अज्ञातवास में द्रौपदी से मिलने के लिए कृष्णपत्नी सत्यभामा गयीं। उनने पाया कि इस अभावग्रस्त और कष्टसाध्य स्थिति में भी द्रौपदी बहुत प्रसन्न एवं स्वस्थ थीं। सत्यभामा ने इसे आश्चर्यपूर्वक देखा और पूछा-”हम महलों में रहकर भी सुखी नहीं हैं। तुम वनवास में भी प्रसन्न हो। सुख की कुँजी जो तुमने पाई, सो हमें भी बता दो।” द्रौपदी ने स्मित स्वर से कहा- “दुःखेन साध्वी लभते सुखानि” जो दूसरों के लिए कष्ट उठाने को तैयार रहता है उसे सदा सुख ही सुख मिलता है।