विषम परिस्थिति में नवयुग की तैयारी - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी

October 1996

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(पू.गुरुदेव द्वारा अगस्त 1988 में दिया गया वीडियो संदेश)

गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ-

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

देवियों, भाइयों! गज-ग्राह का आख्यान तो आपने सुना होगा; गज-ग्राह के मुँह में फँसा हुआ जब बेबस हो गया, बेहाल हो गया और कोई रास्ता उसको दिखायी नहीं पड़ा तो उसने भगवान को पुकारा, क्योंकि भगवान के सिवाय कोई और सहायता करने वाला था नहीं, उसके पास। तो भगवान को किस तरीके से पुकारा ? भगवान को पुकारने के लिए अनेकों उपाय हैं। कहीं कीर्तन किये जाते हैं, कहीं यज्ञ किये जाते हैं, कहीं अनुष्ठान किये जाते हैं, कहीं जप किये जाते हैं, लेकिन बेचारा गज! यह सब नहीं कर सकता था। उसने एक फूल उसी पानी में से कहीं से उठा लिया और अपनी सूँड़ को ऊँचा करके भगवान को जोर-जोर से पुकारा। भगवान ने उसकी भावना को समझा, हृदय को समझा, मुसीबत को समझा, उसके कष्ट को समझा, अन्तरात्मा को समझा, और दौड़ करके आये तथा अपने सुदर्शन चक्र से ग्राह को मार डाला और गज को छुड़ा लिया। आपको यह कथा मालूम है न ?

ठीक यही कथा, मनुष्य जाति के सामने इस समय भी उपस्थित हुई है। मनुष्य जाति को आप गज के तरीके से मान सकते हैं, जो फिलहाल अनेकों मुसीबत में फँसी हुई है। बहुत-सी मुसीबतें तो पहले भी हमने बतायीं थीं। फिर बता रहे हैं! वातावरण बिगड़ रहा है, वायुमण्डल बिगड़ रहा है, जनता की संख्या अंधाधुँध पैदा होती हुई चली जा रही है। विकिरण बढ़ रहा है, युद्ध की सामग्रियाँ बढ़ रही हैं, जिससे कि हर आदमी की मुश्किलें बढ़ती चली जा रही हैं। यह सब बातें तो पहले भी आपको बतायीं थीं, लेकिन इस साल, जिस साल कि आप सब सामने बैठे हुए हैं, इसकी कुछ विशेष मुसीबतें हैं। उन विशेष मुसीबतों की ओर आपका ध्यान जाना चाहिए, आपको उनका अनुभव करना चाहिए। अभी इस साल कितनी महँगाई है, आपको मालूम है? टमाटर बाजार में बीस रुपया किलो मिल रहा है, आपको मालूम है न, महँगाई का क्या हाल है? महँगाई के मारे सामान्य आदमी का सौ में से निन्यानवे आदमियों का कचूमर निकल रहा है।

दूसरी मुसीबत इस समय की क्या है? प्रकृति हमसे नाराज हो गयी है और उसने नाराज होकर वर्षा के ऊपर अपना प्रभाव डाला है। समय पर वर्षा न होने की वजह से क्या-क्या मुसीबतें आ रहीं हैं, आपको मालुम है न? खेती सूख रही है, कुओं का पानी नीचा होता चला जा रहा है, डेम और नदियों का पानी पहले की अपेक्षा घटता चला जा रहा है। पानी की कमी से बिजली कम पैदा होने की मुसीबत आ रही है। बिजली की कमी से बत्ती, पंखे , कल-कारखानों की पचासों समस्याएँ उठ खड़ी होती हैं, और गाँवों में तो बिजली के बिना ट्यूबवैल चल नहीं पाते। कोई और तरीका तो है नहीं सिंचाई का, क्योंकि नहरों, तालाबों के सूखने से पानी का कोई और इंतजाम नहीं है। हमारे यहाँ ज्यादातर बिजली पानी से ही बनती है। पानी का अभाव हुआ तो बिजली बनाना तो दूर पीने का पानी, नहाने का पानी, खेती का पानी और ट्यूबवैलों से जो कुछ निकल सकता था वह सब भी दैनिक आवश्यकता की पूर्ति नहीं कर सकता। पानी की एक बड़ी भारी मुसीबत है।

महँगाई एक, पानी दो इनके अतिरिक्त एक और तीसरे नम्बर की मुसीबत है जो कि आप लोगों के सामने है। वह कौन-सी है? वह यह है कि पुराने जमाने में जब अकाल पड़ते थे और खाने-पीने की चीजों का अभाव होता था, तो लोग भीख माँगने लगते थे, पर आजकल तो आप जानते ही हैं कि चोरी, उठाईगीरी और डकैतियों के अलावा और कोई तरीका ही नहीं रह गया है। एक ही सबसे सस्ता तरीका है कि हत्या, चोरी और उठाईगीरी की जाये। अवाँछनीय तत्वों की वृद्धि होने की इस साल विशेष संभावना है, आक्रमण बढ़ेंगे और तरह-तरह की मुसीबतें भी बढ़ेंगी। यह तीसरे तरह की मुसीबत है।

क्या साम्प्रदायिकता कुछ ठंडी हुई है ? नहीं, यह बिल्कुल ठण्डी नहीं हुई? विवाद एक जगह ठण्डा नहीं होने पाता कि कहीं और तैयारियाँ शुरू हो जाती हैं। यह साम्प्रदायिकता उपद्रव कृष्ण जन्मभूमि से लेकर बाबरी मस्जिद तक, हर जगह इसी के लिए धुआँ निकल रहा है, हर तरफ आग लग रही है। यह आग विकराल रूप धारण कर ले तो कोई अचम्भे की बात नहीं मानी जाएगी। आतंकवाद! आतंकवाद को आप देख रहे हैं न? कहीं बम फट रहे हैं, कहीं गोलियाँ चल रही हैं, कहीं कुछ और हो रहा है। ये सारी की सारी मुसीबतें-पाँचों मुसीबतें इस तरह की हैं जो कि आजकल हम सब लोगों के ऊपर ठीक उसी तरीके से छायी हुई हैं, जैसे गज के ऊपर मुसीबत आयी थी। अब हम लोग क्या करें ? जो कोई उपाय होगा, वह किया भी जाएगा। जनता करेगी, गवर्नमेंट करेगी, समाज से भी किया जाएगा। जो कुछ भी उपाय संभव है, हम सब लोग करेंगे ही। उसके बारे में तो मुझे कुछ कहना नहीं है। गवर्नमेंट इसके सम्बन्ध में मार्गदर्शन करती ही है। समाज के नेता भी बताते रहते हैं कि इस मुसीबत के वक्त में पानी कम खर्च करना चाहिए। बिजली भी कम खर्च करनी चाहिए। तालाब बनाना चाहिए, कुएँ खोदने चाहिए। सब अलग-अलग उपाय बताते ही हैं। ये भौतिक तरीके हैं। लेकिन इससे भी बड़ा एक आध्यात्मिक उपाय है, जो गज ने अपनाया था। वह क्या ? उसने भगवान को पुकारा था। देवताओं और दैत्यों में जब भी लड़ाई हुई, देवता मुसीबत में आये, तो वे भाग कर के भगवान के पास में गये और यह कहा कि हमारी मुसीबत को आप दूर कर दीजिए। तब भगवान ने कोई न कोई उपाय निकाला, चाहे दुर्गा का निर्माण किया हो, चाहे सीता का , दधीचि की अस्थियों से इन्द्र वज्र बनाया हो, चाहे स्वर्ग से गंगा को धरती पर लाया गया हो, जो भी उपाय किया गया हो, लेकिन किया जरूर गया। ऐसे बड़े उपाय भगवान के द्वारा ही संभव है, इनसान के द्वारा यह संभव नहीं है। भगवान को पुकारने के लिए हमने इस समय में एक बड़ा उपयोगी और बड़ा ही आवश्यक उपाय आपके सामने है और आपको बताया भी जा चुका है कि अब यज्ञ वैसे नहीं होने चाहिए, जिनमें कि सैंकड़ों-हजारों रुपये खर्च हो जाते हैं। जनता भी देने लायक स्थिति में नहीं है और यदि देने लायक भी हो, तो जनता में से हरेक का यह ख्याल है कि यज्ञ से पानी बरसने की संभावना के बारे में हम आपको कोई विश्वास नहीं दिला सकते। फिर इस साल का पूरा समय कैसे कटेगा? हम आपको इस बात की ठीक जानकारी दे करके डराना नहीं चाहते, हैरान नहीं करना चाहते, पर यह जरूर कहेंगे कि वर्षा का सम्बन्ध उससे जुड़ा हुआ है। यज्ञ के सम्पन्न होने पर वर्षा न होने पर जनता क्या कहेगी आपको ? आपका उपहास होगा और यज्ञ का अपमान होगा, हमारा अपमान-जिनने स्कीम बनायी है। इसलिए यज्ञों को तो हरेक जगह जैसे पिछले साल हुए थे वैसे ही करना है। अन्तर सिर्फ इतना है कि उनके स्थान पर नये यज्ञों की शैली प्रचलित की है, जो गरीब से गरीब व्यक्ति के यहाँ भी आसानी से सम्पन्न करा सकते हैं। वे कौन से यज्ञ हैं ? वे दीपयज्ञ हैं। दीपयज्ञ में एक थाली में पाँच दीपक रखे जाते हैं। यह यज्ञ का समान हुआ। थाली अपने घर से लेकर के चौक पूर कर उसे सजा लें, एक रुपये का समान उसमें रख लें, तो बड़े मजे से यह यज्ञ हो सकता है। यज्ञ के कर्मकाण्ड तो सब वही हैं, जो सामान्य यज्ञ में हुआ करते हैं। दो एक बातें कम कर दी हैं जैसे घृत-अवघ्राणम्, भस्मधारणम्, वसोधारा आदि। बाकी यज्ञ के देव आवाहन मंत्र और यज्ञ का सारा स्वरूप वही है। केवल वस्तुएँ कम कर किये जाने में कोई बुराई है ? नहीं कोई बुराई नहीं है। यहाँ याज्ञवल्क्य-जनक का संवाद कुछ ऐसा ही है। जनक ने पूछा कि कोई खराब वस्तु हो और हम यज्ञ न कर पायें, तो कैसे हवन करें? तब याज्ञवल्क्य जी ने कहा-”यज्ञ करना तो आवश्यक है। वह तो करना ही चाहिए। गायत्री और यज्ञ तो हमारी भारतीय संस्कृति के माता-पिता है। इनका पूजन तो करना ही चाहिए। इनको तो भोजन कराना ही चाहिए। वायुमण्डल, वायु संशोधन के कार्य के लिए तो इन्हें करना ही चाहिए। वातावरण संशोधन का काम तो हाथ में लेना ही चाहिए , पर वस्तुएँ कम कर सकते हैं।” तब राजा जनक ने पूछा-क्या वस्तुएँ कम कर सकते हैं? उन्होंने कहा- “घी अगर आपके पास न हो , तो केवल हवन सामग्री से जो वनस्पतियों से बनता है, उससे ही आप हवन कर लें ।” इस तरह बिन घी के आप हवन कर लें। उन्होंने फिर कहा- वर्षा नहीं होगी तो वनस्पतियाँ भी पैदा नहीं होंगी। तो फिर कैसे हवन करेंगे? तो याज्ञवल्क्य जी ने कहा- “आप लकड़ियों की समिधाओं से भी हवन कर सकते हैं।”कहने का आशय है कि कम से कम वस्तुओं से हवन कर सकते हैं। इसी तरह मुसीबत के समय में आपातकालीन परिस्थितियों में हमने दीपयज्ञ करने के लिए कहा है लोगों से और लोगों ने स्वीकार भी किया है। इसको आपको मिलेंगी, उसके कारण से पुण्य उतना ही मिलेगा जितना कि यज्ञ कुण्डों को खोदकर के हजारों रुपया इकट्ठा जो किया करते थे। लगभग उतना ही पुण्य मिल जाएगा इस यज्ञ से ।

