शक्तिस्वरूपा माँ भगवती (Kahani)

February 1995

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गीत रिकार्डिंग का क्रम ऊपर वाले कमरे में चल रहा था। जब परम वंदनीय माताजी को अपने परिवार की याद आई बचपन की याद आई तो स्वयं सभी वादक बंधुओं को सुनाने लगीं।

“जब मेरा जन्म हुआ तो लड़की होने के कारण पास-पड़ोसी एवं घर वाले परंपरागत विचार होने के कारण रोने लगे। मेरे नाना जी उच्चकोटि के ज्योतिष थे। जब उन्हें पता चला कि बच्ची के जन्म पर खुशियाँ मनानी चाहिए उसके स्थान पर लोग रो रहे हैं तो गुस्से से भरकर उनने सबको चुप किया और ऊँची आवाज में बोले मूर्खों! तुम्हें समझ में नहीं आ रहा है कौन अवतरित हुई हैं हमारे घर! साक्षात भगवती माँ अन्नपूर्णा-ईश्वर की सहचरी भगवान शंकर की अर्धांगिनी शक्तिस्वरूपा माँ भगवती ने अवतार लिया है घर में। इसके पीछे करोड़ों लोग चलेंगे, करोड़ों को प्यार बांटेंगी उनके आँसू पोछेंगी एवं दुःख कष्टों को दूर करेगी। इसके दर्शन मात्र से ऋद्धि-सिद्धियाँ व्यक्ति के ऊपर बरसेगी। जहाँ जायेंगी जहाँ रहेंगी जहाँ चरण पड़ेगा वह स्थान तीर्थ बन जायेगा।

इस प्रेरणा प्रद उद्गार को सुनकर सभी घरवाले स्तब्ध रह गये उनकी बोलती बंद हो गई।

बात परम पूज्य गुरुदेव के महाप्रयाण के बाद की है। वंदनीय माता जी को ईश्वर के साथ, भगवान के साथ एकाकार वाले गीत पसंद थे और वे उसी में तन्मय हो जाती थीं। इतनी भाव विभोर हो जाती थीं जैसे लगता था कि पूज्यवर स्वयं उपस्थित हैं जिन्हें माँ गीत सुना रही हों। कभी-कभी गीत के अंत में फूट-फूट कर रोती थीं-रिकार्डिंग करना मुश्किल हो जाता था। बाद में कहतीं क्या करूं गाया नहीं जाता।

एक दिन गीत रिकार्ड करने के लिए संगीत के सभी भाई बैठे थे, स्टूडियो के भी भाई बैठे हुए थे अनायास ही माता जी बोलीं-’बच्चों तुम्हें लगता होगा माताजी को गीत क्यों पसंद हैं और इतने गहराई के साथ क्यों गाती हैं? मिलने-जुलने के समय भी 4-5 घंटे संगीत में क्यों देती हैं? तो मैं आज बताती हूँ रहस्य की बात।

‘गीत गाने के बहाने मैं अपने इष्ट, भगवान की उपासना करती हूँ-जब भी गाती हूँ वे साक्षात उपस्थित हो जाते हैं-मुस्कुराते हैं-प्रसन्न होते हैं उतनी देर उनकी स्थूल उपस्थिति का लाभ मिल जाता है जिसके आधार पर उनके विछोह में परेशान नहीं होती इस शरीर को उनके बिना टिकाये रखने का आधार मिलता है। यही मेरी उपासना है, भक्ति है, जो संगीत के माध्यम से संपन्न होती है।’


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