मनुष्य से कहीं अधिक संवेदनशील हैं वृक्ष-वनस्पति

October 1996

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निष्कलुष हृदय में दूसरों के दुर्भाव, दुर्विचार उसी प्रकार अनुभव होने लगते हैं जैसे सामने वाला व्यक्ति स्वयं अपने मुँह से उन्हें व्यक्त कर रहा हो। पवित्र अंतःकरण वाला व्यक्ति दूसरों के हृदय की भावनाओं की परख स्वतः ही कर लेता है। पेड़-पौधे जिन्हें न किसी से लगाव होता है, न दुःख; निष्कलुष और पवित्र अंतःकरण व्यक्ति की तरह ही यह ताड़ लेते हैं कि पास आने वाला व्यक्ति या प्राणी शत्रु या मित्र है। अमेरिका के प्रोफेसर वोगल ने इस तरह के कई प्रयोग किये और उन्होंने जो जानकारियाँ एकत्रित कीं वे बेहद ही चौंकाने वाली और आश्चर्यजनक थीं।

पेड़-पौधे न केवल अपने पास आने वाले व्यक्तियों के भले-बुरे भावों को पहचान लेते हैं। बल्कि उन भावनाओं से प्रभावित भी होते हैं। प्रो0 वोगल ने प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध किया कि पौधे उन्हें उखाड़ने या नष्ट करने के विचार मात्र से पूरी तरह आतंकित हो जाते हैं। यह सिद्ध करने के लिए उन्होंने अपने एक मित्र विवियन विले के सहयोग से एक पग योग की योजना बनायी। इसके लिए उन्होंने गमले में लगे हुए दो पौधों को चुना। इन दोनों पौधों को उन्होंने अपने शयन कक्ष में रखा था, जब भी वे वहाँ जाते तो पौधे के प्रति अच्छे भाव और शुभ विचार अपने मन में लाते। इधर विले अपने शयन कक्ष में रखे पौधे के पास जब भी जाते तो पौधे को उखाड़ने, नष्ट करने या तोड़ने का विचार करते। दोनों मित्र प्रातःकाल जब उठते तो इसी प्रकार के विचार करते।

एक माह बाद देखा गया तो विले वाला पौधा पहले की अपेक्षा सूखकर पीला पड़ने लगा था। दोनों को जो खाद-पानी दिया गया था वह एक ही तरह का था। फिर भी परिवर्तन नोट किया गया। संभव है यह मात्र संयोग रहा हो। यह सोचकर वोगल तथा विले पहले के भावों से विपरीत भावनाएँ जगाने लगें। अर्थात् वोगल अपने पौधे से शत्रुवत् भाव करते और विले मित्रवत्। महीने भर बाद ही दोनों पौधों पर यह परिणाम नोट किया गया कि वोगल वाला पौधा सूखने लगा तथा विले का पौधा हरा-भरा रहने लगा।

इन लम्बे प्रयोगों के बाद प्रो0 वोगल ने कुछ और प्रयोग भी किये, उन्होंने अपनी प्रयोगशाला में एक पौधे को ऐसे यंत्र से जोड़ा, जो पौधे की आँतरिक संरचना में होने वाले परिवर्तनों को कम्पन के रूप में अंकन करता था। पौधों को इस यंत्र के जोड़ने के बाद वोगल ने अपनी हथेलियों को पौधे के चारों ओर पास किया तथा साथ ही अपने मन में पौधे के प्रति मित्रता के भाव भी जगाने लगे। प्रो0 वोगल ने देखा कि पौधे के साथ लगे हुए यंत्र ने कागज पर एक ग्राफ खींच दिया है।

दूसरी बार प्रो0 वोगल ने दूसरी तरह की भावनाएँ अपने हृदय में लाये तो यंत्र ने दूसरी तरह का ग्राफ बनाया। फिर उन्होंने पहले वाली कोमल भावनाओं को ही जगाया तो पहले वाले ग्राफ जैसा ही ग्राफ बना। इन प्रयोगों को वोगल ने कई बार दोहराया और हर बार एक जैसे ही निष्कर्षों पर पहुँचे।

प्रो0 वोगल ने इन प्रयोगों से प्राप्त निष्कर्षों को वनस्पति विज्ञानियों के एक सम्मेलन में कहा तो कई वैज्ञानिकों ने उनके प्रयोगों में रुचि दर्शायी। एक वनस्पति विज्ञानी डॉ0 विलेम जोंस ने स्वयं इस प्रयोग को अपने हाथों से किया और संतोषजनक परिणाम प्राप्त किये। यही नहीं उनके कुछ भावों पर पौधों ने विपरीत प्रतिक्रियाएँ भी दर्षायीं। एक बार जब डॉ0 जोन्स ने प्रो0 वोगल की प्रयोगशाला में प्रवेश किया तो पौधे ने कम्पन देना एकदम बंद कर दिया। प्रो0 वोगल ने उस वैज्ञानिक से प्रश्न किया कि आप इस समय क्या विचार कर रहे थे? तो डॉ0 जोंस ने उत्तर दिया कि इस पौध की तुलना अपने घर में लगे एक पौधे से कर रहा था। उनके घर में बगीचे में उसी पौधे की जाति का एक दूसरा पौधा लगा हुआ था। डॉ0 जोंस उस पौधे से इस पौधे की तुलना करते हुए सोच रहे थे कि मेरे उपवन में लगा हुआ पौधा कितना हरा-भरा और तरोताजा है, जबकि यह पौधा सूखा-सूखा सा लगता है। शायद यह गमले में लगा हुआ है इसलिए ऐसे हुआ है।

प्रो0 वोगल के उस पौधे ने इस घटना के दो हफ्ते बाद तक कोई कम्पन अंकित नहीं किया। मशीन ठीक-ठाक काम कर रहीं थी, फिर भी कम्पन क्यों नहीं हुआ? इसका उत्तर देते हुए प्रो0 वोगल ने कहा कि आगंतुक वैज्ञानिक अपने मन में पौधे के प्रति जो भाव लाये थे और उसके प्रति जो हीनता की भावना व्यक्त की थी, उससे उसकी भावनाओं को बड़ी ठेस पहुँची थी और इसी कारण उसने कोई बात करने, प्रतिक्रिया व्यक्त करने से इनकार कर दिया था।

पेड़’-पौधे भी अनुभव करते हैं और उनमें भी संवेदनाएँ होती हैं, इस तथ्य को न्यूयार्क के प्रसिद्ध वनस्पति विज्ञानी क्ली वैक्स्टर ने सिद्ध कर दिखाया है, क्ली बैक्स्टर ने पेड़-पौधों की प्रतिक्रिया को मापने के लिए विशिष्ट यंत्र गैल्वेनोमीटर का उपयोग किया। आमतौर पर गैल्वेनोमीटर में सुई का उपयोग होता है परन्तु इस मीटर में सुई के स्थान पर पेन का इस्तेमाल किया गया था ताकि कम्पनों को अंकित किया जा सके।

क्ली बैक्स्टर ने इसके बाद पेड़ की एक पत्ती को उबलती हुई काफी की प्याली में डाल दिया, पत्ती पेड़ से जुड़ी हुई हालत में ही प्याली में डाली गयी थी। परन्तु इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई क्ली बैक्स्टर ने एक दूसरा प्रयोग किया। उसने विचार किया कि वह पत्ती को जलाकर राख कर देगा। इस विचार के आते ही बैक्स्टर ने माचिस की तीली जलाने के लिए आगे हाथ बढ़ाया। लेकिन वह अभी माचिस हाथ में उठा भी नहीं पाया था कि गैल्वेनोमीटर ने पेड़ में कम्पनों को तेजी से अंकित करना आरंभ कर दिया। पेन की नोक बहुत तेजी से कागज पर चलने लगी थी।

यद्यपि बैक्स्टर पेड़ से दूर खड़ा था और वह अपने स्थान से हिला तक नहीं था, तो क्या पेड़ ने बैक्स्टर के विचारों को जान लिया था और इस प्रकार अपनी प्रतिक्रिया दर्शायी थी। बैक्स्टर के मन में यह प्रश्न बिजली की तरह कौंधने लगा। प्रश्न का उत्तर जानने के लिए उन्होंने माचिस की एक तीली जलायी और पत्ती के पास ले गये। यह करते हुए बैक्स्टर के मन में पत्ती को जलाने का कोई विचार नहीं था। वह पत्ती को जलाने का नाटक कर रहे थे। शायद पौधे ने बैक्स्टर के आँतरिक भावों को पहचान लिया हो और वह समझ गया हो कि युवा वैज्ञानिक केवल नाटक कर रहा है। इसलिए पौधे में कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई।