यह यज्ञ का तरीका है- एक। यज्ञ का तरीका नम्बर दो- सबेरे प्रातःकाल सूर्योदय के समय पर यज्ञ प्रारंभ हो जाना चाहिए। जब तक धूप फैलती है और ठण्डक रहती है। अपने घर के काम का वक्त होता है, दुकान खोलने का वक्त होता है। उस समय से सबेरे का कार्यक्रम तो वैसे ही समाप्त हो जाएगा, यह भी आपको भुला नहीं देना चाहिए। सायंकाल का कार्यक्रम यह है कि सायंकाल को कीर्तन किया जाये । पुराने कीर्तनों और हमारे कीर्तनों में थोड़ा फर्क है। पुराने कीर्तनों में केवल रामभजन हुआ करते थे। ‘रामभज’ में हरे रामा, हरे रामा, हरे कृष्णा, हरे कृष्णा; बस केवल रामधुन होती थी। हमारे कीर्तनों में विचार और टिप्पणियाँ भी जुड़ी हुई हैं। यह आपको सौ-सौ कुण्डीय यज्ञ के समय भी बताया गया था। सौ कुण्डीय यज्ञ के लिए हमने बुलाया भी था। सौ कुण्डीय यज्ञ में आप भी उत्साहपूर्वक भाग ले करके आये थे। अब भी आप सौ कुण्डीय यज्ञ कर सकते हैं। सौ रुपये लागत आयेगी इसमें। बड़े मजे से इसे आप का सकते हैं।

