मानवी चेतना बनाम आज का कंप्यूटर

July 2000

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मस्तिष्क दैवीय कृति है और कंप्यूटर मस्तिष्क की उपज। पर अनेक क्षेत्रों में यह सामान्य मस्तिष्क से ज्यादा सक्रिय एवं कुशल है। तभी तो वर्तमान युग कंप्यूटर का युग बन गया है। हालाँकि मस्तिष्क एवं कंप्यूटर दोनों ही इलेक्ट्रॉनिक मशीन की तरह हैं, इनकी रचना में काफी कुछ साम्य हैं। लेकिन मस्तिष्क सजीव और सचेतन है, जबकि कंप्यूटर एक यंत्र मात्र है। इससे उतनी ही जानकारियों का मिल पाना संभव है, जितनी कि उसमें भरी गई हों, पर मस्तिष्क की गतिविधियों की विस्तार अनंत एवं बहुआयामी है।

महान् विज्ञानवेत्ता हिलेरी प्यूटनेम की आइडेंटिटी थ्योरी के अनुसार, मस्तिष्क एक क्रियात्मक मशीन है, जो शरीर रूपी एक बड़ी मशीन को संचालित एवं नियंत्रित करती है। वैज्ञानिक अनुसंधान के अनुसार, मस्तिष्क के समस्त क्रियाकलाप जैवविद्युत चुँबकीय क्षेत्र में संपन्न होते हैं। कंप्यूटर इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है। यह डिजिटल संरचना को ग्रहण करता है। इसकी क्रिया पूर्व निर्धारित होती है। इसे इलेक्ट्रॉनिक डाटा प्रोसेसिंग भी कहते हैं। जो चार तरह की होती है- इनपुट, आउटपुट, सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट और स्टोरेज उपकरण। सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट को कंप्यूटर का हृदय एवं मस्तिष्क कहा जा सकता है। यही उसका मुख्य भाग है। इस क्षेत्र में डाटा इनपुट के माध्यम से आता है। आउटपुट यहीं से सूचना प्राप्त कर आवश्यकतानुसार रूपांतरित होता है। इस सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट और मेमोरी होती है। यहाँ पर कई तरह के रजिस्टर भी होते हैं। जो अपने-अपने ढंग से महत्वपूर्ण कार्य करते हैं।

कंप्यूटर में बुस प्रोसेसिंग यूनिट और परिधि के बीच सूचना का आदान-प्रदान करता है। यह बुस तारों का समूह है, जो विट्स को संचारित करता है। कंप्यूटर में स्टोरेज दो प्रकार का होता है-क्रियात्मक एवं सहायक। क्रियात्मक स्टोरेज सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट के अंदर होता है। यही कंप्यूटर की प्रारंभिक मेमोरी है। इससे प्रोग्राम का निर्देशन होने के बावजूद इसकी कार्यक्षमता सीमित होती है। सहायक स्टोरेज कंप्यूटर के बाहरी उपकरणों में होता है और इसकी क्षमता असीम होती है।

कंप्यूटर शब्दों या वाक्यों को नहीं समझता। यह शून्य से दस तक गिनती भी नहीं कर सकता। यह केवल ‘0’ और ‘1’ दो अंकों को पहचानता है। इन दो अंकों को वह एक साथ समझ भी नहीं सकता। यदि ‘0’ कार्य करेगा तो ‘1’ बंद रहेगा। इसी तरह ‘0’ विद्युत सुचालक होगा तो ‘1’ कुचालक। ये शून्य और एक दोनों कभी भी एक अवस्था में नहीं हो सकते। कंप्यूटर इन्हें भिन्न-भिन्न अवस्था में ही पहचान सकता है। कंप्यूटर की भाषा में बिट बाइनेरी डिजिट 0 या 1 को कहते हैं। 4 बिट्स को निबल और 8 बिट्स को बाइट कहते हैं। कंप्यूटर में कई ट्राँजिस्टर होते हैं। आजकल इनकी तकनीक अत्यंत विकसित हो चुकी है। 6 वर्ग मिलीमीटर के एक चिप में हजारों-लाखों की संख्या में ट्राँजिस्टर समा सकते हैं। जिसमें कई एनसाइक्लोपीडिया को अंकित किया जाना संभव है।

कंप्यूटर में जिस तरह इनपुट एवं आउटपुट की व्यवस्था है, उसी तरह मस्तिष्क से जुड़ी पाँचों इंद्रियों को इनपुट कह सकते हैं। मस्तिष्क स्वयं अपने आप में सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट है। न्यूरॉन्स इसके ट्राँजिस्टर हैं। इन न्यूरॉन्स की अक्रिया अवस्था में संदेश का संचार कम होता है। परंतु सक्रिय अवस्था में इनकी गति अत्यंत तीव्र होती है। कंप्यूटर में तारों एवं ट्राँजिस्टरों की संख्या निश्चित होती है, परंतु न्यूरॉन्स की संख्या की गणना करना आसान नहीं है।

मस्तिष्क में न्यूरॉन्स के अंतर्संबंधों में आवश्यकतानुसार परिवर्तन होता रहता है। न्यूरॉन्स के अंतिम शीर्ष पर पाए जाने वाले डेंड्राइट्स स्पाँइस आवश्यकतानुसार घटते-बढ़ते रहते हैं। मस्तिष्क की यह सुघटयता कंप्यूटर में नहीं हो सकती। इसे यों भी कह सकते हैं कि मस्तिष्क एक ऐसा कंप्यूटर है, जो सदैव परिवर्तन की असीम क्षमता एवं संभावना रखता है।

