सादगी की साकार प्रतिमा रामकृष्ण परमहंस की माँ अपने जीवन के अंतिम दिनों में बेटे के पास ही रहने आ गई थी। परमहंस ने निष्ठावान् शिष्य और सेवक श्री मथुरा बाबू माता और पुत्र दोनों की यथेष्ट सेवा करते। एक दिन की बात है, उन्होंने माँ से कहा, माँ आपको जिस किसी भी चीज की जरूरत हो मुझे बता दें। मैं अभी तुरंत आपकी सेवा में उपस्थित कर दूँगा।
माँ ने जवाब दिया, सब कुछ तो है बेटा, मेरा आशीष लो और प्रसन्न रहो। परंतु मथुरा बाबू इस उत्तर से संतुष्ट नहीं हुए और बार-बार आग्रह करते रहे। जब माँ ने देखा कि मथुरा बाबू इस प्रकार नहीं मानने वाले हैं तो उन्होंने कहा, ठीक है अगर तू कुछ देना ही चाहे तो मेरे लिए थोड़ी सुँघनी मँगवा दे। मथुरा बाबू की आँखों में आँसू आ गए और वे निस्पृह, निष्काम देवी के प्रति नतमस्तक होकर मन-ही-मन कहने लगे, ऐसी माँ को रामकृष्ण जैसा पुत्र मिले तो इसमें क्या आश्चर्य है।