यज्ञ के बाद में व्याख्यान के बाद में देवदक्षिणा

आवश्यक है। देवदक्षिणा में यह आवश्यक है कि आप अपनी बुराइयों का त्याग करें और अपनी अच्छाइयों को बढ़ायें। ये भी वातावरण संशोधन का एक बड़ा कार्य है। जो प्रकृति हमसे नाराज हुई है, जो मुसीबतें आयी हैं, ये सब मनुष्य के स्वभाव, मनुष्य के गुण, मनुष्य के कर्म , मनुष्य की वृत्तियों में फर्क आ जाने के कारण आयी हैं। आप इसको भी ठीक कर सकते हैं। यानि कि यज्ञ के बाद में जब देवदक्षिणा दी जाये तो उसमें अपनी कोई न कोई एक अच्छाई बढ़ायी जाये। ये काम करना भी आवश्यक है। यही देवदक्षिणा है। दक्षिणा के लिए पंडित जी को एक हजार रुपये देंगे और उनको पाँच कपड़े देंगे, खाना देंगे, नहीं। ऐसा करने की कोई जरूरत नहीं है। ये सामूहिक यज्ञ है। देवी-देवताओं का हम आह्वान करेंगे, उनका पूजन और सम्मान करेंगे। यज्ञ में जो आदमी आयेंगे, जो भी यज्ञ में सम्मिलित होंगे, जो आदमी आयेंगे, जो भी आहुतियाँ देंगे वे सारे के सारे सहकर्मी होंगे, सहयोगी होंगे। इनमें से कोई ऐसा पंडित नहीं होगा जो दक्षिणा के लिए आया हो। यदि कोई पैसे की नौकरी के लिए आता है वह देवता नहीं हो सकता, ब्राह्मण नहीं हो सकता! पैसे की नौकरी की जरूरत नहीं है आपको। लेकिन देवी-देवताओं को दक्षिणा तो देनी ही पड़ेगी, जिनको आपने बुलाया है, जिनसे आपने उम्मीद रखी है कि इन्द्र देवता है, वर्षा करें तो आखिर उनके चरणों पर हमें फूल तो रखना चाहिए। देवता आयेंगे तो कुछ पूजन-अर्चन तो करना ही चाहिए आपको। पूजन करने की विधियों में ये भी शामिल है कि आपको देवदक्षिणा के रूप में कोई न कोई बुराई त्यागनी पड़ेगी और कोई एक अच्छाई धारण करनी पड़ेगी।

ये सौ कुण्डीय यज्ञ क्वार की पूर्णिमा यानी कि शरद पूर्णिमा को प्रारम्भ करेंगे और चैत्र की पूर्णिमा को समाप्त करेंगे । ये पूरे छह महीने हो जाते हैं। छह महीने के बीच आपको एक कार्य करना चाहिए कि अपने गाँव में, अपने नगर में, अपने मोहल्ले में प्रत्येक घर के साथ संपर्क बढ़ाना चाहिए। यह संपर्क यज्ञ है। संपर्क यज्ञ का अर्थ है कि प्रत्येक घर में आप जाइये और प्रत्येक घर के लोगों की तैयार कीजिए। आपके कुटुम्ब को, आपके परिवार को, आपके घर के लोगों को भी हमको ये कुछ शिक्षाएँ देनी हैं और साथ-साथ में भगवान का स्मरण भी कराना है। आपके घर में सुख-शाँति भी लानी है। अतः प्रत्येक घर में एक यज्ञ का आयोजन करने का कार्यक्रम आपको इन छह महीनों में जारी रखना चाहिए। आवश्यकता हुई तो फिर कहेंगे कि छह महीने से भी ज्यादा जारी रखिए। फिलहाल आपको छह महीने का संकल्प तो दिला ही रहे हैं । इन छह महीनों में अपने नगर में, अपने गाँव में, अपने मोहल्ले में कोई घर ऐसा मत रहने दीजिए, जहाँ यह एक कुण्डी यज्ञ ना हुआ हो।

