कृत्रिम जीवनशैली जन्म देती है कैंसर को

May 1998

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नारी के सामान्य स्वास्थ्य को इन दिनों कैंसर ने जिस तरह प्रभावित किया है, वैसा किसी अन्य रोग ने नहीं। अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि विश्वभर में 60 प्रतिशत महिलाएँ अपनी अधेड़ उम्र के बाद किसी-न-किसी अंग के कैंसर से ग्रस्त हो जाती है। इनमें अकेले 40 प्रतिशत मामले स्तन कैंसर के होते है।

पिछले दिनों स्तन कैंसर के कारणों को जानने के लिए कई देशों में इस पर व्यापक अनुसंधान किए गए। अमेरिकी मेडिकल एसोसिएशन की स्वास्थ्य संबंधी पत्रिका में इस आशय की एक बिलकुल ही नई जानकारी प्रकाशित हुई हैं। उसमें इसका कारण ‘मोटापा’ बताया गया है। शोध दल प्रमुख डायन विल्सन ने चेतावनी देते हुए कहा है कि महिलाओं कि महिलाओं को 18 वर्ष की आयु से लेकर रजोनिवृत्ति काल तक अपने वजन को 5-10 पौण्ड से अधिक किसी भी प्रकार नहीं बढ़ने देना चाहिए। अन्यथा बढ़ा अतिरिक्त भार स्तन कैंसर की संभावना को दुगुना बढ़ा देगा।

लगभग ऐसा ही निष्कर्ष ‘हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ’ में शोधरत चीनी मूल के अमेरिकी विज्ञानी फिपिंग हुआँग का है। वे यह मानते हैं कि मोटापे से शरीर की स्वाभाविक प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न होता है, जो कैंसर के रूप में सामने आता है।

हार्वर्ड स्कूल में इस संबंध में लगभग एक हजार महिलाओं पर एक अध्ययन किया गया। इनमें आधी से अधिक स्त्रियाँ स्थूलकाय थीं, जबकि शेष कृशकाय। भारी-भरकम देह वाली महिलाओं में 40 प्रतिशत ऐसी थीं, जिनका वजन रजोनिवृत्ति के बाद तेजी से बढ़ा, इन नारियों में 70 प्रतिशत मामले स्तन कैंसर के पाये गए। कृशकाय स्त्रियों में सिर्फ 5 प्रतिशत मामले कैंसरजन्य थे, वह भी दूसरे अंगों के।

इससे पूर्व के अनुसंधानों से यह निष्कर्ष निकाला गया था कि रजोनिवृत्ति से पूर्व होने वाले कैंसर को मोटापा रोकने में सहायता करता है। इसके पीछे विज्ञानवेत्ता यह तर्क देते थे कि स्थूलता के कारण महिलाओं में डिम्बाणु कम बनते हैं। कम डिम्ब बनने के कारण एस्ट्रोजेन नामक रक्तस्राव भी स्वल्प होता है। यह हार्मोन कैंसरकारक है। इसके अल्प मात्र में निर्मित होने से कैंसर आशंका भी न्यून रहती है।

वर्तमान अध्ययन से उपरोक्त तथ्य की भी पुष्टि हुई, किन्तु इस अध्ययन में रजोनिवृत्ति (मेनोपाँज) के बाद की स्थिति से संबंधित निष्कर्ष महत्वपूर्ण है। वैज्ञानिकों के अनुसार मासिक धर्म रुकने के उपरान्त उस प्रौढ़ आयु में जब गर्भाशय का मुँह बन्द हो जाता है, तो शरीर की स्थूलता एस्ट्रोजेन का मुख्य स्रोत बन जाती है। इस अवस्था में एस्ट्रोजेन पर्याप्त परिणाम में बनने लगता है, जो खतरनाक है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस स्थिति से बचने के दो उपाय हैं- या तो शरीर के वजन को नियंत्रित किया जाए अथवा बढ़े-चढ़े कायिक भार की दशा में बनने वाले एस्ट्रोजेन की अतिरिक्त मात्रा पर एस्ट्रोजेनरोधी दवाइयों द्वारा अंकुश स्थापित किया जाए। इन दोनों में विज्ञानवेत्ता वजन घटाने को ही उपयुक्त और आदर्श उपचार बताते हैं।

