नई रोशनी (Kahani)

April 1998

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दिनभर आपको धूप दी, आपके पुत्र पौत्रों को प्रकाश और गर्मी प्रदान की और आप है। कि मुझे थोड़ी ही देर में विदा कर रहे हैं। कुछ अधिक देर ठहरने देते तो आपका क्या बिगड़ जाता। ढलते हुये सूरज ने मुसकराते हुये क्षितिज के पास लिखित उलाहना भेजा।

गम्भीर स्याही लेकर उत्तर लिखने बैठे तो कुल एक पंक्ति से वह आगे नहीं बढ़ सके। प्रातः के प्रकाश में सूर्य ने उसे पढ़ा। लिखा था- इसलिये कि तुम हर बार एक नई चमक एक नई रोशनी लेकर आओ और पहले से भी अधिक फैलाओ। सूर्य का सिर श्रद्धा से झुक गया।


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