एक कुण्डी यज्ञ का आप मतलब तो समझ ही गये हैं न? एक थाली में पाँच धूपबत्तियाँ और पाँच दीपक रखें। थाली को हल्दी, रोली अथवा आटे द्वारा सजा भी सकते हैं। ये दैनिक उपयोग की वस्तुएँ हर घर में रहती ही हैं। यदि आपको ये मालुम पड़ता हो कि एक घण्टे के समय में पाँच धूपबत्तियों में खर्च ज्यादा हो जाएगा, पाँच दीपक में खर्च ज्यादा हो जाएगा, तो आप किफायत भी कर सकते हैं पाँच दीपक हैं पहले एक जलाइये। पहला बुझने लगे तो दूसरा जला दीजिए। दूसरा बुझने लगे तो तीसरा जला दीजिए। तीसरा बुझने लगे तो चौथा जला दीजिए, फिर पाँचवाँ जला दीजिए। इस तरीके से एक-एक दीपक से काम चल सकता है। पाँच दीपक की स्थापना तो करनी ही पड़ेगी क्योंकि यह पाँच देवों का आह्वान है। इसमें पाँच प्राणों का आह्वान है, पाँच तत्वों का आह्वान है। अतः पाँच दीपकों की यह स्थापना तो करनी ही पड़ेगी। धूपबत्ती के संदर्भ में भी यही बात है। अगर आपको कहीं किफायत की बात मालूम पड़े और ये मालूम पड़े कि गरीबी बहुत ज्यादा है तो पैसे का खर्च और भी कम कर सकते हैं। तब पाँच धूपबत्तियों में से एक जला दीजिए, चार बिना जली रहने दीजिए एक धूपबत्ती जलाकर खत्म होने को हो तब दूसरी जला दीजिए। जब वह खत्म हो तो तीसरी फिर चौथी और पाँचवीं जलाएँ। इस तरीके से पाँच बार में पाँच धूपबत्तियों के जो आपने बंडल बनाये और पाँच दीपक बनाये, उनको एक-एक करके पाँच हिस्से में जलाएँ तो पाँचवें हिस्से से आपका काम चल जाएगा और किफायत भी हो जाएगी । मैं किफायत की बात इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि अगले दिनों आपको पैसे की तंगी पड़ेगी, ज्यादा खर्च करना मुसीबत लायेगा। जो आदमी ज्यादा खर्च करता है वह ज्यादा फायदे की भी उम्मीद करता है, लेकिन जिसका थोड़ा खर्च हुआ है उस बेचारे का थोड़ा समाधान हो जाये तो भी काम चल जाता है। यज्ञ इसीलिए लोगों को अखरता है। यज्ञ के नाम पर कम से कम खर्च कराना चाहिए। जो विधियाँ आपको बतायी गयी हैं, उसी के हिसाब से हर घर में जाकर के यज्ञ कराना चाहिए। घरों में जो यज्ञ आप करायें, उसमें ये कुछ बातें शामिल करें। वास्तव में यह हम परिवार गोष्ठियों के रूप में पारिवारिक यज्ञ कर रहे हैं। इसमें परिवार निर्माण का उद्देश्य छिपा हुआ है, जो कि समाज निर्माण से भी सम्बन्धित और यज्ञ के निर्माण और समाज-निर्माण के बीच की इकाई यह परिवार निर्माण है। परिवार पारिवारिक यज्ञों के माध्यम से होगा। इसमें सुबह परिवार यज्ञ किया जाये और शाम को कीर्तन की व्यवस्था की जाये। भले ही महिलाएँ मिल-जुलकर कर लें। कोई बात नहीं है, पर करना जरूर चाहिए। लेकिन साथ में जो देव दक्षिणा वाला प्रकरण है उसे नहीं भूलना चाहिए। देवदक्षिणा हर घर के यज्ञ में भी होनी चाहिए। और क्या-क्या होना चाहिए ? कुछ खास बाते हैं जो जरूर करनी चाहिए। प्रथम तो यह कि प्रातःकाल सूर्योदय के समय पर भगवान का स्मरण करना। इस समय यह बहुत ही आवश्यक है। सूर्योदयकाल की अपनी खास विशेषता है। चाहे सुबह कर लेंगे, दोपहर को कर लेंगे, शाम को कर लेंगे! नहीं भाईसाहब! बिल्कुल सबेरे ही सूर्योदय के समय पर ही नाम स्मरण करना होगा, चाहे आप नहाये हों या न नहाये हों। सूर्योदय काल में एक ही तरीके से एक ही समय में, एक ही प्रकार का कार्य करने से उसकी शक्ति सौ गुनी हो जाती है, इसीलिए यह प्रातःकाल का जप आवश्यक बताया गया है। उसके बारे में आप घर-घर में जाकर हर आदमी से मिलकर कहिए कि प्रातःकाल का जप करना शुरू करें, चाहे दस मिनट का ही क्यों न हो।

