर भड़क उठी। इसके पश्चात् देश के सामाजिक विकास; राजनैतिक स्थिरता, धार्मिक प्रखरता एवं अनगिनत आयामों में कई प्रकार का योगदान दिया। असत्य, अशिव और असुन्दर पर सत्यं,शिवं सुंदरम् का पावन शंखनाद ही पत्रकारिता है।

पत्रकारिता के विषय में अनेकों विद्वानों ने अपना आशय प्रकट किया है। श्रीरामकृष्ण रघुनाथ खडिलाकर ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘आधुनिक पत्रकला‘ में स्पष्ट किया है कि ज्ञान और विचार का शब्दों तथा चित्रों के रूप में प्रचार-प्रसार ही पत्र कला है। बाद में इसका दायरा बढ़ गया। पत्रकारिता अंग्रेजी के जर्नलिज्म शब्द से प्रयुक्त होता है। इसका शाब्दिक अर्थ है दैनिक। 17 वीं एवं 18 वीं शताब्दी में इसके लिए लेटिन शब्द डियुरनल और जर्नल शब्दों का प्रयोग हुआ। 20 वीं सदी में इसके अंतर्गत गंभीर समालोचना और विस्तारपूर्ण प्रकाशन का समावेश किया गया। एनसाइक्लोपीडिया ऑफ ब्रिटेनिका इसे समाचारों का संकलन, प्रसार, विज्ञापन की कला एवं पत्र का व्यावसायिक संगठन मानता है। इसमें समसामयिक गतिविधियों के संचार से सम्बन्धित सभी साधन चाहे वे रेडियो हो या टेलीविजन समाहित है।

जैसे-जैसे जीवन की विविधता और नूतन साधनाओं का विकास हुआ पत्रकारिता का दायरा भी बहुआयामी होता गया। इसका विविध आयामी स्वरूप झलकने लगा। इसके पश्चात् पत्रकारिता इन रूपों में आने लगी- अनुसंधानात्मक पत्रकारिता आर्थिक, ग्रामीण, व्याख्यात्मक, विकास, संदर्भ, संसदीय, खेल वृत्तांत, रेडियो, टेलीविजन, फोटो, सर्वोदय पत्रकारिता। हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास को झाँकने पर स्पष्ट होता है कि यह मुख्य रूप से तीन कालखण्डों में विभक्त हुई हैं-

1.उद्भव काल (उद्बोधन काल)-1826-84

2.विकास काल

(क) स्वातंत्र्य पूर्वकाल-1. जागरण काल (1885-1919)

2. क्रान्ति काल (1920-1947)

(ख) स्वातंत्र्योत्तर काल-नवनिर्माण काल (1948-74)

3.वर्तमान काल (बहुद्देशीय काल) 1975 से अब तक

परन्तु पत्रकारिता का इतिहास इससे भी प्राचीन है। आरम्भ में संत, फकीर, सूत, मागध, भाट और चारण आदि को पत्रकारों की श्रेणी में रखा जा सकता है। महर्षि नारद तो पत्रकारों के आदि पुरुष थे। कई विद्वानों ने पवन पुत्र हनुमान को पत्रकारों का अग्रज घोषित किया है। महाभारत के युद्ध में संजय की रिपोर्टिंग कुशल पत्रकार का परिचय है।

