प्रकृति के दुलारे ये चित्र-विचित्र पक्षी

July 2000

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

प्रकृति ने जीव-जंतुओं की विचित्र दुनिया रची है। पक्षियों का रंग-बिरंगा संसार भी इसी दुनिया का अंग है। इनकी हजारों किस्में व प्रजातियाँ पाई जाती है। ये स्वयं जितने मनमोहक होते हैं, इनका रहन-सहन और खाने-पीने की रुचियाँ भी उतनी ही अनोखी व रोचक हैं। इन पक्षियों में शुतुरमुर्ग को सबसे बड़ा पक्षी माना जाता है। शुतुरमुर्ग के संबंध में एक रोचक तथ्य प्रचलित है कि जब वह चारों ओर से घिर जाता है तो बालू में अपना सिर छुपा लेता है, पर यह सत्य नहीं है। वास्तव में परेशान होने या तंग किए जाने पर शुतुरमुर्ग जमीन पर लेट आता है और सिर व गरदन आगे निकालकर लेटे-लेटे ही चारों ओर देखता है, ताकि उसकी ओर किसी का भी ध्यान न जाए।

जब संकट एकदम सिर पर आ पड़ता है तो शुतुरमुर्ग भी अन्य पक्षियों की तरह भाग खड़ा होता है। पंख छोटे होने के कारण वह उड़ नहीं सकता, पर एक वयस्क शुतुरमुर्ग 80 कि.मी. प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकता है। इसकी दृष्टि इतनी प्रखर होती है कि कई कि.मी. दूर तक देखने की क्षमता रखता है। इसकी लंबी टाँगों में इतनी शक्ति होती है कि एक ही बार में आदमी के बाजू तोड़ दे। ये ‘एक पति-एक पत्नी’ के दर्शन में विश्वास रखते हैं और आजीवन एक-दूसरे के वफादार रहते हैं। शुतुरमुर्ग पेड़ों की पत्तियाँ-बीज-फल से लेकर छिपकली जैसे जीवों का भी निगल जाता है। यह कंकड़-पत्थर खाने का भी शौकीन होता है। दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन में आउडशोर्न नाम एक कस्बा है, जो विश्व के शुतुरमुर्ग की राजधानी मानी जाती है।

पक्षियों की दुनिया की सबसे छोटी चिड़िया हमिंग बर्ड का वजन 1.5 ग्राम के करीब होता है। इसके घोंसले का व्यास एक इंच का तीन-चौथाई होता है। इसके पंखों के रंग-पन्ना, माणिक आदि रत्नों की भाँति चमकते हैं। जो इसकी शोभा को शतगुणित कर देते हैं। इस चिड़िया का उड़ने का ढंग भी निराला है। इसके पंखों की औसतन फड़कन एक मिनट में 500 बार होती है। यह हवा में बिना किसी सहारे के काफी समय तक ठहरी रह सकती है। फूलों का रस ही इनका भोजन है।

अपने देश में तोता पालने का शौक सदियों पुराना है। संसार भर में प्रायः 160 किस्म के तोते पाए जाते हैं। अभी तक सबको यही बात मालूम है कि तोते बोली की नकल करने में माहिर होते हैं, पर कम लोग ही इस सत्य से परिचित हैं कि यह आसपास की बातें व आवाजें सुनने में भी माहिर होते हैं। तोते दूर-दराज की बातें मनोयोगपूर्वक सुन लेते हैं। इसी का ध्यान में रखकर प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान पेरिस में उन्हें एफिल टावर पर बिठाया गया था, ताकि वे हवाई हमले की पूर्व चेतावनी दे सकें।

मनुष्य ही नहीं, पक्षी भी फलों के बेहद शौकीन होते हैं। गाने वाली चिड़िया के नाम से विख्यात बुलबुल बड़े चाव से फल खाती है। अपने बच्चों से बहुत प्यार करने वाली यह चिड़िया उन्हें गाना एवं उड़ना सिखाती है। सदा गाने वाली इस बुलबुल का उर्दू व फारसी के साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान है और इसे ‘बुलबुल हजारदास्ताँ’ का खिताब भी मिला हुआ है। एक अन्य चिड़िया जिसका नाम कैसोवरी है वह सफेद अंडों की जगह हरे अंडे देती है। यह कैसोवरी अपनी बड़ी आकृति के बावजूद दिखने में बेहद सुंदर होती है, पर इसे गुस्सा बहुत जल्दी आ जाता है और गुस्से के दौरान यह मनुष्य का पेट तक चीर डालती है। इनमें नर कैसोवरी ही बच्चों के पालन-पोषण का दायित्व सँभालता है।

