बरसात आने पर जब बादलों की रिमझिम झड़ी लगती है, तो सूखे हुए नदी-नाले, पोखर-सरोवर भी उफन पड़ते हैं। हर-कहीं जल ही जल दिखाई देने लगता है। खेतों और मैदानों की छटा हिलोरें लेते सागर की सी मालूम पड़ती हैं।
जलमग्नता के इस प्रवाह में कूड़ा-कचरा भी बहने और तैरने लगता है। प्रवाह में पड़कर घास के तिनके भी बिना श्रम के कहीं से कही बहते हुए चले जाते हैं। बड़े और भारी वृक्ष भी पानी के इस बहाव में असम्भव कही जने वाली यात्राओं को अनायास ही पूरी कर लेते हैं। कई बार तो इन लकड़ी के लट्ठों और बहते हुए पेड़ों पर पशु-पक्षी ही नहीं इंसान तक पार हो जाते हैं। लेकिन यह लाभ मिलता तभी तक है, जब तक बरसात का मौसम रहता है और बादलों से वर्षा की अजस्र जलधार बरसती है।
इन्सानी जिन्दगी में भी यदा-कदा ऐसे मौसम आ जाते हैं। मानवता को ऐसा सुअवसर तब मिलता है जब भगवान की इच्छा से कोई देवदूत, महामानव धरती पर आते हैं अथवा स्वयं भगवान ही मानव के वेश में आ जाता है। ये अवतारी चेतनाएँ सूखे संसार को हरियाली से भरने के लिए अजस्र रूप में अमृत जैसी जलाधार बरसाते हैं। उस समय मरे हुए कीट-पतंगों तक के बीज भी हरे हो जाते हैं। घास-तिनकों में भी जीवन लहलहाने लगता है। इस मौके का फायदा उठाकर कितने ही सद्भाव सम्पन्न सहज ही भव-सागर से पार हो जाते हैं और अपने सूखे-नीरस जीवन को हरा-भरा और सरस बना लेते हैं।
भगवान राम आए, वानर-भालू तक तर गए। भीलनी शबरी, अभिशप्त अल्या, उपेक्षित केवट, राक्षस विभीषण सभी धन्य हो गए। भगवान कृष्ण के समय अनपढ़ गँवार ग्वाल-वालों को सहज ही वह लाभ मिल गया जो औरों को कठिनाई से भी नहीं मिलता। बुद्ध ने सामान्य मनुष्यों को ऋषि, तिरस्कृत वेश्या आम्रपाली एवं क्रूरकर्मा डाकू अंगुलिमाल तक को लोकोत्तर महामानव बना दिया। गाँधी के समय न जाने कितने साधारण व्यक्ति इतिहास पुरुष बन गए।
लेकिन यह अमृत वर्षा होती कभी-कभी ही है। दूरदर्शी, विवेकवान व्यक्ति उस अवसर को पहचानने में और उसका लाभ उठाने में चूकते नहीं। साधारण समय में, सामान्य प्रयत्नों से जो पाया जाना किसी प्रकार भी सम्भव न होता, वह ऐसे ही मौकों पर बिना माँगे, अनचाहे, अनायास ही मिल जाता है। चतुर किसान वर्षा का लाभ लेते हैं। पर जो उस अवसर का महत्व नहीं जानते, वे समय निकल जाने पर पछताते ही रह जाते हैं।
राम का सहारा लेकर हनुमान ऊँचे उठे। कृष्ण का पल्ला पकड़ कर अर्जुन अमर हो गए। बुद्ध के साथ आनन्द-अशोक की चर्चा होती रहेगी। ईसामसीह के साथ बिना पढ़े-लिखे मछुआरे सन्त-महापुरुषों की श्रेणी में आ विराजे। गाँधी के साथ विनोबा और जवाहरलाल जुड़े रहेंगे। रामकृष्ण परमहंस के साथ विवेकानन्द, समर्थ रामदास के साथ छाई हुई बेल भी आकाश को छूने लगती है।
