त्याग की परिभाषा (Kahani)

April 1998

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

मुमुक्षु ने मुसकराते हुए कहा-बन्धुओं। मैंने कोई त्याग नहीं किया है वरन् लाभ लिया हैं बैंक में रुपये जमा करना त्याग नहीं वरन् ब्याज का लाभ हैं ग्राहक को वस्तु देकर दुकानदार किसी प्रकार के त्याग का परिचय नहीं देता वह तो बदले में उसकी कीमत लेकर लाभ कमाता हैं। समुद्र के किनारे खड़े हुए व्यक्ति को जब मोती दिखाई दे तो उन्हें समेटकर कौन झोली न भरना चाहेगा। उस समय यदि उसकी झोली में शंख और सीपियाँ होंगी तो उन्हें खाली कर मूल्यवान वस्तुएँ भरना क्या त्याग की वृत्ति का परिचायक हैं? उसी प्रकार क्रोध लोभ मोह आदि को छोड़कर अपने स्वभाव में अहिंसा परोपकार और क्षमा जैसे सद्गुणों को स्थान देना त्याग नहीं वरन् एक प्रकार का लाभ है। मैंने भी तो कोई त्याग नहीं किया है वासनाओं से छुटकारा पाना कोई त्याग या साहस नहीं हुआ। ”त्याग की यह परिभाषा सुन सभी लोग नतमस्तक होकर चले गये।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles