तीन दिन से पत्नी और बच्चों को भोजन न मिला था। गृह-स्वामी प्रयत्न करने पर भी एक समय का भोजन न जुटा सका। अन्ततः वह निराश हो गया, उसे अपना जीवन बेकार लगने लगा।वह अपने घर से चला गया और आत्म-हत्या करने की तैयारी पर विचार करने लगा। कुछ क्षण बाद वह व्यक्ति संसार से विदा होने को था।
पीछे से किसी ने कंधे पर हाथ रखते हुए कहा- “मित्र ! इस मूल्यवान जीवन को खोकर तुम्हें क्या मिलेगा? निराश होने से तो कोई लाभ नहीं। मैं मानता हूँ कि तुम्हारे जीवन में आई हुई विपत्तियाँ ऐसा करने के लिए विवश कर रही हैं, पर क्या तुम इन विपत्तियों को हँसते-हँसते पीछे नहीं ढकेल सकते?”
आत्मीयता से परिपूर्ण शब्दों को सुनकर वह युवक रो पड़ा। सिसकियाँ भरकर अपनी मजबूरी की सारी कहानी सुना दी। अब तो सुनने वाले व्यक्ति की आँखों में भी आँसू थे। यह सहृदय व्यक्ति जापान का प्रसिद्ध कवि शिनीची ईं गुची था।
उस युवक की परेशानियों ने भावुक कवि शिनीची को प्रभावित किया, उसने वहीं यह संकल्प किया कि मैं अपनी कमाई का अधिक भाग उन व्यक्तियों की सेवाओं में लगाया करूंगा, जो अभावग्रस्त हैं। उस समय कवि शिनीची ने युवक के परिवार की भोजन व्यवस्था हेतु कुछ धनराशि दे दी, पर घर लौटकर उसने गुप्त दान पेटी बनाई और चौराहे पर लगवा दी।
उस पेटी के ऊपर लिखा गया-”जिन सज्जनों को सचमुच धन की आवश्यकता हो, वह इस पेटी से निकाल कर अपना काम चला सकते हैं। यह धन यदि कतिपय अभावग्रस्त व्यक्तियों की सहायता में लग सका, तो मुझे बड़ी प्रसन्नता होगी। धन्यवाद।” उस पेटी पर नाम किसी व्यक्ति का न था। क्योंकि शिनीची की कर्म और सेवा में परदुःख कातरता का यह गुण ही उन्हें महामानव का पद दिलाता है।