दुनिया के कट्टर और खूँखार बादशाहों में तैमूरलंग का भी नाम आता है व्यक्तिगत महत्त्वाकाँक्षा, अहंकार और जवाहरात की तृष्णा से पीड़ित तैमूर ने एक बार विशाल भू-भाग को देखकर बगदाद में उसने एक लाख मरे हुए व्यक्तियों की खोपड़ियों का पहाड़ खड़ा कराया था। इसी बात से उसकी क्रूरता का पता चल जाता है।
एक समय की बात है। बहुत से गुलाम पकड़कर उसके सामने लाये गये। तुर्किस्तान का विख्यात कवि अहमदी भी दुर्भाग्य से पकड़ा गया। जब वह तैमूर के सामने उपस्थित हुआ, तो एक विद्रूप-सी हँसी हँसते हुए उसने दो गुलामों की ओर इशारा करते हुए पूछा-सुना है कि कवि बड़े पारखी होते है, बता सकते हो इनकी कीमत क्या होगी?”
“इनमें से कोई भी 4 हजार अशर्फियों से कम कीमत की नहीं है।” अहमदी ने सरल किन्तु स्पष्ट उत्तर दिया।तैमूर ने अभिमान से पूछा ”मेरी कीमत क्या होगी?”। निश्चिंत भाव से अहमदी ने उत्तर दिया ”यही कोई 24 अशर्फी।”।
तैमूर क्रोध से आगबबूला हो गया। चिल्लाकर बोला-बदमाश! इतने में तो मेरी सदरी भी नहीं बन सकती, तू यह कैसे कह सकता है कि मेरा मूल्य कुल 24 अशर्फी है।”
अहमदी ने बिना किसी आवेश या उत्तेजना के उत्तर दिया-बस वह कीमत उसी सदरी की है, आपकी तो कुछ नहीं। जो मनुष्य पीड़ितों की सेवा नहीं कर सकता, बड़ा होकर छोटों की रक्षा नहीं कर सकता, असहायों की, अनाथों की जो सेवा नहीं कर सकता, मनुष्य से बढ़कर जिसे अहमियत प्यारी हो उस इनसान का मूल्य चार कौड़ी भी नहीं, उससे अच्छे तो यह गुलाम ही है, जो किसी के काम तो आते हैं।”