दीपक का अस्तित्व (kahani)

May 1998

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दीपक जल रहा था, घृत चुकने को आया। लौ क्षीण हो चली। वायु के झोंकों ने देखा कि दीपक पर विजय पाना आसान है, तो वृन्द-वृन्द मिलकर तेज आक्रमण करने लगे। अंधकार नीचे दबा पड़ा था, अट्टहास कर हँसा और दीपक-बोला अब तो तुम्हारा अन्त आ गया। अब कुछ ही देर में यहाँ उजाला होगा।”

दीपक मुस्कराया और बोला-बन्धु यह देखना विधाता का काम है। मेरा ध्येय है-प्रकाश के लिए निरन्तर जलना, सो अब अन्त समय उससे विमुख क्यों होऊँ।” यह कहकर वह एक बार इतने वेग से जला कि वहाँ का सम्पूर्ण अन्धकार सिमटकर रह गया, भले ही दूसरे क्षण दीपक का अस्तित्व स्वयं भी शेष न रहा ।


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