जब वे शासन सत्ता सँभाल रहे थे, तब वे जज भी थे, उनको विचार करना चाहिए था, सीता की बात सुननी चाहिए थी कि वह क्या कह रही है। वह यह कह रही थी कि हम निर्दोष हैं। उसकी बातों को न सुनना उनकी गलती थी तथा जो डिसीजन लिया, वह भी गलत था। आपको इस प्रकार के कथानकों को काट देना चाहिए, जिसमें कहा गया है कि गलती धोबी की थी और सजा सीताजी को मिली। हम रामचन्द्रजी के अनुयायी हैं परन्तु हम अंधे अनुयायी नहीं हैं। उनकी गलत बातों का हम समर्थन नहीं करेंगे। हमारा मिशन बहुत दिनों से व्रत कथा सुनाता रहा है। हम केवल सत्य बातों को मानेंगे, उसे सुनायेंगे। आप मजहब की हर बातें न मानें, जो सत्य हैं उसे मानें, क्योंकि भगवान उसे कहते हैं जो सत्य है। अतः आप सत्य को, विवेक को, इनसाफ को नारायण मानिए तथा उसी कार्य के लिए गतिशील रहिए तो आपको लाभ होगा।
अब हम आपसे यह कहते हैं कि आप रामायण के माध्यम से परिवार, समाज तथा देश को नयी प्रेरणा तथा प्रकाश दीजिए। उसके नये पन्ने पलट कर सबको बतलाइये। भगवान राम के बहुत से पन्ने बड़े ही महत्वपूर्ण हैं तथा बहुत-से पन्ने ऐसे हैं जिस पर बहस करना हमें मंजूर नहीं है। भगवान की वह बात हमें नामंजूर हैं, जो अनुपयोगी है। हमारा उस अंश से ज्यादा सम्बन्ध हैं, जो उपयोगी हो सकता है, दिशा दे सकता है। एक बात और आती है कि रामचन्द्र जी ने दशरथ जी को पिण्डदान देने के लिए माँस का पिण्ड बनाया। यह बात भी हम नहीं मानते है। रामचन्द्र जी ने रावण मारा था, श्रीकृष्ण जी ने गोवर्द्धन उठाया था, इस इस प्रकार की बातें तो हम मानने के लिए तैयार है, पर भगवान की अंतर्गल बातों को हम नहीं मानेंगे। अतः आप यह समझ लीजिए कि आप इस तरह की बातें अपने व्याख्यानों में कभी नहीं करेंगे। हम वास्तव में किसी देवी, देवता या किताब के गुलाम नहीं हैं। हम तो सत्य के पुजारी हैं। हम अकल सत्य और इनसाफ के गुलाम हैं। आप गलत बातों का समर्थन मत करें। श्रीकृष्ण भगवान ने सोलह सौ रानियाँ की थीं, तो हम तीन कर लें तो क्या गलत है? बेकार की बातें मत करें, अपने विचारों को ठीक रखें।
द्वितीय महायुद्ध में ब्रिटेन के एक यहूदी ने ब्रिटेन को अपने अथक परिश्रम और लगनपूर्ण वैज्ञानिक उपलब्धियों से युद्ध - विजय में महत्वपूर्ण सहयोग दिया। वैज्ञानिक की विशेष सैनिक सेवाओं के लिए अधिकारियों ने पुरस्कार देने की इच्छा प्रकट की।
एक उच्च ब्रिटिश शासनाध्यक्ष ने प्रश्न किया-आपने ब्रिटेन की महान सेवा की है, इस उपलक्ष्य में ब्रिटेन आपका सम्मान करना चाहता है। बताइए, आपकी महान सेवाओं के बदले हम आपको क्या दे सकते हैं?”“
करोड़-दो करोड़ की सम्पत्ति, कोई जागीर या पद- प्रतिष्ठा प्राप्त की जा सकती थी। एक बार मन में भावी जीवन का रस-विलासपूर्ण आकर्षण सामने आ प्रस्तुत हुआ, किन्तु दूसरे ही क्षण अन्तःकरण ने कहा-क्षुद्र अतिक्षुद्र स्वार्थ या लौकिक वासना के पीछे अपने धर्म, संस्कृति और जातीय हित को न भूल, कुछ माँगना है, तो धर्म के लिए माँग। चिरंतन धर्म की रक्षा में यदि कुछ योगदान बन सके, तो यह न केवल तेरे, अपितु सारी यहूदी जाति के गौरव का एक भव्य इतिहास बनेगा।”“
और तब उस वैज्ञानिक ने कहा-मान्यवर! यदि आप हमें कुछ दे सकते हैं, तो यहूदियों की मातृ-भूमि वासना कर दें, ताकि हम अपने धार्मिक आदर्शों की रक्षा कर सकें।”“ अंग्रेजी बड़े कृतज्ञ थे। उन्होंने फिलिस्तीन का कुछ भाग दे दिया, जहाँ यहूदी पुनः संगठित हुए। थोड़े-से यहूदियों ने अपने निजी स्वार्थों को त्यागकर अपनी जाति के लिए सर्वस्व त्याग के इस उदाहरण को आदर्श बनाया। सब यहूदी रेगिस्तानी इलाके को हरा-भरा बनाने में जुट गये और सबके सामूहिक श्रम का ही फल है कि आज इज़राइल न केवल आन्तरिक दृष्टि से ही सम्पन्न है वरन् छोटा होने पर भी विश्व-रंगमंच पर एक विशिष्ट महत्व रखता है।
*समाप्त*