ज्ञान और विज्ञान के भाँडागार हमारे वेद

July 2000

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वेदों को अपौरुषेय कहा गया है। भारतीय धर्म, संस्कृति एवं सभ्यता का भव्य भवन इसी मजबूत आधारशिला पर प्रतिष्ठित है। वेद शाश्वत एवं यथार्थ ज्ञानराशि के समुच्चय हैं। इन्हें महान् तपसी ऋषियों ने अपने प्रतिभा-चक्षु से देखा है, अनुभव किया है। वैदिक ऋषियों ने अपने मन या बुद्धि से कोई कल्पना न करके शाश्वत, अपौरुषेय सत्य की अपनी चेतना के उच्चतम स्तर पर अनुभूति की और उसे मंत्रों का रूप दिया। इन्हीं मंत्रों का बहुमूल्य कोष ही वेद हैं, जिनकी महत्ता एवं महिमा गाई गई है।

वेदों को श्रुति भी कहा जाता है। जिसका शाब्दिक अर्थ है, दिव्य वाणी से सुना गया सत्य। परंतु इसका भावात्मक अर्थ हैं, स्वयं साक्षात्कार किए गए ज्ञान का भंडार। आदि पुरुष मनु के अनुसार, वेद पितृगण, देवता तथा मनुष्यों का सनातन, सर्वदा विद्यमान रहने वाला चक्षु है। पाश्चात्य मनीषी मैक्समूलर के अनुसार, विश्व के इतिहास में वेद ऐसी रिक्तता की पूर्ति करता है, जिसे किसी अन्य भाषा की कोई भी साहित्यिक कृति पूर्ण नहीं कर सकती। साने गुरुजी के विचारों में, जीवन को सुँदर बनाने वाला प्रत्येक विचार ही मानो वेद है। युगद्रष्टा वेविद् स्वामी विवेकानंद कहते हैं, वेदों का अर्थ है, भिन्न-भिन्न कालों में, भिन्न-भिन्न व्यक्तियों द्वारा आविष्कृत आध्यात्मिक सत्यों का संचित कोष। महर्षि अरविंद ने वेदों को भारतीय संस्कृति का आध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक बीज कहा है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि वेद मानवजाति के आदि ज्ञान ग्रंथ हैं। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इस चतुर्वर्ग या पुरुषार्थ-चतुष्टय के आदि शिक्षक वेद ही हैं। सहस्रों वर्षों तक वेदों की शिक्षाओं ने ही मनुष्य के सर्वतोमुखी कल्याण का पथ प्रशस्त किया। ये आज भी मानवजाति के मार्गदर्शक है। इस प्रकाशपुँज का आश्रय लेकर ही प्राचीन आर्यों ने ज्ञान की ज्योति विश्वभर में फैलाई थी।

वेदों के ज्ञान का आश्रय लेकर ही अनेक धर्मों के धर्मग्रंथ बने है। वेद रूपी वटवृक्ष की ये धर्मग्रंथ विविध शाखाएँ हैं। इससे वेदों की महिमा बहुत अधिक बढ़ जाती है। इसीलिए गोस्वामी तुलसीदास जी ने ‘अतुलित महिमा वेद की’ कहकर इसकी महत्ता को प्रतिपादित किया है।

स्वयं वेदों में भी वेदों की महिमा का बखान किया गया है। ब्राह्मणों और उपनिषदों में वेदों को ईश्वरीय ज्ञान माना गया है। वृहदारण्यकोपनिषद् में उल्लेख है कि ऋग्वेद सहित चारों वेद उस महान् परमेश्वर के निःश्वास रूप हैं। शतपथ ब्राह्मण ने इसे कुछ इस तरह अभिव्यक्त किया है, प्रजापति परमेश्वर ने अपने तप एवं पूर्ण ज्ञान से वेदों का निर्माण किया, जिसे त्रयी विद्या कहा जाता है। मुँडकोपनिषद् ने वेद को ईश्वरीय वाणी कहा है। ताँड्य ब्राह्मण तथा छाँदोग्योपनिषद् में छंदों के नाम से वेदों की महत्ता प्रदर्शित होती है।

षड्दर्शनों में भी वेदों की विशेषता वर्णित है। न्यायदर्शन के सूत्रों में सर्वत्र व्याप्त परमेश्वर का वचन होने और असत्य, परस्पर विरोध एवं पुनरुक्ति आदि दोषों से रहित होने की वजह से वेदों को परम प्रमाणित माना गया है। वैशेषिक दर्शन में वेदों को “तद्वचनादाम्नायस्य प्रामाण्यम्” कहा गया है। साँख्यकार कपिल मुनि ने वेदों को ईश्वरीय शक्ति से अभिव्यक्त होने के कारण मुनि ने वेदों को ईश्वरीय शक्ति से अभिव्यक्त होने के कारण इन्हें स्वतः प्रमाण माना है। योगदर्शन में भी इसकी महत्ता परिलक्षित होती है। वेदाँत दर्शन वेद की नित्यता का प्रतिपादन करता है।

महाभारत में वेदव्यास जी ने वेद को नित्य और ईश्वरीय बताया है। उनके अनुसार, सृष्टि के प्रारंभ में स्वयंभू परमेश्वर ने वेद रूप नित्य दिव्य वाणी का प्रकाश किया। श्रीमद्भागवत् गीता में वेदों की उत्पत्ति स्वयं अविनाशी परमेश्वर से बताई गई है। श्री रामानुज भाष्य की अमृत-तरंगिणी टीका में भी वेद की नित्यता का वर्णन है। मध्यकाल में शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य, वल्लभाचार्य, निम्बार्काचार्य, स्कंदस्वामी, भरतस्वामी, सायणाचार्य, उब्बट, महीधर आदि सभी ने वेदों को ईश्वरीय ज्ञान के रूप में स्वीकार करते हुए उन्हें परम प्रमाण माना है।