ईसा पूर्व पाँचवीं शताब्दी में रोम में संवाद लिखे जाते थे। ईस्वी पूर्व 60 में रोमन साम्राज्य में जूलियर सीजर के हस्तलिखित तीन पत्र प्राप्त हुए हैं-एकता डायनी, एकता सिनेट्स तथा एकता पब्लिक। इससे राज्य प्रशासन की गतिविधियाँ छापी जाती थीं। प्राचीन समय में शिलाखण्डों, स्तम्भों अथवा मंदिरों में घोषणाएँ खुदवाई जाती थीं। अशोक के शिलालेख समाचार पत्रों का प्रारंभिक सोपान है। महान् राजनीतिज्ञ चाणक्य ने राजा चंद्रगुप्त को पटु गुप्तचरों की नियुक्ति की सलाह दी थी। आइने ए अकबरी में अबुल फजल ने उद्धृत किया है कि एक न्यूज लेटर संस्था मुगल राजाओं से पूर्व ही भारत में स्थापित थी। हर जिले में न्यूज राइटर होते थे। यह प्रथा मुगल सम्राट् औरंगजेब के समय में और भी विस्तृत और व्यवस्थित हुई। उस समय वाकयानवीस (संवाद लेखक), खुफियानवीस (गुप्त लेखक) और सवानहनवीस (जीवनी लेखक) प्रचलित थे। समाचार प्रेषक का कार्य धावकों, कारवाँ उवं हरकारों द्वारा होता था। बहादुरशाह के कार्यकाल में सिराजउल अखबार हस्तलिखित निकला। मान्यता है कि अवध के सुलतान ने 660 अखबारनवीसों की नियुक्ति की थी।

आधुनिक पत्र एकता डिअर्ना तथा चीन के पीकिंग गजट से पत्रकारिता का प्रारंभ माना जाता है। समाचार पत्रों की शुरुआती स्वरूप नीदरलैंड के न्यूजाइटुँग (1526) में मिलता है। सन् 1615 में जर्मनी में फैंकफुटैर जर्नल, 1631 में फ्राँस से गजट द फ्राँस, 1667 ई. में बेल्जियम से गजट बैन गाट, 1666 ई. में इंग्लैंड से लनुन गजट और 1690 में संयुक्त राष्ट्र अमेरिका से पब्लिक आँकरेन्सेज का प्रकाशन हुआ। भारत के गोवा में 1550 में मुम्बई से 1662 में, 1772 में मद्रास तथा कलकत्ता में 1779 उसे पत्रकारिता का प्रादुर्भाव हुआ। हिकीज गजट (1780), बंगाल जर्नल (1784) और इण्डियन वर्ल्ड (1791) कलकत्ता से प्रकाशित हुआ।

भारतीय पत्रकारिता को सम्यक् रूप से प्रारंभ करने वाले राष्ट्रीय नवजागरण के पुरोधा राजा राममोहनराय थे। इन्होंने ब्रह्मनिकल मैगज़ीन का प्रारंभ किया। दिसम्बर 1821 में सती प्रथा का विरोध और स्त्री शिक्षा के प्रसार के लिए बंगला साप्ताहिक ‘संवाद कौमुदी’ को निकाला। इसके अधिक व्यापकता के लिए उन्होंने फारसी में ‘मिराज उल अखबार’ का भी प्रकाशन किया। 30 मई 1926 को उदन्त मार्तण्ड के रूप में हिन्दी पत्रकारिता का उद्भव हुआ। इसके अग्रदूत थे हिन्दी पत्रकारिता के मनु पं. युगलकिशोर सुकुल। इसके बाद राजाराममोहन राय, केशवचंद्र सेन, बहादुरशाह जफर, स्वामी दयानंद सरस्वती के नेतृत्व में पत्रकार दल गठित हुआ। इसका मुख्य उद्देश्य था भारतीय दुर्दशा को रेखाँकित करना। पत्रकारों ने प्रेस अधिनियम 1857 और ग्रेटिंग प्रेस एक्ट 1878 जैसे काले कानूनों की परवाह नहीं की।

सन् 1826 से 84 की अवधि में पत्रकारिता ने नूतन ज्ञान और विचार के प्रचार करने के साथ भारतीयों में स्वाभिमान का संचार किया। इसे उद्भव या उद्बोधन काल भी कहा जाता है। उदन्त मार्तण्ड, बंग दूत, समाचार सुधावर्षण, बनारस अखबार आदि ने देश में राष्ट्रीय चेतना का बीजाँकुर किया। भारतेन्दु मण्डल में हिन्दी, हिन्दू हिन्दुस्तान ने क्रान्ति का उफान खड़ा कर दिया।