इसके सिवाय एक और बात है। हमारे देश को गिराने वाली कुछ चीजें हैं। उनसे अपने आपको उबारने की कोशिश करनी चाहिए । शिक्षा की कमी इस तरह की है कि आदमी जानवर की तरह भयानक हो जाता है। न उसके ज्ञान के कपाट खुलते हैं, न उसको नयी जानकारियाँ मिलती हैं, न समाज में क्या हो रहा है ये पता चलता है, न उसे, लोग किस तरीके से आगे बढ़ रहे हैं ये जानकारियाँ मिलती हैं। वह एक तरीके से कुएँ का मेढ़क बनकर रहता है। इसलिए आपको शिक्षा के बारे में प्रौढ़-शिक्षा आन्दोलन को इन्हीं यज्ञों के साथ में जोड़कर प्रारम्भ कर देना चाहिए। आप लोगों में से जो कोई पढ़े-लिखे हों, उन्हें यह प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि “हम पाँच बिना पढ़े-लिखों को तो जरूर ही पढ़ा देंगे। “ चाहे तो आप उनके घर जाइये, चाहे एक महीने पढ़ाइये या छह महीने पढ़ाइये, चाहे दो वर्ष पढ़ाइये। आप यहाँ से एक संकल्प लेकर के जाइये कि “पाँच व्यक्तियों को तो पढ़ायेंगे ही।” परिवार में होने वाले यज्ञों की यह प्रमुख बात है। जो व्यक्ति पढ़ा नहीं सकते, वे पढ़ तो सकते हैं। घरों में बुड्ढे-बुढ़िया, जवान स्त्रियाँ बिना पढ़ी होती हैं। उनको पढ़ाने का एक आन्दोलन हमें इसी यज्ञ योजना में शामिल करना है।

दूसरा एक और आन्दोलन है जो इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। वह क्या है? जो कुछ भी हम कमाते हैं वह सब पेंदे के छेद में से होकर निकल जाता है। फूटे हुए घड़े में पानी चाहे जितना डालते जाइये, पर पेंदे में बने छेद में से होकर सब निकल जायेगा और घड़ा खाली का खाली बना रहेगा। इस पेंदे का छेद है- हमारे समाज में ब्याह-शादियों में होने वाला खर्च। खर्चीली शादियाँ हमें दरिद्र, बेईमान बनाती हैं। यह तो हमने आपको पच्चीसों बार कहा है और कहते रहेंगे हमेशा ! हमारा देश जो तबाह हुआ है इसमें ब्याह-शादियों वाली बात ऐसी है कि इसको अगर खर्चीली बनाये रखा गया तो आप समझिये कि हम आमदनी बढ़ाने का चाहे जितना प्रयत्न करें तो भी हम गरीब बने रहेंगे। इसके लिए क्या करना चाहिए? आप सब लोगों को इसके लिए ये प्रतिज्ञाएँ करनी चाहिए, अभिभावकों को ये प्रतिज्ञाएँ करनी चाहिए कि “हम अपने बच्चों और बच्चियों की शादियों में धूमधाम नहीं करेंगे-एक। दिखावा नहीं करेंगे-दो। दहेज नहीं लेंगे और न देंगे-तीन और जेवर नहीं चढ़ाएंगे चार।”

ब्याह-शादियों में जेवर और दहेज का कितना बड़ा सम्बन्ध है, ये आपको मालुम नहीं है। लड़के वाला माँगता है दहेज। क्यों माँगता है? क्योंकि उससे जेवर माँगा जाएगा। लड़की वाला माँगता है जेवर और लड़के वाला माँगता है दहेज। ये दोनों ही बातें मरेंगी तो एक साथ ही मरेंगी। अगर जिन्दा रहेंगी तो दोनों ही बाते जिन्दा रहेंगी । आप अकेले दहेज को बंद करना चाहें और ये चाहें कि हमारी लड़की पर जेवर जरूर के लिए सोना? आज सोने का कितना महँगा भाव है। चार हजार रुपये का दस ग्राम बिक रहा है। इसमें अगर मान लो कोई आदमी पचास ग्राम का भी जेवर बनवाना चाहे तो उसको बीस हजार रुपया चाहिए। यह कहाँ से आएगा? अतः जेवर के लिए वह दहेज माँगता है, तो क्या बुरा करता है। दहेज के बंद करने की यदि बात करनी चाहिए, तो जेवर को बंद करने की बात भी करनी चाहिए, अतः आप ब्याह-शादियाँ इस तरीके से कराइए जिसमें न दहेज दिया जाये, न जेवर लिए जायँ । जिसमें न बारात चढ़ाई जाये, न धूमधाम की जाये। न बैण्ड बाजे बजाएँ और न बेकार के काम किये जाएँ। घरेलू उत्सव होते हैं। हमारे घर में होली-दीपावली होती है, तीज-त्यौहार होते हैं, उसी तरीके से पाँच आदमी उस तरफ के आ जाएँ और पाँच यहाँ घर के हों। अपने घर में छोटा-सा हवन कर लिया जाये और शाँति से ब्याह कर दिया जाये। इस तरह के विवाह बहुत कम दाम पर होते हैं। किसी को दहेज ही देना हो तो अपनी बेटी के लिए इंदिरा विकास पत्र में रकम जमा कर सकता है, जो पाँच साल में दूनी हो जायेगी।