भारतीय चिड़ियों में सबसे सुँदर चिड़िया है ‘सनबर्ड’। इनको घरेलू बाग-बगीचों, हरे-भरे वनप्रदेशों, फूलों की घाटियों, झाड़ीदान वनों, अधिक रसीले फलों वाले बगीचों में देखा जा सकता है। इसके घोंसलों की बनावट अद्भुत होती है। इसके अंदर जाने के लिए एक छेदनुमा दरवाजा होता है, जिसके ऊपर छज्जा-सा बना होता है। भारत के बारहमासी पक्षियों के वर्ग में आने वाली एक अन्य चिड़िया है अबाबील। यह अपना घोंसला वृक्षों पर नहीं बनाती, बल्कि निर्जन इमारतों पर बसेरा करती है। इसके मुँह से लार जैसा पदार्थ निकलता है, जिससे यह मिट्टी, घास, फूल और तिनकों को मकान की दीवार या छत से चिपका देती है। इस सामग्री से जो घोंसला तैयार होता है, वह प्याले के आकार को होता है।

मनुष्यों में जिस प्रकार कुछ जातियाँ ‘घुमक्कड़’ प्रकृति के कारण विख्यात हैं, उसी प्रकार पक्षी समाज में भी ऐसे पक्षी होते हैं, जिनका सारा जीवन यात्रा या प्रवास में बीत जाता है। ऐसे पक्षियों में जंगली बतख सर्वाधिक प्रसिद्ध है। सर्दियों में यूरोप, उत्तरी एशिया, लद्दाख, तिब्बत से चलकर अनेक प्रकार की बतखें भारत के जलपूर्ण मैदानी इलाकों में आ जाती है। इस प्रवास प्रिय पक्षी को लंबी यात्राओं में अनेक कष्ट भोगने पड़ते हैं। इतना ही नहीं इन्हें बड़े-बड़े खतरों का सामना भी करना पड़ता है। ये बतखें 80-90 कि.मी. प्रतिघंटे की रफ्तार से सहज उड़ान भर लेती हैं। ‘टर्न’ पक्षी भी प्रवासी पक्षी के रूप में प्रसिद्ध है। ये प्रतिवर्ष कम-से-कम 20,000 मील की यात्रा कर लेती है। गिनीज बुक के अनुसार 5 जुलाई 1955 को कंडलक्ष सेंचुरी में एक आर्कटिक टर्न को इसके घोंसले में छल्ला पहनाया गया। बाद में 16 मई 1956 को एक मछुआरे ने जब इसे पश्चिमी आस्ट्रेलिया में जीवित पकड़ा तो इस समय वक यह चिड़िया 1,92,000 कि.मी. की दूरी तय कर चुकी थी।

साइबेरिया की सफेद सारस भी सर्दियों में प्रतिवर्ष भारत प्रवास पर आती है। लगभग 7,000 कि.मी. रास्ता तय कर ईरान, अफगानिस्तान व पाकिस्तान की झीलों में पड़ाव डालते हुए ये ‘भरतपुर पक्षी विहार’ में पहुँचते हैं। पूर्णतः शाकाहारी ये सफेद सारस पक्षी विहार में उगी वनस्पति ‘सइप्रस रोटेंटस’ की जाड़ों का खाना ज्यादा पसंद करते हैं। पक्षियों में हरियल पक्षी बेहद शर्मीला होता है और सारा जीवन पेड़ों पर ही बिता देता है। पूर्ण शाकाहारी यह पक्षी सिर्फ पीपल जाति के पेड़ जैसे, बड़ गूलर, पीपल, अंजीर आदि वृक्षों के पत्ते ही खाता है। पेटू प्रकृति के इस पक्षी को फलों में बेर, चिरौंजी व जामुन ज्यादा पसंद हैं। हरियल की तरह ‘चाहा’ पक्षी भी बेहद शर्मीला होता है, पर बसंत के मौसम में यह प्रकृति के सौंदर्य का आनंद लेने के लिए ऊँचे आकाश में विचरण करता है और जल्दी ही 40 या 50 डिग्री का कोण बनाते हुए तेजी से नीचे की ओर आता है। नीचे उतरते समय यह एक तीखी आज करता है, जिसे एक किलोमीटर की दूरी तक भी सुना जा सकता है। यह ‘चाहा’ पक्षी बिना रीढ़ की हड्डी वाले छोटे जीव जंतुओं को अपना भोजन बनाता है।