हिन्दी के प्रथम पत्र के लिए मतान्तर है। कोई उदन्त मार्तण्ड को प्रथम पत्र मानता है, तो कोई दिग्दर्शन को। 1818 में दिग्दर्शन हिन्दी मासिक पत्रिका का संस्करण निकलने लगा। यह विद्यालय अधिकारियों तक ही प्रसारित होता था। इसके विपरीत उदन्त मार्तण्ड सबके लिए सुलभ था। इसमें क्षेत्रीय राष्ट्रीय समाचार आदि ज्वलन्त विषयों को प्रकाशित किया जाता था। इसका प्रकाशन काल 30 मई 1826 को माना जाता है। श्री युगलकिशोर सुकुल ने इस साप्ताहिक का प्रकाशन कलकत्ते के कोलूटोला से किया। भारतीयता के उन्नायक राजाराममोहनराय ने ‘बंगदूत’ द्वारा जनता को जगाने का प्रयास किया। श्री बृजेन्द्र नाथ वंदोपाध्याय ने जून 1834 को प्रजामित्र का प्रकाशन किया। 1844 में ग्वालियन शासन द्वारा ग्वालियर अखबार का प्रकाशन हुआ।

राजा शिवप्रसाद सितारहिन्द के प्रकाशन एवं गोविन्द रघुनाथ के संपादन में सन् 1845 को बनारस अखबार निकला। यह समसामयिक समस्या को जिक्र करता था। शेख अब्दुलका ने शिमला से 1848 ई. में शिमला अखबार का प्रकाशन प्रारंभ किया। इसका संपादन सुरुचिपूर्ण था। मालवा अखबार, 1 जनवरी 1848 में इन्दौर से पं. प्रेमनारायण के संपादन में प्रकाशित हुई। मध्यप्रदेश में हिन्दी पत्रकारिता को प्रारंभ करने का श्रेय इस पत्र को जाता है। पं. अम्बिका प्रसाद वाजपेयी ने 1844 और 1849 में मार्तण्ड, ज्ञान दीपक और जगदीपक भास्कर नामक पत्रों के प्रकाशन की चर्चा की है। मार्तण्ड साप्ताहिक पाँच भाषाओं का प्रतिनिधित्व करता था। इसमें भाषाओं के विकास में सहायता मिली।

उद्बोधन काल के द्वितीय चरण (1867 से 1884)में भारतीय नवजागरण के अग्रदूत भारतेन्दु हरिश्चंद्र की पत्रकारिता मण्डली ने भारतीय जन को आलोकित एवं आँदोलित किया। इस मण्डल में सर्वश्री बालकृष्ण भट्ट, प्रतापनारायण मिश्र, प्रेमधन, अदिबकादत्त, व्यास आदि वरिष्ठ पत्रकार थे। इन्होंने हिन्दी पत्रकारिता जगत् को ऊषाकाल का दर्शन कराया। 1857 के विफल क्रान्ति के पश्चात् क्रान्तिकारी पत्रकार भारतेन्दु ने 15 अगस्त 1867 में कवि वचनसुधा को नव आकार प्रदान किया। इसमें स्वाधीनता परक राजनीतिक लेख छापे जाते थे। कवि वचनसुधा पत्रिका ने देश में जड़ें जमाती अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली और क्रूर कानून के प्रति आक्रामक रुख अपनाया। इससे जनता में अंग्रेजी सरकार के प्रति विद्रोह की उफान उठने लगी। 1873 में बनारस से हरिश्चंद्र चंद्रिका प्रकाशित हुई। भारतेन्दू जी के संपादन में 1 जनवरी 1874 में एक मासिक पत्रिका ‘बालाबोधिनी’ निकली। इस पत्रिका ने नारी चेतना का विकास एवं नारी जागरण का प्रयास किया। महिला जगत् के लिए यह पत्रिका अनोखा उपहार साबित हुई।