इस तरह की ब्याह-शादियों की परम्परा चलाना भी हमारा इस वक्त का कार्यक्रम है। दहेज हिन्दू समाज का कोढ़ है। यह हिन्दू समाज का कलंक है। शिक्षा का अभाव होना हमारे देश के लिए कलंक है। दहेज का, ब्याह-शादियों में फिजूलखर्चियों का होना हमारे देश का कलंक है। इसको दूर करने के लिए आप लोगों को इस तरह के कार्यक्रम का प्रयास करना पड़ेगा और इन्हीं यज्ञों के साथ में इन दो कार्यक्रमों को भी मिलाना पड़ेगा।

ब्याह-शादियों का एक और भी तरीका है। ज्यादातर होता है कि मोहल्ले वाले, पड़ोसी, यार-दोस्त, मित्र और सम्बन्धी ये कहते हैं कि नहीं साहब नाक कट जाएगी , बात बिगड़ जाएगी । ऐसा तो नहीं होना चाहिए। धूमधाम तो होनी ही चाहिए। मोहल्ले में फलाने का इतना बड़ा ब्याह हुआ था, आपको क्यों नहीं करना चाहिए? जहाँ इस तरह की मुसीबतें हों, जहाँ इस तरह के गिद्ध-कौए चारों ओर से घेरे हों आपको और यह मालुम पड़ता हो कि इस मुसीबत से निकलने का कोई उपाय नहीं है, तो हम आपको निमन्त्रित करते हैं कि आप कन्या को ले आइये, लड़के को ले आइये और पाँच-पाँच आदमी दोनों पक्षों के आ जाइये और यहाँ शाँतिकुँज में आप बड़े मजे में विवाह करके ले जाइये-बिना खर्च किये। यहाँ किसी तरह का खर्च किये। यहाँ किसी तरह का खर्च नहीं पड़ेगा। न यहाँ किसी तरह का दिखावा करना पड़ेगा । न फर्नीचर देना पड़ेगा। न कोई दहेज माँगने की हिम्मत करेगा, न कोई जेवर चढ़ाने का नियम है। पाँच आदमी आएँगे। आप यहाँ खाना खाइये। यहाँ के चौके में एक हजार आदमी खाना खाते हैं। पाँच आदमी बारात के आ जाएँ; वे हमारे मेहमान की तरह खाना खा जाएँगे तो हमारा क्या बिगड़ जाएगा। इसलिए इस तरह के विवाहों का, मेरी समझ से ये ज्यादा अच्छा है कि इस रिवाज को फैलाने के लिए आप स्थानीय स्तर में सफल नहीं हो पाते हैं तो आप इनमें तो बड़ी आसानी से सफल हो जायेंगे कि हमारे जो विवाह होगे वे हमारे गुरुद्वारे में होंगे। शाँतिकुँज में विवाहों का यही प्रचलन चलेगा। यह तीर्थस्थान भी है। देवताओं का यहाँ यज्ञ भी होता है, ऐसे शुद्ध स्थान पर विवाह संस्कार सम्पन्न करें। जैसे शुभ मुहूर्त करी बात सोची जाती है वैसे ही आप शुद्ध स्थान की बात सोचिए। मुहूर्त की बात मत सोचिए? आप कभी भी ले आइये की बात मत सोचिए? आप कभी भी ले आइये। यहाँ हमेशा ब्याह हो जाता है क्योंकि यहाँ शुभ वातावरण है, शुभ भूमि है, शुभ एवं पुनीत स्थान है। इसीलिए यहाँ हमेशा ब्याह हो जाता है क्योंकि यहाँ शुभ वातावरण है, शुभ भूमि है, शुभ एवं पुनीत स्थान है। इसलिए यहाँ मुहूर्त की जरूरत नहीं है, आप इस बात को जान लीजिए ।

