वासंती बहार का जिसने, जग उपवन महकाया। मानवता का वही मसीहा, आज धरा पर आया॥
जीवन की लघु सत्ता इस दिन, महाप्राण से युक्त हुई। महाकाल से अरे जोड़कर, कालचक्र से मुक्त हुई॥
धन्य हुई फिर स्वयं साधना, उस जीवन में जुड़कर। प्रगति पंथ पर चला पथिक, फिर देखा कभी न मुड़कर॥
नर तन में नारायण जैसा, ही कर्तृत्व दिखाया। निज चिंतन की प्राण ज्योति ले, ज्योति अखंड जलाई॥ युग प्रवाह को पलट सके, वह व्यापक क्राँति मचाई।
ऋषियों की पावन थाती को, सींचा रख अंतर में॥ गौरवमय अध्याय लिखे जिस, काया के कण-कण ने॥
लख विराट कर्तृत्व कि जिसका, जनमानस चकराया॥ आह हमारे बीच नहीं अब, प्राण तुल्य वह काया। ढूँढ़ रहे हैं वेग विवश मन, व्याकुल हो रो आया॥
मात-पिता गुरु तीनों रूपों की, प्रतिमा साकार रहे। स्नेह प्रेम करुणा से भीगे, हम सब तुम्हें पुकार रहे॥ सतत् साथ रहने का तुमने, क्योंकर वचन भुलाया?
होगा अब संकल्प पर्व यह, वासंतीवानों का। पूरा होगा लक्ष्य तुम्हारे, सारे अभियानों का॥
फहरायेंगे धर्म ध्वजा फिर, केसरिया अंबर में। त्याग और बलिदान बसेंगे, भारत के घर-घर में॥
सदा चलेंगे राह कि जिस पर, तुमने हमें चलाया। मानवता का वही मसीहा, आज धरा पर आया॥
-सुरभि