आर्य समाज के सिद्धान्तों के प्रचार-प्रसार हेतु भी अनेक पत्र निकाले गए। आर्य पत्रिका, आर्य भूषण, आर्य वृत्त, आर्यव्रत, आर्यदर्पण आदि ऐसे पत्र हैं जिनसे स्वदेश प्रेम का पाठ पढ़ाया गया। इन पत्रों ने भारतीयों में नव जागरण एवं चेतना की लहर जगायी। 1879 के सारसुधानिधि ने भारतीय समाज की जीर्ण-शीर्ण अवस्था को बदलकर इसमें मनस्विता, तेजस्विता और ओजस्विता आदि गुणों का संचार किया। राजस्थान से प्रकाशित ‘देश हितैषी’, ‘स्वधर्म’, ‘स्वराज्य’, ‘स्वभाषा’ और ‘स्वदेशी’ ने जन-जागरण के लिए कदम बढ़ाए। उदयपुर गजट एवं जयपुर गजट ने राजस्थान के जनमानस को मुखरित किया। ‘क्षेत्रीय पत्रिका’ ने पूर्वांचल की राजनीति, सामाजिक और साहित्यिक चेतना को जगाने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। ‘ब्राह्मण’ का पहला अंक 15 मार्च 1883 को कानपुर से निकला। सरल प्राँजल और प्रवाह पूर्ण गद्य शैली के विकास में ‘ब्राह्मण’ का विशेष योगदान है।

स्वातन्त्र्य पूर्व काल 1885-1919 को कहा जाता है। इसे जागरण काल भी कहते हैं। इसी समय में राष्ट्रीय भावना का जागरण प्रारंभ हुआ। अनेकानेक पत्र-पत्रिकाओं ने जनता में राष्ट्रीय भावना भरने का कार्य किया। उन्हें भारतीय दुर्दशा से अवगत कराया। इस कालखण्ड की मुख्य बात ही सुप्त जनमानस को क्रान्ति के लिए तैयार करना था। सन् 1907 में वीराँगना भीकाजी कामा ने ‘वंदे मातरम्’ पत्र निकाला। यह पत्र विदेशों से छपकर पाण्डिचेरी होते भारत आता था। ‘वंदे मातरम्’ क्रान्ति की प्रचण्ड ज्वाला थी। स्वातंत्र्य आँदोलन का शंखनाद करने वाला सर्वाधिक लोकप्रिय एवं प्रभावशाली पत्र था युगान्तर। इसके संचालक श्री अरविन्द के भ्राता वारीन्द्र कुमार घोष और स्वामी विवेकानंद के भाई भूपेन्द्रनाथ दत्त थे। यह पत्र धार्मिकता और राष्ट्रीयता के शोले उगलता था। युगान्तर के लेखक निर्भीक और निडर थे। भारतीय अस्मिता के प्रतीक तिलक ने 16 मार्च 1897 को ‘केसरी’ के माध्यम से सर्वत्र क्रान्ति का उफान ला दिया। इस पत्र को पढ़कर जनता ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आग के गोले बन जाती थी। ‘केसरी’ ने अंग्रेजी शासन को रोग से भी अधिक भयंकर बताकर जनता में जागृति पैदा की। 20वीं शताब्दी के प्रथम दो दशकों में राष्ट्रीय चेतना और स्वदेशी भावना को उभारने में जिन हिन्दी पत्रों की अनुकरणीय भूमिका रही इसका ज्वलन्त उदाहरण सरस्वती थी।

