कुसंस्कारों के परिशोधन से ही व्यक्तित्व प्रौढ़ बनता है। विचारों की प्रौढ़ता, दृष्टिकोण की परिपक्वता ही मानव-जीवन की वह विशेषता है, जिसे उपलब्ध करने पर व्यक्तित्व प्रतिभाशाली बनता है और बड़ी सफलताएँ प्राप्त कर सकने की संभावना सुनिश्चित होती है। ओछे मनुष्य वे नहीं जो वजन, लंबाई या आयु की दृष्टि से छोटे हैं। जिनकी विचारणा तथा आकाँक्षा उथली और बचकानी है, जो गए-गुजरे लोगों की तरह सोचते और घटिया आकाँक्षाएँ पूरी करने के लिए ओछे हथकंडे अपनाते हैं, उन्हें कोई चतुर भले ही कह ले, पर वस्तुतः वे व्यक्तित्व की दृष्टि से बौने, अपंग, अविकसित लोगों की श्रेणी में ही माने जा सकेंगे।