सत्य की आँच (Kahani)

April 1997

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

एक बार विद्यार्थी कपिल चोरी के अपराध के सन्देह में पकड़े गये। उन्हें राजा के सामने लाया गया। राजा को जब वास्तविकता मालूम हुई कि कपिल सिर्फ सन्देह में ही पकड़े गये थे, क्योंकि कपलि सिर्फ दो मासा स्वर्ण पाने के लालच में राजा को आशीर्वाद देने ही आये थे और वह बात आरक्षकों को मालूम नहीं थी।

राजा ने कपिल से मुँह माँगा इनाम माँगने को कहा। कपिल ने सोचा धन माँग लूँ तो अच्छा है, किन्तु धन बिना सत्ता के सुरक्षित नहीं रह सकता। अस्तु, साथ में सत्ता भी होनी चाहिए। अस्तु, कम से कम एक चौथाई राज्य तो राजा से माँगना चाहिए।

किन्तु चिन्तन चलता रहा। कपिल ने सोचा-हिस्से के रूप में राज्य प्राप्त करने पर राजा के बेटों और मुझमें प्रतिस्पर्धा की भावना जाग्रत हो सकती है। आपस में लड़ाई-झगड़े की पूर्ण सम्भावना है तो फिर पूरा राज्य हासिल कर लूँ।

तब कोई झगड़े की सम्भावना न रहेगी। किन्तु चिन्तन निरन्तर अबाध गति से चलता रहा और कपिल अपने आप में तृप्त न हो सके।

तभी राजा ने उनसे पुनः कहा-कपिल! बोलो तुम्हें क्या चाहिए। जो चाहों माँग लो। राज्य का खजाना तुम्हारे लिये खुला है।

कपिल कुछ क्षण मौन रहे और बोले-राजन्! मैंने निर्णय किया है, कि मैं इस अर्थ-संग्रह को त्याग कर आज से अपरिग्रही जीवन बिताऊँगा।

विद्यार्थी कपिल जीवन और धन एवं वैभव का मोह छोड़कर दुनिया के एक सत्य की आँच में तपने चले गये।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles