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April 1997

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धैर्य यस्य पिता क्षमा च जननी शान्तिश्चि गेहिनी। स्तेयमनुसूयं दया च भगिनी भ्राता मनः संयमः॥ यस्य कुटुम्बिनो वद सखे कस्माद् भयं योगिनः।

अर्थात्-”धैर्य जिनका पिता तथा क्षमा जननी है। चिरशान्ति जिनकी पत्नी है, सत्य पुत्र है, दया भगिनी है, मन का संयम भ्राता है, पृथ्वी ही जिनकी शय्या है, दिशाएँ वस्त्र हैं, ज्ञानामृत भोजन हैं, जिसके ये सब कुटुम्बी हैं ऐसे योगीजनों को किससे भय हो सकता है।”


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