प्रतापगढ़ के कालाकाँकर में एक नवंबर 1185 को राजा रामपाल सिंह ने ‘हिन्दोस्तान’ दैनिक का प्रकाशन किया। इस पत्र ने 27 वर्षों तक भारत में नव जागरण का स्वर फूँका। इसके संपादक थे महामना मदनमोहन मालवीय। जो ग्रामीण वर्ग के विभिन्न पहलुओं एवं समस्याओं पर विशेष लेख लिखते थे। सन् 1887 में लखनऊ के प्रकाशित मासिक पत्र दिनकर समाज सुधार और राजनीति के बारे में विस्तृत विवरण देता था। 1890 में सर्वहित का प्रकाशन बूँदी से हुआ। इसने लगभग 14 वर्षों तक भारतीय संस्कृति और सभ्यता के उन्नयन हेतु पाठकों का उद्बोधन किया। इसी वर्ष ही ‘बंगवासी’ भाषा गढ़ने की टकसाल के रूप में प्रकाशित हुआ। इसी क्रम में सद्धर्म प्रचारक, शुभचिंतक, नागरी नीरद आदि पत्रिकाओं ने राजनीति, राष्ट्रीयता तथा राष्ट्र के अनेकों पक्षों को उजागर किया। लोगों को अपने संघर्ष के प्रति जागरुकता लाने का भी अथक प्रयास किया। कानपुर से गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा प्रकाशित प्रताप भी इसी प्रयत्न की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी थी।

सन् 1920 से 1947 का काल क्रान्ति काल के रूप में जाना जाता है। इस दौरान स्वतंत्रता आँदोलन अपने चरम सीमा पर था। यह हिन्दी पत्रकारिता की ओजस्विता की अविस्मरणीय युग रहा। इस युग में ऐसी कोई भी पत्र-पत्रिका नहीं होगी जिसमें राष्ट्र का स्वर न गूँजता हो। ‘आज’ भारत के आयुदय और जन्मभूमि के प्रति समर्पित था। इसके अतिरिक्त टुडे, समाज, स्वार्थ, मर्यादा तथा चित्ररेखा पत्रों के प्रकाशन ने हिन्दू और हिन्दुस्तान की अनन्त सेवा की। सन् 1920 में ‘वर्तमान’ का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। यह पत्र विषयवस्तुओं की विविधता, रोचक शैली तथा समाज सुधार के लिए जाना जाता है। ‘स्वतंत्र’ दैनिक का प्रकाशन कलकत्ते से हुआ। यह पत्र असहयोग आँदोलन से संबन्धित समाचार तथा क्रान्तिकारियों का ओजस्वी नारों का प्रचार करता था।

इस युग में आध्यात्मिक महामानव भी अपना योगदान करने से न चूके। भाईजी श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार ने श्री जयदयाल गोयनका के सहयोग से सन् 1926 में मासिक पत्र ‘कल्याण’ का प्रकाशन प्रारम्भ किया। यह पत्रिका धर्म और अध्यात्म को प्रस्तुत करने के साथ देश हित के लिए समर्पित थी। इसी दौर में युग पुरुष पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने सन् 1940 में अखण्ड ज्योति मासिक का प्रकाशन प्रारम्भ किया। अखण्ड ज्योति संस्थान से प्रकाशित मासिक अखण्ड ज्योति, अध्यात्म के साथ जीवन के सभी क्षेत्र में अपना आत्मिक विकास के लिए प्रतिबद्ध हुई। यह प्रतिबद्धता युग की ज्वाला बन गयी, जिसमें प्रसाद, पंत, निराला, नवीन आदि सभी साहित्यकारों एवं पत्रकारों ने अपना-अपना योगदान दिया। और इसी के साथ क्रान्ति से भारत देश ने विकास के नए युग में प्रवेश किया।

