ममता की मूरतः जगजननी(Kavita)

February 1995

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कोटि-कोटि संतानों को तुम, ममता में नहलाती थीं, इसीलिए ममता की मूरत, जगजननी कहलाती थीं।

तुमने ही अखंड दीपक की, रक्षा का दायित्व लिया, गुरु के पद चिह्नों पर तुमने, निशि-वासर अनुसरण किया,

गुरुवर के दीपक की माता! स्नेहमयी तुम बाती थीं। इसीलिए ममता की मूरत, जगजननी कहलाती थीं।

गुरु-चरणों से अधिक न कुछ भी, जीवन में आकर्षण था, गुरु के सपने सजे, इसीसे, सब कुछ किया समर्पण था,

अपने सुख-साधन देने में, कभी न तुम सकुचाती थीं। इसीलिए ममता की मूरत, जगजननी कहलाती थीं।

गुरुवर ने जब कभी हमें निज, भूलों पर फटकारा था, तुमने ही तब बड़े प्यार से, माता! हमें दुलारा था,

जब भी घिरे व्यथाओं में हम, तुम करुणा बरसाती थीं। इसीलिए ममता की मूरत, जगजननी कहलाती थीं।

गुरु से दूर हुए थे जब हम, तुमने हमें सँभाला था, उस विछोह में मिला तुम्हारी, ममता का उजियाला था,

भटकावों के बीच तुम्हीं, चलने का चाव जगाती थीं। इसीलिए ममता की मूरत, जगजननी कहलाती थीं।

एक आँख में अनुशासन की, अति कठोर लाचारी थी, और दूसरी में माँ! कोमल, करुणा भरी तुम्हारी थी,

अनुशासन के बीच तुम्हारी, आँखें भर-भर आती थीं। इसीलिये ममता की मूरत, जगजननी कहलाती थीं।

हम जैसे भी थे माँ! तुमने, हमें सदा दुलराया था, सुख-दुख सब जीवन के भूले, इतना प्यार लुटाया था,

जहाँ कहीं मरुस्थल मिलता था, तुम रस-धार बहाती थीं। इसीलिये ममता की मूरत, जगजननी कहलाती थीं।

स्नेह और ममता में माता! भीगे सदा रहेंगे हम, लड़ते सदा रहेंगे तम से, झंझावात सहेंगे हम,

करुणा कभी न भूलेंगे, जो हर पल हमें सिखाती थीं। माँ! जिससे ममता की मूरत, जगजननी कहलाती थीं।

शचीन्द्र भटनागर


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