अपनों से अपनी बात-2 - भावी आयोजन अब इस रूप में संपन्न होंगे

April 1998

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इन दिनों सारे भारत वर्ष में युगनिर्माण योजना, शान्तिकुञ्ज, हरिद्वार के प्रज्ञा अभियान की संस्कार-महोत्सव श्रृंखला के अंतर्गत स्थान-स्थान पर आयोजनों की श्रृंखला चल रही है। जिस रूप में इन आयोजनों की परिकल्पना की गयी थी, उसमें संस्कारों की महत्ता को प्रमुख मानकर यज्ञ व कुण्डों की संख्या को द्वितीय वरीयता पर रखा गया था। हो यह गया है कि भावावेश में आश्वमेधिक दिग्विजय करने वाले देवसंस्कृति को जन जन तक पहुँचाने का उत्साह दिखाने वाले हमारे युगसैनिक लगता है कहीं भटक से गए है। यदि यह लक्ष्य पूरा होता है तो परमपूज्य गुरुदेव परमवंदनीय माताजी की कण-कण में संव्याप्त सूक्ष्मसत्ता सभी को कोटि-कोटि आशीर्वाद देगी। साथ में सुधारात्मक संघर्षात्मक कार्यक्रमों की श्रृंखला भी अनुयाज प्रयास क्रम में चल पड़ी है। कहीं नशा उन्मूलन की रैली निकल रही है, तो कहीं पर विवाहोन्माद प्रतिरोध दहेज विरोधी आंदोलनों की श्रृंखला चल पड़ी है। यह शुभ चिह्न है। ज्ञानयज्ञ प्रक्रिया के अंतर्गत स्थान स्थान पर साहित्य केन्द्र स्थापित हो गए हैं-यह भी प्रसन्नता की द्योतक सक्रियता है।

अब बारी आती है, इस वर्ष के उत्तरार्द्ध के कार्यक्रमों की, जिनके विषय में निर्धारण अभी से किए जाने लगे है। इनके विषय में सभी विस्तार से समझ लें तो अच्छा है। बालकौतुक की तरह इधर से उधर उछलकर सब कुछ माँगने वालों कार्यक्रमों की मूलभावना को न समझ पाने वालों को बाद में पछताना न पड़े इसलिए स्पष्ट भाषा में लिखा जा रहा है। कई परिजनों का आग्रह रहता है कि हमारे यहाँ प्रज्ञापुराण कथा प्रधान आयोजन अपनी अभिनव शैली के कारण बड़ी भीड़ बटोरते है तो वह कैसा हो यह मार्गदर्शन शान्तिकुञ्ज का ले, किसे कथा के साथ सारा आयोजन संपन्न करना है यह निर्णय शान्तिकुञ्ज तंत्र पर ही छोड़ दें।

इस वर्ष सितम्बर के तृतीय सप्ताह से आरम्भ हो रहे आयोजनों में आमूल चूल परिवर्तन किया जा रहा है। ये आयोजन स्थान के अनुरूप चार दिवसीय भी हो सकते हैं एवं अपवाद रूप में कही-कहीं पाँच दिवसीय भी। इनमें प्रातः यज्ञ एवं ध्यान, दिन में सामाजिक बौद्धिक काँति संबंधी मार्गदर्शन एवं शाम को प्रज्ञापुराण कथा आयोजन के माध्यम से लोक शिक्षण का समावेश रहेगा। तीसरे दिन यही क्रम प्रातः से संध्या तक मात्र कथा का स्वरूप छोटा संकल्प प्रधान होकर दीपयज्ञ प्रधान हो जाएगा। अंतिम दिन पूर्णाहुति के साथ ही प्रज्ञापुराण कथा का अंतिम सोपान मध्यान्तर में संपन्न होकर टोली कार्यकर्ताओं की अनुयाज गोष्ठी लेकर आगे बढ़ जाएगी। अपवाद रूप में कहीं कथा मध्याह्न में एवं बौद्धिक उद्बोधन दी तीन खण्डों में शाम को हो सकते हैं।

इन नूतन अभिनव आयोजनों की मात्र तीन टोलियाँ 22 जनवरी तक के लिए निर्धारित की गयी है। इनकी संख्या बढ़ायी नहीं जाएगी, न ही तिथि 22 जनवरी, 1999 के बाद की बढ़ायी जाएगा, बसंत पंचमी के रूप में इस दिन से साधनावर्ष की शुरुआत होगी, जिसके स्वयं के विषय में गायत्री जयंती गुरुपूर्णिमा पर्व तक सबकी जानकारी हो सकेगी। कार्यक्रम संबंधी निर्धारित प्रारूप भरकर आने पर सभा पक्षों पर विचार विमर्श कर ही कार्यक्रम तय हो सकेंगे। पूर्व निर्धारित सभी कार्यक्रम इसी प्रकार परिवर्धित किये जा रहे हैं।


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