मस्तिष्क के र्कोर्टक्स में दस अरब न्यूरान्स होते हैं। इसके पिछले भाग को यदि जोड़ा जाए तो यह संख्या सौ अरब के आसपास होती है। सन् 1993 में बने कंप्यूटर में 101 ट्राँजिस्टर थे। भविष्य में यह संख्या बढ़ भी सकती है। सुपर कंप्यूटर में यह संख्या बहुत अधिक है। फिर भी इनमें आउटपुट और इनपुट अपेक्षाकृत कम होते हैं।, जबकि न्यूरॉन्स में यह अत्यधिक होते हैं। सेरीबेलम के परकिंजी कोशिका के न्यूरान से एक से दस हजार सिनाप्सिस बना सकता है। मस्तिष्क में इनकी समूची संख्या की गणना की जाए तो यह खरबों में जा पहुँचेगी।

मस्तिष्क में 1015 सिनाप्सिस होते हैं। यदि इसकी दो अवस्थाओं को देखा जाए तो ये सिनाप्सिस 2 X 1015 हो सकते हैं। यह संरचना एवं संख्या किसी भी सुपर कंप्यूटर से बहुत अधिक है। मस्तिष्क में न्यूरॉन्स आपस में समानाँतर संबंधित होते हैं, जबकि कंप्यूटर में ट्राँजिस्टरों का विन्यास श्रेणीबद्ध होता है। विशेषज्ञों के अनुसार समानाँतर विन्यास अधिक विकसित एवं लाभदायक होता है। कंप्यूटर में इस तरह की संरचना अभी तक नहीं बन पाई है। यदि बनी भी है तो सफल नहीं हो पा रही है। कंप्यूटर में यदि एक सर्किट खराब हो जाए तो यह कार्य करना बंद कर देता है। मस्तिष्क में ऐसा नहीं होता है। मस्तिष्क में प्रतिदिन लगभग एच लाख न्यूरॉन्स समाप्त होते हैं। फिर भी व्यक्ति वृद्धावस्था तक मानसिक रूप से कार्य करता रहता है। इसके कई भाग क्षतिग्रस्त हो जाने के बावजूद यह सक्रिय रहता है। काँर्टक्स के कई भागों में तो अन्य अनेक कार्यों को करने की इमरजेंसी व्यवस्था भी होती है।

यह ठीक है कि कंप्यूटर आज की आवश्यकता का इतना बड़ा अंग बन गया है कि इसके बगैर आज की कार्यात्मक व्यवस्था असंभव है-सी लगती है। परंतु क्या यह मानवीय बुद्धि को लाँघ सकता है ? रेत, लोहे या ताँबे से विनिर्मित सिलिकन चिप्स रूपी कंप्यूटर क्या मानवीय विचारों की सूक्ष्मता, भावनाओं की कोमलता एवं कल्पना का विकल्प बन सकता है ? यह सवाल आज सबके मन में कौंध रहा है। इसी परिप्रेक्ष्य में कोलंबिया यूनिवर्सिटी के गोडार्ड इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर राबर्ट जैस्ट्रो एवं मीट के कंप्यूटर विज्ञानी मार्विन मिंस्की का कहना है कि कंप्यूटर क्राँति एक दिन मानवीय बुद्धि के पार जा सकती है, जबकि मीट (M E E T) के कंप्यूटर इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर एडवर्ड फ्रेडकिन के अनुसार क्राँति अवश्य आ सकती है, परंतु यह विचार और बुद्धि में नियंत्रण में ही आएगी।

मानव विनिर्मित कोई वस्तु भला मानवीय विचार बुद्धि से आगे कैसे बढ़ सकती है ? इस संदर्भ में भौतिक विज्ञानी हैज पैनल्स का मत बड़ा महत्वपूर्ण लगता है। उनके अनुसार कंप्यूटर की मानवीय मस्तिष्क से तुलना करना संभव नहीं है। यह तो मनुष्य के हाथों में उसी के द्वारा बनाया गया एक खिलौना है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रख्यात गणितवेत्ता रोजर पेनरोज अपनी रचना ‘द अंपाय ऑफ न्यू माइंड’ में साफ−तौर पर बताया है कि मानवीय मस्तिष्क विश्वचेतना से संबंधित है। इसकी बराबरी की कल्पना किसी पार्थिव वस्तु से नहीं की जा सकती। पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक रोचेल जेलमैन ने -कोटेड बाई हंट’ में मानव मस्तिष्क को विकास का अप्रतिम मानदंड एवं इसे ईश्वर की आश्चर्यजनक एवं अद्भुत कृति के रूप में माना है।

रोचेल जेलमैन का मत है, कंप्यूटर से इस संसार में बड़े-बड़े कार्य किए जा सकते हैं। भौतिक जीवन के लिए यह अतीव आवश्यक एवं आश्चर्यजनक ढंग से उपयोगी भी है, परंतु मानवीय मस्तिष्क में निवास करने वाली चेतना इससे अनंत गुना अनूठी है। वह मस्तिष्क में अपने अनूठे ढंग से संचालित करके पदार्थ जगत् को झाँकते हुए उच्चस्तरीय चेतना में प्रवेश कर सकते है। मानवीय जीवन में ईश्वरीय विभूतियों का अवतरण करा सकती है।


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