दीपक का कर्तव्य (Kahani)

April 1998

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पूर्व दिशा में उषा की लालिमा दिखाई देने लगी। अन्धकार के विदा होने का समय निकट आ गया। भगवान भास्कर भी अपने रथ पर सवार होकर गगन पथ पर आगे बढ़ने लगे। दीपक की लौ ने अपना मस्तक उठाकर सूर्य को प्रणाम किया।

सूर्य को यह देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई कि मेरी अनुपस्थिति में दीपक ने अपने कर्तव्य को अच्छी तरह निभाया है। वे दीपक को वरदान देने के लिये तैयार हो गये।

दीपक की आत्मा सहज भाव से बोल पड़ी सूर्यदेव संसार में अपने कर्तव्यपालन से बढ़कर कोई अन्य पुरस्कार हो सकता है मैं नहीं जानता। मैन तो आपके द्वारा दिये गये उत्तरदायित्व का निर्वाह किया है। इसमें प्रशंसा की बात ही क्या है। सूर्य ने सन्तुष्ट होकर अपने रथ को आगे बढ़ने का आदेश दिया।

सहजभाव से निभाया कर्तव्य मानवता का प्रतीक है।


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