तुम तो बस ‘माँ’ हो(Kavita)

February 1995

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कैसे समझें तुम क्या-क्या हो? हे माता! तुम तो बस माँ हो॥

वेदमूर्ति बनकर गुरुवर ने, जीवन का जो पाठ पढ़ाया। सींच उसे ममता से तुमने, पाला-पोसा, बड़ा बनाया॥

वे पर्जन्य, बीज से हैं तो, हे माँ! तुम उर्वर वसुधा हो। कैसे समझें तुम क्या-क्या हो? हे माता! तुम तो बस माँ हो॥ युगऋषि ने वन तपोनिष्ठ-गुरु,

कर्मठता हमको सिखलायी। गोद बिठा पयपान कराकर, शील हमें माँ ही दे पायी॥

जिसको पा, साधक पकते हैं, माता तुम ऐसी सुविधा हो। कैसे समझें तुम क्या-क्या हो? हे माता! तुम तो बस माँ हो॥

गुरुवर ने शिवरूप बनाकर, अशिव वृत्ति का घेरा तोड़ा। महाशक्ति बन तुमने माता, कर्मशील को शिव से जोड़ा॥

‘अशिव’ जहाँ ‘शिव’ बन जाता है, तुम ऐसी अनुपम विद्या हो। कैसे समझें तुम क्या-क्या हो? हे माता! तुम तो बस माँ हो॥

उनने तो सद्बुद्धि जगाकर, दिव्य मार्ग पर हमें बढ़ाया। तुमने निर्बल भाव उभारे, उस शुभ पथ को सरस बनाया॥

‘प्रज्ञा प्रखर’ रूप गुरुवर हैं, माँ तुम विमल-सजल श्रद्धा हो। कैसे समझें तुम क्या-क्या हो? हे माता! तुम तो बस माँ हो॥

अग्निरूप तेजस्वी उनने, ‘जीवन यज्ञ’ हमें समझाया। तुमने उज्ज्वल भाव-सोम की आहुतियाँ देना सिखलाया॥

वे हैं ‘यज्ञरूप’ मंगलमय, माँ तुम स्वाहा और स्वधा हो। कैसे समझें तुम क्या-क्या हो? हे माता! तुम तो बस माँ हो॥

महाकाल की तीव्र प्रसन्नता, युग को नयी दिशा दे देगी। वे हैं सतयुग के निर्माता, तुम सतयुग की दिव्य सुधा हो॥ कैसे समझें तुम क्या-क्या हो? हे माता! तुम तो बस माँ हो॥

वीरेश्वर उपाध्याय


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