आत्मसंतुष्टि (Kahani)

April 1997

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एक दिन बादशाह सुबुक्तगीन शिकार के लिए गए। दिन भर इधर-उधर भटकने के बाद उन्होंने एक हिरनी को अपने बच्चे समेत घास चरते देखा। उन्होंने तीर चलाने की बजाय चुपचाप बच्चे को पकड़ मुड़कर देखा कि हिरनी उनके पीछे-पीछे चली आ रही है और उसकी आँखों से आँसू गिर रहे हैं।

यह देखकर बादशाह का दिल पिघल गया और उन्होंने हिरनी के बच्चे को छोड़ दिया। हिरनी बच्चे को पाकर खुशी से उससे चाटने लगी और जब तक बादशाह उसकी नजरों से ओझल नहीं हो गए, वह उन्हें देखती ही रही। बादशाह सुबुक्तगीन को लगा कि उन्होंने हाथ आया शिकार भले ही खो दिया लेकिन बदले में एक गहरी आत्मसंतुष्टि पा ली, जो हिरनी के बच्चे का वध करके कभी नहीं मिलती।


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