स्वाति नक्षत्र की वर्षा का लाभ लेकर सीप में मोती, बाँस में बंसलोचन, केले में कपूर उत्पन्न होने की बात सुनी जाती है। जो चूक जाते हैं, उन्हें एक साल तक इन्तजार करना पड़ता है। समय व्यक्ति के लिए नहीं लौटता। व्यक्ति को समय की प्रतीक्षा करनी पड़ती है और जब तक वह आए तब तक सतर्कता और तत्परता बरतनी पड़ती है।
देवदूतों का अवतरण विश्व की समस्याओं को हल करने के लिए होता है। वे ‘धर्म संस्थापनार्थाय, विनाशाय च दुष्कृताम्’ के ईश्वरीय संकल्प को पूरा करने के लिए आते हैं। बाधाएँ उनके सामने स्वयं ही साधनों में परिवर्तित हो जाती हैं। पर्वत के समान विशाल अवरोध उनकी महत् शक्ति के समक्ष राई से भी अधिक नगण्य हो जाते हैं। अपनी अपरिमित शक्ति से वे ईश्वरीय प्रयोजन को पूरा करने के साथ-साथ जाग्रत आत्माओं का कल्याण भी करते हैं।
हो भी क्यों न? जहाज में बैठकर सैकड़ों-हजारों को पार जाने का अवसर मिलता है। पर एक बहती टहनी पर बैठकर कौवा भी पार नहीं हो सकता। स्वल्प सामर्थ्य वाले अपना तक कल्याण नहीं कर सकते, दूसरों को क्या पार करेंगे। सकुशल और स्वल्प प्रयास में पार जाने वाले मजबूत नाव और कुशल नाविक का सहारा लेते हैं और तैरना न जानते हुए भी उफनती वेगवती नदी को पार कर लेते हैं।
मानवीय इतिहास के वर्तमान पल भी प्रज्ञावतार की प्रखर तप−साधना से अमृत योग में बदले हैं। युगदेवता ने असहाय एवं दीन-हीनों को अपने जहाज में आ बैठने के लिए आवाज लगायी है। उन्होंने हम सभी को आश्वासन दिया है कि उनके समर्थ आश्रय में अब कोई अपने को निराश्रय न समझे। युग चेतना के महावट की शीतल छाया ने हर अशान्त-क्लान्त, पीड़ित को आमंत्रण दिया है।
अमृत योग के ये पल अब अधिक नहीं हैं। पार्थ सारथी के गीतोपदेश के ये स्वर हमें सिर्फ 2000 तक ही सुनने को मिलेंगे। बाद में ये गुँजन सूक्ष्म से कारण में बदल जाएँगे। फिर तो उन्हीं के हृदयों में उनकी गायी गीता धड़केगी, जो उनकी चेतना से जुड़ चुके हैं। इतिहास पुरुष बनाने, महामानव के रूप में हमें गढ़ने के लिए युग के महानायक महाकाल को हमारी बेसब्री से प्रतीक्षा है।
उनका आश्रय, जहाज का आश्रय लेकर पार जाने की तरह है। बुद्धिमान वहीं होंगे, जो इसकी महत्ता, अलौकिकता का ध्यान रखकर इस जहाज में आने की शीघ्रता करेंगे। इक्कीसवीं सदी ऐसे के लिए अनगिनत अनुदान-वरदान, उपलब्धियाँ, विभूतियाँ लेकर आ रही है।
उनका आश्रय, जहाज का आश्रय लेकर पार जाने की तरह है। बुद्धिमान वहीं होंगे, जो इसकी महत्ता, अलौकिकता का ध्यान रखकर इस जहाज में आने की शीघ्रता करेंगे। इक्कीसवीं सदी ऐसे के लिए अनगिनत अनुदान-वरदान, उपलब्धियाँ, विभूतियाँ लेकर आ रही है।