अपनों से अपनी बात- 3 - महाकुम्भ की पावन बेला एवं आगामी विशिष्ट सत्रों की श्रृंखला

April 1998

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परमपूज्य गुरुदेव ने शान्तिकुञ्ज को सृजनशिल्पियों की छावनी नाम दिया था। एक ऐसे छावनी, जहाँ युगसैनिक तैयार होते है, तराशे जाते है एवं फिर क्षेत्रों में जाकर वे परिष्कृत धर्मतन्त्र से लोकशिक्षण की प्रक्रिया सम्पन्न करते है। इन दिनों हरिद्वार में महाकुम्भ पर्व पर जब हम विभिन्न प्रकार की छावनियाँ अखाड़ों की पेशावाई, ध्वजा चढ़ाया जाना व उनकी शोभायात्रा देखते है तो लगता है कि संभवतः यही स्वरूप हमारे ऋषियों की मनःस्थिति में रहा होगा कि धर्मतंत्र के दिग्गज युगसैनिक इन कुम्भरूपी विराट ज्ञानयज्ञों वाजपेययज्ञों में बारह वर्ष पूर्व के तथा बीच बीच के वर्षों में अन्य स्थानों पर हुए महापर्वों के निर्धारणों की समीक्षा भी करें, साथ ही भविष्य की योजना भी बनाएँ। अब तो मात्र चिह्न पूजा रह गयी है। स्वरूप कुछ से कुछ हो गया है। मात्र पर्यटन कुछ लक्षण कुतूहल का प्रदर्शन ही एक बनकर रह गया है, जबकि राष्ट्र के अभिनव निमार्ण की दिशा धाराओं को यहाँ सुनियोजित किया जाना चाहिए था। अधिवेशन यदि माना जाता तो निश्चित पुनः जाग उठता, कहीं किसी प्रकार के नैतिक पतन की कोई गुँजाइश नहीं रहती।

विगत अतीत में जो कुछ हो चुका, हो रहा है, उसकी चर्चा तो मात्र मानसिक अवसाद ही लाएगी। अब यह सोचा जाना चाहिए किया क्या जाए जग हम सभी बड़ी विलक्षण प्रक्रिया से गुजर रहे है, समूची धरती के भाग्य के नए सिरे से लिखे जान ले के घटनाक्रम के साक्षी बन रहे है।यह सहस्राब्दी जा रही है दूसरी आ रही है। जो कैलेण्डर प्रचलन में आ गया है इस ईसवी सन का बदलाव है मात्र ढाई वर्ष सन् 2001 में ले जाएगा। विक्रमी संवत् 2055 से लेकर 2065 तक की अवधि भारी उलट पुलट से भरी हुई है। काफी हमारे अभी के क्रिया–कलापों में पैनापन आए हम गतिशील हो एवं समय की महत्ता को पहचानकर संवेदना जगाने वाली इक्कीसवीं सदी में शान के साथ पदार्पण करने हेतु तैयारी कर सके।

इन दिनों हरिद्वार नगरी में तो चकाचौंध लाने वाली भव्यता चरम शिखर पर दिखाई देती है। अंतिम शाही स्नान 13, 14 अप्रैल को है, जब बैसाखी के साथ मेष संक्रान्ति की पावन बेला में लोग गंगाजी में गोते लगाएँगे। अभी से हरिद्वार नगर पुण्य लूटने वालों की भीड़ से भरा हुआ है। एक ज्ञानवर्धन प्रदर्शनी एवं साहित्य, वनौषधि विक्रय केंद्र का शान्तिकुञ्ज द्वारा भी प्रदर्शनी कैंपस में विगत 20 मार्च से शुभारंभ किया गया है। शान्तिकुञ्ज, हरिद्वार, सभी का प्रिय होने से जब से 1 मार्च, 1998 से 5 दिवसीय सत्रों की शृंखला आरंभ हुई है, लगभग अपनी निर्धारित संख्या से अधिक भरा हुआ है। पूरे अप्रैल माह यही स्थिति रहेगी। यों तो महाकुम्भ का अंतिम स्नान 29 अप्रैल अक्षय तृतीया का है, किंतु इसी दिन उत्तराखण्ड के सभी धामों के कपाट भी खुल जाएँगे। इसलिए भीड़ का आवागमन तो सतत् बना ही रहेगा - बना ही रहना है।।

जिस किसी को हरिद्वार की नव सृजन को संकल्पित इस छावनी में प्रशिक्षण हेतु वास्तविक आध्यात्मिक भावकल्प हेतु एवं आने वाले समय की तैयारी हेतु आना है, उसे समय अप्रैल के बाद का चुनना चाहिए। जून तक 5 5 दिन के सत्र यथावत चलते रहेंगे। इनके साथ साथ एक एक माह के सत्र भी युगशिल्पी स्तर के प्रशिक्षण हेतु नियमित चलेंगे। 5 दिन के इन सत्रों में साधना मात्र इतनी ही हो सकती है कि सत्ताईस माला प्रतिदिन के हिसाब से उपलब्ध 4 दिनों में 108 माला का एक अनुष्ठान संपन्न हो सके, जब तक नये उपलब्ध न लाये कि स्वीकृति नहीं है तो क्या, ठहरने खाने−पीने को मिल ही जाएगा। मई जून के सत्रों में यह मर्यादा बनाए रखने की अपेक्षा सभी कार्यकर्ता बंधुओं, पाठकगणों से शान्तिकुञ्ज का तंत्र करता है

अगले दिनों और भी विशिष्ट सत्र योगसाधना प्रधान एवं समग्र कार्य क्षेत्र को सँभालने वाले अग्रगामियों का एक एवं तीन माह के प्रशिक्षण तथा रचनात्मक कार्यक्रमों के अंतर्गत सार्थक शिक्षा व सार्थक चिकित्सातन्त्र फिलहाल मात्र यही निवेदन कि महाकुम्भ की सभी तिथियाँ पावन है आप जहाँ है, वही रहकर युगसृजन की प्रक्रिया में और गतिशील होने का संकल्प इन दिनों में ले व स्थूल न सही सूक्ष्म रूप सतत् शान्तिकुञ्ज रहने ज्ञानगंगोत्री में स्नान का ध्यान अवश्य करते रहे।


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