पक्षी मौसम विशेषज्ञ भी होते हैं। इनकी मौसम के बारे में जानकारी को आश्चर्यजनक श्रेणी में भी रखा जा सकता है। ‘सी-गल’ ऐसे पक्षियों में प्रमुख है। ‘सी-गल’ यदि मछलियों के शिकार के लिए समुद्र में जाती है, तो समझो कि मौसम निश्चित रूप से अच्छा रहेगा, परंतु यदि वह अपने ही क्षेत्र में लगातार उड़ती रहे तो समझना चाहिए कि मौसम शीघ्र ही खराब होने वाला है। वैसे तो सामान्यतया सभी समुद्री पक्षियों में कोई-न-कोई विशेषता पाई जाती है, लेकिन पफिन अपनी विशेषताओं में कुछ ज्यादा ही विशेष है। इसे समुद्री तोता भी कहा जाता है। ये अपने आप में कुशल तैराक व गोताखोर होते हैं। इन्हें 200 फीट की गहराई तक गोता लगाते हुए जाँचा गया है।

अपनी चोंच में एक ही बार में ढेर सारी मछलियाँ पकड़ने के लिए पफिन विख्यात है। एक पफिन की चोंच में 72 मछलियाँ भी देखी गई है। यह पफिन बहुत ही जिज्ञासु व सामाजिक प्रवृत्ति का पक्षी है। तटवर्ती चट्टानों के क्षेत्र में इनके घोंसलों की विशाल कालोनियां देखी जा सकती है। प्रजननकाल में इनकी कालोनियों में इनकी संख्या हजारों में नहीं बल्कि लाखों में होती है। पफिन पाँच वर्ष की उम्र से अपने जोड़े बनाने लगते हैं और इनके ये जोड़े जीवनभर के लिए होते हैं। ये घंटों तक एक-दूसरे को निहारते रहते हैं, मानो एक-दूसरे के लिए इनसे बढ़कर मोहक कोई भी न हो।

पेन्गुइन पक्षी का जीवन भी समुद्र किनारे शुरू होता है। ये समुद्र में ऐसे तैरते हैं माने उड़ रहे हों। यानि कि अंदर डुबकी ये बहुत देर तक रह सकते हैं। पेन्गुइन के पंख एक निश्चित समय के पश्चात् झड़ जाते हैं, कुछ समय के पश्चात् फिर नए पंख निकल आते हैं। जब तक इनके नए पंख नहीं आते, ये पानी में नहीं जाते। ये अपने पारिवारिक जीवन को मिलजुलकर जीते हैं। मादा अंडा देती है तो नर भोजन का इंतजाम करता है। वह समुद्र से मछलियाँ व झींगे इत्यादि निगलकर पेट में एकत्र कर लेता है, फिर मादा के पास आकर उगल देता है। इस प्रकार मादा अंडों पर बैठे-बैठे ही भोजन कर लेती है। मादा पेन्गुइन मातृत्व का एक भावपूर्ण उदाहरण है। यह अंडों से बच्चा निकलने के दो से चार महीनों के अंतराल में अपने अंडों से हटती नहीं, चाहे जितनी बरफ पड़े या बर्फीली हवाएँ चलें।

