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February 1995

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आज की परिस्थितियाँ उन सभी समर्थ व्यक्तियों को पुकारती हैं कि इस विश्व संकट की घड़ी में उन्हें कुछ साहस और त्याग का परिचय देना ही चाहिए। पतन को उत्थान में बदलने के लिए उन्हें कुछ करना ही चाहिए, क्योंकि पेट भरने के लिए पशु की तरह जीवित रहना कैसे संभव हो सकता है जब मानव जाति अपनी दुर्बुद्धि से ऐसे दलदल में फँस गई हो जिसमें से बाहर निकलना उसके लिए कठिन हो रहा हो। हमारे परिजनों में से शायद ही कोई इस तरह का अभिशाप जैसा जीवन जीना पसंद करे।

-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रबुद्ध आत्माओं के सामने यह चुनौती प्रस्तुत हुई है कि वे अपनी तुच्छ, तृष्णाओं तक सीमाबद्ध संकीर्ण जीवन बिता देने की अपेक्षा किसी तरह संतोष से गुजारा चलाते हुये अपनी बढ़ती शक्तियों का उपयोग अपने युग की विषम समस्याओं को सुलझाने के लिए करने को तत्पर हों। चारों ओर जब आग लगी हो और उसे बुझाने की अपेक्षा अपनी चैन की बंशी बजाने में जो संलग्न हो ऐसे प्रतिभावान की सामर्थ्यवान की विकृत गतिविधियों पर विश्व मानव की घृणा ही बरसेगी। भावी पीढ़ियाँ उसे फटकारेंगी।

-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य


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