दो बातें और रह जाती हैं इसके सिवाय। पहली है नशेबाजी की बात, आप नशेबाजी को छुड़ाइये, नहीं तो अगली पीढ़ियाँ घटते-घटते, गिरते-गिरते किसी काम की न रह जाएँगी। आपको यह तो मालुम ही है कि नशे से शरीर मारा जाता है, बुद्धि भी मारी जाती है, पैसा भी बर्बाद हो जाता है और बच्चों का भविष्य भी खराब हो जाता है। आदमी ऐसा बन जाता है जिसका न कोई विश्वास करता है, न कोई पास बैठने देता है। पीढ़ियों की यह गिरावट अगर बनी रही तो पचास-चालीस वर्ष में एक पीढ़ी के बाद दूसरी पीढ़ी कमजोर होगी दूसरी पीढ़ी कमजोर होगी। दूसरी के बाद तीसरी कमजोर होगी और हम वास्तव में फिर इस लायक हो जाएँगे कि हमको अपने शरीर को धकेलना मुश्किल हो जायेगा। इसीलिए करना आपको यह चाहिए कि नशेबाज के विरुद्ध भी जो कुछ आपके लिए संभव हो, उसको जरूर करना चाहिए।

नशेबाजी के सिवाय एक और बात है। साग-भाजी उगाने की तो हम कह नहीं सकते, क्योंकि जब वर्षा का अभाव होगा तो आप साग-भाजी कहाँ से उगा पायेंगे? साग-भाजी मनुष्य के जीवन के लिए उतनी ही आवश्यक है-जितना अनाज। अनाज से कम आवश्यक नहीं है। आप साग-भाजी उगाने के लिए अपने घरों में इंतजाम कीजिए। पानी आप पीते हैं सो ठीक है, पर जब आप कुल्ला करते हैं, नहाते हैं तो पानी बहकर बेकार चला जाता है।

उस पानी को इकट्ठा कर लीजिए और अपने घरों में, गमलों में, टोकरों में, पिटारों में, किसी में जो आपने उगा रखा है, उसी में उस पानी को आप डाल दीजिए। जो आपके स्नान से बचा हुआ है, जो आपके हाथ धोने से बचा हुआ है-उस पानी को भी साग-भाजी में डाल दें , तो साग-भाजी पैदा हो सकती है। मान लीजिए कि उस साग-भाजी से आप घर का पूरा खर्चा नहीं भी चला सकते हैं तो उससे कम से कम चटनी का काम तो चल ही सकता है। रूखी रोटी खाने के बजाय आप चटनी से तो काम चला सकते हैं। चटनी ही एक ऐसी चीज है कि जिससे हमारे लिए बड़ी सहूलियत मिलती है। आपकी ये-धनिया है, पोदीना है, पालक है, अदरक है, मिर्च है और टमाटर है। ये चीजें तो आसानी से लगा सकते हैं। कोई और साग नहीं बो सकते तो आसानी से इकट्ठा कर सकते हैं।

तो साहब ! साग-भाजी का लगाना एक, नशेबाजी का विरोध करना दो, ब्याह-शादियों में खर्च न होने देना’-सादगी के साथ ब्याह करना तीन और प्रौढ़ शिक्षा के बारे में ज्यादा से ज्यादा प्रचार करना-चार! छोटे बच्चों का तो यह भी है कि गवर्नमेंट स्कूलों में पढ़ा लेते हैं लेकिन बड़ों की संख्या तो दो तिहाई है। दो तिहाई हमारे देश के बिना पढ़े-लिखे लोग हैं। उनको शिक्षित करने की बात पर हम लोगों को ध्यान देना चाहिए, तैयारी करनी चाहिए। अब इन सभी बातों को ध्यान में रखकर के हमारे यज्ञों की पूर्णता इन बातों में जोड़नी चाहिए कि आपके यज्ञ के साथ-साथ में भावनाएँ जुड़ी हुई हों, सेवाएँ जुड़ी हों। देश को ऊँचा उठाने , आगे बढ़ाने की मनोवृत्ति भी जुड़ी हुई हो। यज्ञ भी जुड़ा हुआ हो, कीर्तन भी जुड़ा हो और भगवान का नाम स्तवन भी जुड़ा हो । साथ ही अपनी बुराइयों को छोड़ने और अच्छाइयों को बढ़ाने का प्रयत्न भी जुड़ा हुआ हो। इन सब को मिलाकर चलेंगे तो आप यह मान लीजिए कि यज्ञ में जो भी बड़े से बड़ा कार्यक्रम होगा-इन कार्यक्रमों के आधार पर ही वह पूरा हो जाएगा और वही फल मिलेगा आपको, जो बड़े यज्ञों से मिलना चाहिए। मुझे आशा है कि आप इन बातों को ध्यान से सुनेंगे और उसको कार्यान्वित करने में कुछ कसर उठा नहीं रखेंगे-इतना ही निवेदन है आप सब लोगों से। ॥ॐ शान्ति॥


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