पक्षियों की इस रंग-बिरंगी दुनिया में एक और खूबसूरत पक्षी है ‘हनी ईटर’ जिसकी लगभग 170 प्रजातियाँ सारी दुनिया में पाई जाती हैं। इसके नाम से ही स्पष्ट है इन्हें फूलों का रस बेहद प्रिय होता है ये पक्षी कई बार फूलों का रस पीने से नशे में चूर भी हो जाते हैं। ऐसा तब होता है जब वर्षा या सूर्य की किरणों के कारण फूलों का रस मादक हो जाता है। अफ्रीका के जंगलों में पाए जाने वाले ‘शहद पक्षी’ को यह नाम उसके कार्य के अनुरूप वहाँ के स्थानीय निवासियों ने दिया हुआ है। मनुष्य के बुलाने पर यह पक्षी झाड़ियों से चहकते हुए मनुष्य के पास आ जाता है और मधुखोजी व्यक्ति के आगे उड़ता हुआ उसे शहद के छत्ते तक मार्गदर्शक के रूप में ले जाता है। इस पक्षी को बुलाने का तरीका भी विचित्र है। मधुखोजी व्यक्ति अपने हाथ में लकड़ी के दो टुकड़ों को लेकर आपस में रगड़ने लगता है। इस इशारे को समझकर यह पक्षी प्रसन्नतापूर्वक मनुष्य के नजदीक आ जाता है। इसके संबंध में एक रोचक बात यह है कि यह स्वयं शहद नहीं खाता, अपितु मधुमक्खियों के उजड़े हुए छत्तों की मोम को खाता है।

जहाँ तक पक्षियों के दुश्मनों की बात है, तो मनुष्य के अलावा स्वयं पक्षी भी एक-दूसरे के प्रबल दुश्मन हैं। इनमें बाज का नाम प्रमुख है। यह आक्रामक पक्षी घोंसला बनाता नहीं, बल्कि दूसरे बड़े पक्षियों के घोंसलों पर जबरन कब्जा कर लेता है। यह अपने शिकार पर पूरे जोश के साथ झपटता है। बाज में भागने की बजाय आक्रमण करने की प्रवृत्ति होती है। बाज के संबंध में एक रोचक तथ्य यह है कि जिसे हम ढलती उम्र कहते हैं, वह उसके सौंदर्योत्कर्ष का समय होता है। बाज में देखने की अद्भुत क्षमता होती है। यह आकाश में उड़ते हुए आधा मील दूर से भी किसी झुरमुट में छिपी हुई टिड्डी को देखने की क्षमता रखता है। न्यूजीलैंड के राष्ट्रीय पक्षी ‘किवी’ के पाँवों में गजब की शक्ति होती है। कुत्ते के पाँवों जैसे अपने मोटे पैरों से यह पक्षी तेजी से उड़ सकता है। कड़ी जमीन पर भी अपने रहने के लिए यह खोह खोद लेता है और किसी से मुठभेड़ हो जाए तो घोड़े जैसी दुलत्ती मारकर उसके हौसले भी पस्त कर सकता है।

अपनी अनेक विशेषताओं के साथ ही पक्षियों में मेकअप करने की कला भी होती है। विश्व के अधिकाँश शीतोष्ण कटिबंध क्षेत्रों में पाई जाने वाली बिटर्न नाम की चिड़िया मेकअप करने वाली चिड़िया के नाम से प्रसिद्ध है। बिटर्न के परों से एक प्रकार का पाउडर गिरता है, जिससे वह अपनी गरदन और सिर को साफ करती है। इसके तुरंत बाद एक तेल अपने पंखों पर मिलती है, जो इसकी प्रीन ग्रंथि से निकलता है। इस प्रकार पाउडर व तेल के इस्तेमाल से यह अपना संपूर्ण मेकअप करती है।

पक्षियों की अद्भुत दुनिया के ये बहुत सीमित उदाहरण हैं, जो ये बताते हैं कि प्रकृति को अपनी संतानों से उतना ही प्यार-दुलार है, जितना कि मनुष्य से। हाँ, मनुष्य ज्येष्ठ अवश्य है, इस वजह से उसकी यह जिम्मेदारी भी बनती है कि सभी के साथ हिल-मिलकर रहे। यदि मनुष्य अन्य जीव-जंतुओं के वैभव व विभूतियों को जान सके तो फिर प्रकृति में असंतुलन की समस्या ही बाकी नहीं रहेगी।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118