सच्चे सेवाव्रती दम्पत्ति (Kahani)

April 1997

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

युद्ध के बाद ज्यूरिख में भयंकर अकाल पड़ा, साथ ही महामारियाँ भी फूट पड़ीं। इस आग से जूझने के लिए स्वयंसेवकों की जरूरत पड़ी।

ज्यूरिख के समाजसेवी संगठन ने पीड़ितों की सहायता के लिए एक सेवा-समिति गठित की। स्वयं-सेवकों के लिए मार्मिक अपील छपी।

इस पुकार को सुनकर एक नवविवाहित दम्पत्ति सामने आये। पति का नाम था सूसो, पत्नी का सेरलाओं। वे सेवा का आवेदन लेकर आये।

संगठनकर्त्ताओं ने कहा-यदि सच्चे अर्थों में सेवा करनी है, तो आप लोग सन्तानोत्पादन न करने का व्रत लें, अन्यथा उस झंझट के कारण आप सच्चे मन और समय तक लगनपूर्वक काम न कर सकेंगे। विचार कर दूसरे दिन आने के लिए उन्हें कहा गया।

पति-पत्नी दूसरे दिन नियत समय पर सेवाधिकारी के पास पहुँचे। उनने बाइबिल हाथ में लेकर आजीवन बच्चे न जनने की और सदा सेवा धर्म में लगे रहने की प्रतिज्ञा की।

संगठनकर्त्ताओं की आँखों में आँसू छलक आये। उन्होंने उस सच्चे सेवाव्रती दम्पत्ति को हृदय खोलकर आशीर्वाद दिया और काम में जुटा दिया। उनके आदर्श ने अनेकों को प्रेरणा दी और वैसे ही व्रतधारी स्वयं-सेवक एक हजार की संख्या में भर्ती हो गये।

विपत्ति से जूझने में इन सबने मोर्चा सम्हाला और लाखों के प्राण बचायें। सूसो दम्पत्ति के अग्रिम कदम उस क्षेत्र में अभी भी भावनापूर्वक स्मरण किये जाते हैं। उन दिनों भी उन्हें धर्मप्राणों से बढ़कर आदर मिला था। समाज को समर्पित ऐसे अग्रदूत विरले ही होते हैं, पर इतिहास में वे अमर बन जाते हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles