माँ ने कहा-बेटे! अब तुम समझदार हो गये हो। स्नान करने के बाद प्रतिदिन तुलसी के वृक्ष में जल चढ़ाया करो। तुलसी की उपासना की हमारी परम्परा पुरखों से चली आ रही है।”
बेटे ने तर्क किया- “माँ, तुम कितनी भोली हो? इतना भी नहीं जानतीं कि यह तो पेड़ है? पेड़ों की भी कहीं पूजा की जाती है। इसमें समय व्यर्थ खोने से क्या लाभ है?” “लाभ है मुन्ने! श्रद्धा कभी निरर्थक नहीं जाती। हमारे जीवन में जो विकास और बौद्धिकता है, उसका आधार श्रद्धा ही है। श्रद्धा छोटी उपासना से विकसित होती है और अन्त में जीवन को महान बना देती है, इसलिए यह भाव निर्मूल नहीं।”
तब से विनोबा भावे जी ने प्रतिदिन तुलसी को जल देना शुरू कर दिया। माँ की शिक्षा कितनी सत्य निकली, इसका प्रमाण अब सबके सामने है।