सच्ची भक्ति (Kahani)

October 1996

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मैं तो इतने दिनों से भगवान की भक्ति कर रही हूँ- एक स्त्री ने सन्त को बताया, पर मुझे तो आज तक उन्होंने कभी स्वप्न में भी दर्शन नहीं दिये। आप कहते हैं कि वे आप से कभी अलग नहीं होते।

बात यह थी कि वह स्त्री भक्ति तो करती थी, पर अपने परिवार, पड़ोसी और सम्बन्धियों सबके साथ उसका व्यवहार बहुत रूखा और अहंकारपूर्ण था। घर वाले भी उसके आचरण से दुःखी थे।

सन्त बोले-”आज भगवान से पूछकर बतायेंगे, आपसे क्यों नहीं मिलते। “ दूसरे दिन स्त्री मिली तो वह बोले-”माई भगवान तुम पर नाराज हैं, कह रहे थे कि वह हमारे बच्चों से लड़ती, मारती, पीटती और द्वेष रखती है, उससे मिलने का मन नहीं करता।”

स्त्री समझ गई। उस दिन से उसने अपना व्यवहार मीठा बना लिया। फलस्वरूप दूसरे लोग उसे इतना प्यार और आदर देने लगे कि वह उस शाँति में ही भगवान की उपस्थिति अनुभव करने लगी।


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