रामकृष्ण की धर्मपत्नी शारदामणि महिलाओं का अलग सत्संग चलाती थीं। उसमें अधिकाँश धार्मिक प्रकृति और संभ्रान्त घरों की महिलाएँ आती थीं।
एक महिला सत्संग में ऐसी भी आने लगी जो वेश्या के रूप में कुख्यात थी। इस पर अन्य महिलाएँ नाक-भौं सिकोड़ने लगीं और उसे न आने देने के लिए माताजी से आग्रह करने लगीं।
इस पर माताजी ने कहा-सत्संग गंगा है, वह मछली, मेढ़कों के रहने पर भी अशुद्ध नहीं होती। तनिक-सी मलिनता में ही जो अशुद्ध हो जाय वह गंगा कैसी? तुम लोग सत्संग की शक्ति पहचानो और उसे गंगा के समतुल्य मानो।