लिवरपूल यूनिवर्सिटी के शोधविज्ञानी पाँल वाचटेल ने अनेक वर्षों के गहन अनुसंधान के बाद इस मान्यता को भ्रामक बताया है कि कुँवारी रहने वाली लड़कियों अथवा विवाह के उपरान्त निःसंतान रहने वाली महिलाओं में कैंसर की संभावना सर्वाधिक होती है। उन्होंने करीब चार सौ ऐसी स्त्रियों पर अपना अध्ययन किया, जो या तो अविवाहित थीं अथवा विवाह के उपरान्त संतानहीन। इनमें से दस प्रतिशत स्त्रियों के स्तनों में गांठें पायी गई। इनमें से छः प्रतिशत मामले ही कैंसरजन्य थे। शेष सभी स्वस्थ-सामान्य

उपरोक्त अवधारणा के संबंध में शरीर शास्त्री यह तो स्वीकारते हैं कि गर्भावस्था के दौरान नारी देह में कुछ विशिष्ट प्रकार के स्राव पैदा होते हैं, जो जच्चा-बच्चा दोनों को ही उस दौरान रोगों से सुरक्षा प्रदान करते हैं, किन्तु इसे वे एकदम निर्मूल मानते हैं, कि सन्तानोत्पत्ति मात्र से ही किसी को कैंसर-कवच प्राप्त हो जाता है। वास्तविकता तो यह है कि हर शरीर के अन्दर प्रकृति की ओर से ऐसी व्यवस्था की गई है कि वह उसे निरोग बनाये रख सके। रोग का अर्थ ही ‘शरीर की अव्यवस्था’ है। जब शारीरिक प्रक्रिया को किसी भी प्रकार से बाधित करने का प्रयास किया जाता है अथवा उसका स्वाभाविक-क्रम किसी कारणवश अस्त-व्यस्त हो जाता है, तो यही व्यतिक्रम ‘व्याधि’ के रूप में सामने आता हैं। कृत्रिम जीवनशैली में इस प्रकार के व्यतिक्रम अधिकाधिक सामने आते हैं, अतः वहाँ रोगों की संख्या भी ज्यादा होती है। प्रकृति के सान्निध्य में रहने वाले वनवासियों का जीवनक्रम अधिक प्राकृतिक होता

है, इसलिए उनकी कायिक गतिविधियाँ स्वाभाविक बनी रहती हैं, उनमें हस्तक्षेप करने वाले बाह्यकारक नगण्य होते हैं, अतएव वे अधिकाधिक स्वस्थ बने रहते हैं।

कैंसर की स्थिति में शरीर की स्वाभाविक लयात्मकता से छेड़छाड़ होती है, जिसके परिणामस्वरूप किसी अवयव का कोशिका-विभाजन अचानक पड़ोसी ऊतकों के कोशिका-विभाजन से तीव्र हो उठता है। यही कैंसर है। यों तो इसके ठीक-ठीक कारणों को अभी पता नहीं चल पाया है, पर ऐसा विश्वास किया जाता है कि औद्योगीकरण के दूषित वातावरण में रहने, संश्लेषित कृत्रिम आहार लेने एवं बदलती जीवनशैली के कारण शरीर के अन्दर कुछ ऐसी अस्वाभाविक प्रतिक्रिया होती हैं, जो स्तन सहित विभिन्न अवयवों के कैंसर का कारण बनती हैं।

बनावटी जीवनशैली प्रकृति के विरुद्ध है। हम अधिकाधिक प्राकृतिक रहें और प्राकृतिक आहार लें। इससे शरीरगत क्रियाएँ संतुलित एवं नियंत्रित बनी रहती हैं। काया के भीतर सुव्यवस्था बनी रहे, तो अव्यवस्थाजन्य रोगों को पनपने का कोई मौका नहीं मिलेगा, फलतः न सिर्फ स्तन एवं अन्यान्य अंगों के कैंसर से बचा जा सकेगा, वरन् दूसरे रोगों से बचे रहने की गारण्टी भी मिल जाएगी।


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