सामान्य पुरुष द्वारा कहा गया शास्त्र भी यदि युक्तियुक्त, सत्य का बोध कराने वाला हो तो वह ग्रहण कर लेना चाहिए। अन्य इसके विरुद्ध ऋषि प्रोक्त ही क्यों न हो, त्याज्य है।