शैतान अपने तीनों चेलों की कारगुजारियाँ देखकर फूला नहीं समाता था। उसके हर मंसूबे को ये तीनों बखूबी पूरा करते थे। शैतानियत में अपने गुरु से भी बढ़-चढ़कर कारनामे दिखाने वाले इन तानों का नाम राग, द्वेष एवं अहंकार था। एक दिन ये तीनों अपने गुरु के साथ कहीं जा रहे थे। आगे राग था, उसके पीछे द्वेष और उसके पीछे अहंकार और सबसे पीछे शैतान स्वयं। थोड़ी दूर चलने पर राग को कोई चमकती हुई चीज दिखाई दी। वह दौड़ा हुआ उस चीज के पास गया और उसे उठाकर अपनी जेब में रख लिया। द्वेष यह सब नजारा देख रहा था। वह भागकर आया और राग से पूछने लगा, भरे भाई ! अभी-अभी तुमने क्या उठाकर जेब में रखा है ?
धर्म ! राग ने उनके प्रश्न का समाधान किया।
उसकी यह बात सुनकर द्वेष गुस्से से आग-बबूला हो गया। अपने गुरु शैतान से जाकर बोला- देखिए यह कितनी बुरी बात है, हम लोग इतने दिनों से धर्म का नाश करने की कोशिश कर रहे है और यह है कि अपने उसी दुश्मन को बचाने की कोशिश कर रहा है।
तुम नहीं समझते। शैतान ने अपनी शैतानी मुस्कान बिखेरते हुए का। राग ने बड़ी अक्ल का काम किया है। हमने धर्म को कुचलने की हर संभव कोशिश की, पर हुआ ठीक उलटा, धर्म की ताकत बढ़ती गई। अब जबकि धर्म राग की जेब में आ गया है, तो वह किसी को रोशनी नहीं दे सकेगा। अब तो सभी राग को धर्म का मित्र मानेंगे और उसकी रखा को ही धर्म की रक्षा मानेंगे। ऐसे में नाम धर्म का होगा-काम हमारा।
द्वेष थोड़ी देर तक खड़ा सोचता रहा, फिर कहने लगा- मुझे भी एक तरकीब याद आ गई। अब मैं भी धर्म पर सीधा प्रहार नहीं करूंगा। इसकी जगह पर उन लोगों को आपस में लड़ाया करूंगा, जो धर्मात्मा होने का दावा करते हैं। सामान्यजन अपने इन धर्मगुरुओं की बातों में आकर पारस्परिक निंदा, आक्षेप, प्रत्याक्षेप एवं दंगा फैलाने -भड़काने में लग जाएँगे। इस काम में तलवारें चलेंगी, बारूदी धमाके होंगे, खून की नदियाँ बहेंगी, किंतु इन सभी बातों को धर्म समझा जाएगा और फिर तो मेरा सारा काम अनायास ही होने लगेगा।
तीसरा चेला अहंकार, जो अब तक की सारी बात-चीत खड़ा-खड़ा सुन रहा था, खुश होकर बोल पड़ा-तुम लोगों की सूझ-बूझ भरी बातों से मेरा काम भी बन गया। अब तक धर्म सभी को विनयशीलता का पाठ सिखा रहा था और मुझे चुप रहना पड़ता था, किंतु अब मेरी कारगुजारी से उसका रंग बदल जाएगा। कुछ लोग विशेष तरह के कपड़े पहन लेंगे और स्वयं को औरों से श्रेष्ठ मानेंगे। उनके अंध अनुयायी भक्त उनके गीत गाएँगे। वे अपनी अहंता के नशे में डूबे रहेंगे। इतना ही नहीं जब दो गुरुओं, परंपराओं के अनुयायी आमने-सामने आएँगे तो उन पर भी मेरा नशा छा जाएगा। प्रत्येक पंथ अपने को सर्वोच्च समझेगा और दूसरे को नगण्य। अपने का गुणगान करेगा। और दूसरे की भर्त्सना, निंदा। इस तरह देखते-देखते मैं सब पर छा जाऊँगा।
शैतान अपने इन तीनों चेलों की बात सुनकर फूला नहीं समाया। वह शैतानी हंसी हंसते हुए बोला, शाबाश मेरे शिष्यों, अब मेरी विजय निश्चित है। अब से हम अपना सारा काम धर्म के नाम पर करेंगे। काम, क्रोध, लोभ आदि सैनिक भी उसी तरह काम करते रहेंगे, हाँ उनकी वेशभूषा अवश्य धार्मिकजनों की होगी। राग साँप्रदायिकता के रूप में सामने जाएगा। द्वेष विधर्मी की निद्रा के रूप में और अहंकार तथाकथित धर्मगुरुओं की अहंता-अस्मिता के रूप में, मिथ्या आडंबर प्रचार के रूप में।
सारे चेले शैतान की ओर एकटक देखते रहे। फिर कुछ सोचकर वे सभी अपने गुरु से कहने लगे, क्या हमारी इस कार्ययोजना का नाश भी संभव है। शैतान इस प्रश्न पर थोड़ा गंभीर हुआ और बोला, हाँ, यदि धार्मिक जन सामान्य स्वयं सेवक के रूप में रहने पर अडिग हो जाएँ। यदि वे अपने सद्गुरु के चरणों में अपने सर्वस्व का समर्पण कर दें, तो फिर ऐसे सच्चे भक्तों का हम कुछ नहीं बिगाड़ सकते। तुममें से कोई भी उनके पास नहीं जाना अन्यथा तुम्हें नष्ट होना पड़ेगा। मैं स्वयं भी उनसे दूर रहूँगा, क्योंकि उनके समीप जाने पर मेरा नाश भी अवश्यंभावी है।