इसके बाद बैक्स्टर ने सचमुच पत्ते को जलाने का निश्चय कर लिया और इस इरादे से लौ को आगे बढ़ाया। बैक्स्टर ने जैसे ही तीली को आगे बढ़ाया, पौधे ने गैल्वेनोमीटर के माध्यम से एक झटके के साथ अपना भय व्यक्त किया। यंत्र की नोक कागज पर चलने लगी।

इन ग्राफों को सुरक्षित रख लिया गया और यही प्रयोग अन्य किस्म के पौधों पर भी दोहराने की योजना बनाई गयी। बैक्स्टर ने इसके लिए कुछ युवा वैज्ञानिकों का एक दल बनाया और पच्चीस तरह के अलग-अलग किस्म के पेड़-पौधे लिये। ये पौधे देश के विभिन्न कोनों से मँगाये थे। सभी पौधों पर विचारों के होने वाले प्रभाव को अलग-अलग गैल्वेनोमीटर से आँका गया, तो वही परिणाम सामने आये जो पहले आये थे। प्रयोगशाला में कोई कुत्ता, बिल्ली, बंदर लाया जाता तो पौधे भय से अलग-अलग कंपन करते। जैसे बिल्ली के प्रवेश पर वे सबसे कम भयभीत हुए, कुत्ते के समय उससे ज्यादा और बंदर के समय सबसे ज्यादा। यहाँ तक कि कोई व्यक्ति प्रयोगशाला में किसी पौधे के प्रति दुर्भावना लेकर आता तो पौधा उसे भी अंकित कर देता।

गैल्वेनोमीटर द्वारा अंकित किये गये कंपनों को किसी प्रकार ध्वनि तरंगों को रूपांतरित किया गया। तरंग के सूक्ष्म से सूक्ष्म कम्पन कभी ध्वनि में बदल देने वाले यंत्र से जब उन ध्वनियों को सुना गया तो उनमें कहीं भय, कहीं प्रसन्नता, कहीं हर्ष तो कहीं उल्लास की ध्वनियाँ निकलती थीं।

भयभीत होने, प्रसन्नता व्यक्त करने तथा शत्रु को पहचानने में समर्थ होने के अतिरिक्त पेड़-पौधे गर्मी और सर्दी भी महसूस करते हैं। उन्हें प्यास भी लगती है तथा उन्हें भी एक निश्चित मात्रा में खनिज लवणों और पोषक तत्वों की जरूरत होती है। यह खोज रूस के प्रसिद्ध वनस्पतिशास्त्री लियोनिड ए॰ पनिशकिन तथा कैरोमोनेव ने की है।

इन अनुसंधान ने वनस्पति विज्ञान के इस क्षेत्र में एक क्रान्तिकारी परिवर्तन प्रस्तुत किया है। कोई आश्चर्य नहीं कि पेड़-पौधों को इस तरह के व्यवहार को देखते हुए उन्हें जानवरों, प्राणियों से अलग न माना जाय। भावसंवेदनाओं की दृष्टि से वृक्ष-वनस्पति को यंत्र की श्रेणी का ही कहा जा सकता है। अभी तो यही पता चला है कि दुर्भावनाओं, धमकियों, सद्भावों और दूसरों पर होने वाले अत्याचारों पर पेड़-पौधे भिन्न-भिन्न प्रतिक्रिया करते हैं। कौन जाने उनकी प्रतिक्रियाओं में उपेक्षा, परामर्श, तिरस्कार या मित्रता की भावनाएँ व्यक्त होती हों और कोई आश्चर्य नहीं कि उनकी बुद्धि, नैतिक चेतना तथा आध्यात्मिकता मनुष्य से अधिक उन्नत स्तर की हो। मनुष्य और वनस्पति में अंतर है तो इतना भर ही है कि वनस्पति मनुष्य की भाषा में बात नहीं कर सकता है, तो मनुष्य ही वनस्पति, जगत की भाषा में बात करने में कहाँ समर्थ है? अतः संवेदनशील वन-सम्पदाएँ संसार की धरोहर हैं, उन्हें बचाना, संरक्षण एवं समुचित स्नेह-प्यार देकर विकसाना हर मनुष्य का कर्त्तव्य है। जिससे भाव-सम्वेदना का विस्तार वनस्पति जगत में भी हो सके।


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