इसी तरह वेद, ब्राह्मण, उपनिषदों के अलावा अन्य धर्मों एवं दूसरे विद्वानों ने वेदों की महिमा एवं गरिमा को स्वीकार किया है। बुद्ध की वाणी में वेदों की यह विशेषता साफ-साफ झलकती है। सुत्त निपात में महात्मा बुद्ध ने कहा है, जो विद्वान वेदों के द्वारा धर्म का ज्ञान प्राप्त करता है, उसकी अस्थिर अवस्था नहीं रहती। आचार्य कुमुदेंदु नाम जैन विद्वान ने ‘मूवलय’ नाक कन्नड़ ग्रंथ में ऋग्वेद को भगवद् वाणी कहा है। इसके अलावा पारसी विद्वान फर्दून दादा चानजी ने ‘फिलासफी ऑफ जोराष्ट्रयनिल्म एँड कंपरेटिव स्टडी ऑफ रिलीजन’ नामक सुप्रसिद्ध ग्रंथ में वेद की महत्ता का इस तरह वर्णन किया है, वेद ज्ञान की पुस्तक है, जिसमें प्रकृति, धर्म, प्रार्थना, सदाचार आदि सभी विषय सम्मिलित हैं। वेद का अर्थ है, ज्ञान और वास्तव में वेद में सारे ज्ञान-विज्ञान का तत्व भरा हुआ है।

सिख गुरुओं की वाणी में भी वेदों की विशेषता झलकती है। गुरुनानक के अनुसार ईश्वर ने वेद बनाए। उनके अनुसार वेद का महत्व कोई नहीं बता सकता। वे आगे और भी स्पष्ट करते हुए कहते हैं, वेद अमूल्य और अनंत है। चार वेद चार ज्ञान कोष के समान है। इतना ही नहीं वेद के ज्ञान से अज्ञान मिट जाता है और उसके पाठ से बुद्धि शुद्ध हो जाती है। असंख्य ग्रंथ होते हुए भी वेदों का पाठ सबसे मुख्य है। इन्हें पढ़ने से उत्तम विद्या की प्राप्ति होती है। गुरु ग्रंथ साहेब में उद्धृत कबीर वाणी स्मरण योग्य है, “वेद कतेब कहहु मत झूठे, झूठा जो न विचारे।”

वेदों की महिमा भारत में ही नहीं सुदूर देशों के विद्वानों द्वारा भी गई गई है। अखताब के पुत्र और तुर्फा के पौत्र लाबी नामक अरबवासी कवि ने अपनी रचना में वेदों की महत्ता का वर्णन इस प्रकार किया है, ईश्वरीय ज्ञान रूपी चारों वेद मानस चक्षु को दिव्य और पवित्र ज्योति से भर देते हैं। परमेश्वर ने हिंदुस्तान में ऋषियों के हृदयों में इन चार वेदों का प्रकाश किया। परमेश्वर ने ही वेदों का ज्ञान दिया है। ऐ मेरे भाइयों ! वेदों का तुम आदर करो, क्योंकि ये मुक्ति का शुभ संदेश देते हैं। ये तो ज्योति स्तंभ हैं, जो मनुष्य को अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए सजग और सतर्क करते हैं।

पाश्चात्य विद्वानों ने भी मुक्त कंठ से वेदों की प्रशंसा की है। डार्विन के समकक्ष विकासवाद के आविष्कारक डॉ. रसेल वैलस के अनुसार, वेद में पवित्र एवं श्रेष्ठ शिक्षाओं की एक सुँदर व उत्कृष्ट पद्धति पाई जाती है। इसके कवियों एवं द्रष्टाओं ने संसार में ईश्वरीविषयक विचारों को प्रचारित एवं प्रसारित किया था। इनमें अत्यधिक उन्नत एवं प्रगतिशील धार्मिक विचारों की मुख्य शिक्षाएँ समाहित है। वेदों के रचयिता एवं कवि हमारे उच्चतम धार्मिक शिक्षकों और मिल्टन, शेक्सपियर तथा टेनीसन जैसे कवियों से भी उच्च थे।

रेवरेण्ड मौरिस फिलिप नामक पादरी ने वेदों को प्रारंभिक ईश्वरीय ज्ञान बताया है। प्रो. हीरेन नामक विख्यात इतिहासविद् ने वेदों के विषय में कहा है, वेद संस्कृत के प्राचीनतम ग्रंथ है। ये मनुष्य मात्र की उन्नति के लिए अपनी अद्भुत ज्ञानसंपदा के द्वारा दिव्य प्रकाश स्तंभ का काम करते हैं। 14 जुलाई, 1884 को पेरिस में आयोजित ‘इंटरनेशनल लिटेररी ऐसोसिएशन’ के सम्मुख एक निबंध पढ़ते हुए लेओदेल्बा नामक एक फ्राँसीसी विद्वान ने घोषणा करते हुए कहा कि ऋग्वेद मानवजाति की प्रगति की आदर्शतम कल्पना है।

नोबेल पुरस्कार विजेता श्री मेटर्लिक ने अपनी कृति ‘दे ग्रेट सीक्रेट’ में वेदों के प्रति अत्यंत आदर-भाव दर्शाते हुए लिखा है, वेद के विशाल भंडार हैं, जिनको मानव सृष्टि के प्रारंभ में ऋषियों द्वारा प्रकाशित किया गया।


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