शक्ति का आधार संयम (Kahani)

April 1998

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महाभारत लिखने के लिये व्यास जी ने गणेशजी का सहयोग लिया। गणेशजी लिखते गये। महाभारत पूरा हुआ तो व्यास जी ने गणेशजी से कहा महाभाव! मैंने 24 लाख शब्द बोलकर लिखाये आश्चर्य है कि इस बीच आप एक शब्द भी न बोले सर्वथा मौन बने रहे।

गणेशजी ने उत्तर दिया- बादरायण बड़े काम सम्पन्न करने के लिये शक्ति चाहिये और शक्ति का आधार संयम है। संयम ही समस्त सिद्धियों का प्रदाता है। वाणी का संयम न रख सका होता तो आपका ग्रन्थ कैसे तैयार होता?

राजा बालीक ने अपने प्रधान सचिव विश्वदर्शन को पदच्युत कर राज्य से निकाल दिया। विश्वदर्शन एक गाँव में रहते थे। पदच्युत होने के बाद वही आकर बड़े परिश्रम का जीवन बिताने लगे।

एक दिन बालीक को यह देखने की इच्छा हुई कि विश्वदर्शन की कैसी स्थिति है? वह वेश बदलकर उसी गाँव की ओर चल पड़ा। गाँव पहुँचकर उसने देखा कि विश्वदर्शन के मकान के सामने पच्चीसों व्यक्ति बैठे बात चीत कर रहे हैं और प्रसन्न है। विश्वदर्शन स्वयं बड़े प्रसन्नचित्त दिखाई दे रहे थे।

छन्द वेशधारी बालीक ने विश्वदर्शन से पूछा - “महानुभाव! आपको तो राजा ने पदच्युत कर दिया है, फिर भी आप इतने प्रसन्न हैं, इसका रहस्य क्या है?

“मनुष्यता। विश्वदर्शन ने मुस्कुराते हुए और राजा को पहचानते हुए कहा-महाराज पहले तो मुझसे लोग डरते भी थे, पर अब वह डर नहीं है, इसलिए लोगों से खुलकर बात करने और सेवा, सहानुभूति व्यक्त करने में बड़ा आनन्द आता है।

महाराज बालीक ने अनुभव किया, सचमुच पद से लोग डर सकते हैं, सम्मान तो मनुष्यता के अच्छे गुणों का ही होता है। लौटते समय नरेश विश्वदर्शन को पुनः साथ लेते आये और उन्हें उनका पद फिर लौटा दिया।


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