स्वतंत्रता के पश्चात् नवनिर्माण काल (1948 से 1974) प्रारंभ हुआ। इस समय के पत्र-पत्रिकाओं के द्वारा देश एवं समाज के विभिन्न पहलुओं को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया। सन् 1947 में अवतरित नवभारत टाइम्स, नई दुनिया, प्रदीप, नवजीवन, स्वतंत्र भारत, दैनिक जागरण, सन्मार्ग आदि दैनिक पत्रों ने भारत को विकास और उत्कर्ष का मार्गदर्शन प्रशस्त किया। बंग प्रान्त से विश्वमित्र, नया समाज, ज्ञानोदय। मध्यप्रदेश से जयभारत, नयाजमाना, नई दुनिया, मंगल प्रभात, नवप्रभात, आजाद हिन्द, स्वतंत्र भारत, अपना राज्य, हित चिंतक, देशबंधु, नवभारत, नई दुनिया। राजस्थान से अमर ज्योति, 15 अगस्त, स्वतंत्र भारत, नवयुग, लोकजीवन, जयहिन्द, लोकमत, लोकराज, राष्ट्रदूत आदि जनतंत्र की स्थापना में उल्लेखनीय योगदान दिये। बिहार में जनशक्ति, नवीन भारत, जनता, पंचायत राज, राष्ट्र संदेश। हिमाँचल से प्रजामित्र, सुधा, हिमाँचल संदेश, लोकतंत्र, भावना। पंजाब से वीरप्रताप, हिन्दी मिलाप, पंजाब केसरी, उजाला लोकमान्य दैनिक, विश्वमित्र, युगधर्म, धर्मयुग आदि पत्रों ने राष्ट्र को नव निर्माण को नूतन दिशा दी। राजधानी दिल्ली से प्रकाशित हिन्दुस्तान, नवभारत टाइल्स, वीर अर्जुन, जनयुग आदि तमाम पत्रों ने भारत के लिए सराहनीय कार्य किया।

धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, किलट्ज और दिनमान साप्ताहिक पत्रों के अलावा हजारों पाक्षिक और मासिक पत्रों ने इस दौरान देश में साहित्य, राजनीति, शिक्षा, वाणिज्य, कृषि, विज्ञान, कम्प्यूटर, तकनीकी, चिकित्सा, खेल, फिल्म तथा धर्म संस्कृति के विविध पक्षों पर विस्तृत प्रकाश डाला। यह काल हिन्दी पत्रकारिता का स्वर्ण युग है। इस समय में राजनीतिक, सामाजिक, साँस्कृतिक और साहित्यिक गतिविधियाँ उत्कर्ष के शिखर पर था।

पत्रकारिता का वर्तमान काल सन् 1975 से प्रारंभ होता है। समाज सेवा की यह धारा आज के अर्थप्रधान पूँजीवादी युग से बहुत प्रभावित हुई। आज पत्रकारिता व्यवसाय में सिमट गई हैं। इसकी सारी विधाएँ विवेक से मुक्त नजर आती हैं। वर्तमान पत्रकारिता में नैतिकता का ह्रास स्पष्ट दीखने लगा है। धर्मयुग जैसी कई साहित्यिक पत्रिकाएँ बंद हो चुकी हैं। अखण्ड ज्योति और कल्याण के अलावा धार्मिक पत्रिकाएँ नजर नहीं आतीं। पत्रकारिता समर्पित भावना, तपस्या से आरंभ होकर व्यवसाय के जाल-जंजाल में फंस गई है। सच्चे और निष्पक्ष पत्रकारों के सीने पर सदा भय का निशाना सधा रहता है। शुद्ध राजनीतिक स्वार्थपरता सत्तालोलुपता तथा आतंकवादी तत्त्वों से यह घिर गई है। अश्लीलता पत्रों का मुख्य आकर्षण एवं शृंगार का पर्याय बन चुकी है। प्रायः पत्र-पत्रिकाएँ सैन्स, हिंसा, हत्या, अपराध, भ्रष्टाचार आदि समाचारों को आकर्षक ढंग से छापती हैं।

पत्रकारिता के इस विषम युग में अखण्ड ज्योति आज भी अपने संस्थापक के तप का प्रकाश सतत वितरण करने में लगी हुई है। पत्रकारिता के मूलभूत उद्देश्य क्या है? इसका उत्तर इसमें जीवन्त एवं जाग्रत् देखा जा सकता है। इसमें शुभ दृष्टि भी है और सम दृष्टि भी। इसने अपने विचारों के धागे में लाखों व्यक्तियों के एक विशालकाय परिकर को पिरो रखा है। पत्रकारिता की इसी प्रेरक ज्योति से यदि प्रकाश पाया जा सके तो पत्रकारिता के युगधर्म को समझा-जाना और आत्मसात किया जा सकता है।


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