काकिनाड़ा काँग्रेस, 1922 में खादी प्रदर्शनी का भी आयोजन था। प्रदर्शनी के द्वार पर एक दुर्बल-सी स्वयंसेविका पदस्थ थी।
प्रदर्शनी हेतु प्रवेश टिकट का मूल्य दो आने था। एक व्यक्ति बिना टिकट दिखाये अन्दर जाने लगा स्वयंसेविका ने रोक दिया व उससे टिकट माँगा। उस व्यक्ति ने जेब टटोली और कहने लगा कि उसके पास पैसे नहीं हैं। अतः वे कला प्रदर्शनी कल देख लेंगे। पास ही एक वयोवृद्ध काँग्रेसी सज्जन खड़े थे, उन्होंने स्वयंसेविका से कहा-”इन्हें जाने दो, ये बहुत बड़े नेता है। उत्तर मिला, चाहे कितने ही बड़े नेता हों, मुझे यही आदेश है कि बिना टिकट किसी को न जाने दिया जाए, मैं तो नियम को जानती हूँ नेता को नहीं। यह सुन उस व्यक्ति ने स्वयंसेविका की पीठ थपथपाई। उन कांग्रेसी सज्जन से दो आने उधार माँगकर टिकट खरीदा।
वह स्वयंसेविका थी-श्रीमती दुर्गाबाई देशमुख, जो आगे चलकर संसद-सदस्या, योजना आयोग की सदस्या एवं समाज कल्याण बोर्ड की अध्यक्षा बनीं और वह व्यक्ति थे जवाहर लाल, जो भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने।