प्राकृतिक पदार्थों, वनस्पति एवं जीवजगत के अंधाधुँध शोषण के कारण ही पर्यावरण का इस हद तक अपकर्ष हो रहा है, जो स्वयं मानवी अस्तित्व के लिए एक भयावह संकट बन गया है। उनने इसके मूल में मनुष्य की पर्यावरणीय नीति में अतीव लापरवाही बरतना और समाज के लिए नए मानदंडों की रचना करने में विफलता को माना है।