कुछ बहुमूल्य पल अंतरंग गोष्ठी के

February 1995

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संकल्प श्रद्धाँजलि समारोह 1-2-3-4 अक्टूबर 1990 की अवधि में पूरा हुआ। अपने आपमें एक अभूतपूर्व आयोजन जिसमें सभी शिष्यों ने मिलकर अपने आराध्य को संकल्प के साथ आश्वस्त किया कि वे शक्ति से कार्यों को आगे बढ़ायेंगे, कभी उस राह में पीछे न रहेंगे। इस समारोह के तुरंत बाद परम वंदनीय माताजी ने 6 अक्टूबर को मध्याह्न 3 से 5 के बीच एक महत्वपूर्ण गोष्ठी ली। रविवार का दिन था। मिलने वाले भी बहुत थे पर सभी कार्य कर्ताओं को संदेश भेजा गया मिलने का समय पूरा होते ही सभी नये बड़े हाल में जो माताजी के साधना कक्ष से लगा हुआ है एकत्र हों। उसी महत्वपूर्ण कार्यकर्ता गोष्ठी के कुछ बिंदु जो हमने अपनी डायरी में नोट किए थे, यहाँ प्रस्तुत हैं।

‘मेरे प्यारे बच्चों। इस समारोह की अभूतपूर्व सफलता के लिए मैं तुम सभी के परिश्रम की, तुम सभी की लगन व निष्ठा की, ऋणी हूँ। जिस समय देश में चारों ओर आतंक छाया था, वहाँ तुम सभी ने कड़ी मेहनत कर सबको संगठित कर एक नमूना खड़ा किया है व अपनी इस माँ को सही अर्थों में आश्वासन दिया है कि गुरुजी का काम किसी भी स्थिति में रुकेगा नहीं।’

‘दिल्ली से लेकर यहाँ तक जहाँ देखो मारकाट तोड़-फोड़ मची हुई है। कोई भी मार्ग निरापद नहीं है। सारी मुख्य गाड़ियाँ कैंसल हो गयीं तब भी रुकते-रुकते कुछ नहीं तों 10-11 लाख व्यक्तियों की भीड़ यहाँ एकत्र हो गयी। यह नमूना है गुरुसत्ता के प्रति श्रद्धाँजलि व्यक्त करने वालों के स्नेह का। यदि देश की हालत ऐसी गंभीर न होती तो आने वाली भीड़ को एक हरिद्वार जिला तो क्या कई जिले मिलकर भी न सँभाल पाते। वास्तव में यह एक महाकुँभ है जिसमें कोई पोथी का पन्ना नहीं लिखा गया व सब इकट्ठे हो गए। दैवी सत्ता ने ही स्पष्टतः इस असंभव कार्य को संभव बनाया है।’

‘लाखों लोगों ने भोजन किया। इतने भोजनालय चले। फिर भी भण्डार की स्थिति जैसी की तैसी ही बन हुई है। आगे चलकर तुम इससे भी बड़े-बड़े चमत्कार देखोगे।’

‘आगे तुम्हें और भी बड़े-बड़े कार्य करना है। सारे राष्ट्र को जगाना है। बड़े कामों का समापन होता है तो दो चार दिन विराम देकर थकान के निकाल लेते हैं। किंतु तुरंत बाद पुनः दूने उत्साह से अपने काम में-लक्ष्य की ओर बढ़ जाते हैं। तुम लोग भी अपने इस उत्साह में लंबा विराम न लगने देना, नहीं किसी प्रकार की कोई कमी ही आने देना। अभी जो स्फूर्ति का ज्वार उठा है उससे आगे धुंआधार कार्यक्रम करना है, सारे राष्ट्र को हिलाकर रख देना है।’

‘तुम सभी बेटों मेरे वशिष्ठ पुत्रों में से हो। अपनी इस परिवार संस्था में अहंकारियों का कोई स्थान नहीं है। तुम सभी अच्छे हो। मुझे आशा है तुम में से किसी का अहंकार टकराएगा नहीं व टीम भावना के साथ तुम करते चले जाओगे। स्वभाव में जहाँ कहीं भी थोड़ी बहुत कमियाँ हैं, उन्हें दूर कर अच्छी आदतों में बदलने की कोशिश करो। अपनी-अपनी योग्यताएँ बढ़ाओ तुम समर्पण करोगे तो गुरुजी की आवाज ही तुम्हारे चोगे से निकलेगी, कुछ और नहीं।’

‘तुम्हारे समर्पण के बाद तुम्हारे शरीर मन पर तुम्हारा अधिकार कहाँ-रहा? जो कुछ है मिशन का है, हमारा है। अपने आपको प्रामाणिकता की कसौटी पर कसो व अधिक से अधिक त्याग के लिए तैयार रहो। तुमने नौकरी छोड़कर जो त्याग किया है, उसको जितनी भी सराहना की जाय कम है। पर अभी तो उससे भी बड़ा कुछ हासिल करना है, जो हम तुम्हें देंगे।’

‘मेरी तो अब चलाचली की बेला है बच्चो। मिशन को तो तुम्हें ही चलाना होगा। पूर्णाहुति के दिन से ही मेरा मन अब जाने को हो रहा है। मुझ से अपने आराध्य का वियोग सहा नहीं जाता। तुम बुज़दिल मत बनना। वो जो बाजीमार ले गए। अस्सी साल में आठ सौ साल का काम करके चले गए। मुझे तुम्हारी देखरेख को छोड़ गए तो बेटो तीन-चार साल जब तक शरीर साथ देगा व देखूँगी कि तुम मजबूत हो गए हो तो मैं भी चल दूँगी। मैं भला ऐसा ही बन रहा है। किंतु तुम निराश मत होना। चार साल बहुत होते हैं।’

‘तुम सबको देखना है कि आगे क्या होता है सन् 1995 से 2000 में जो काम होंगे वे माता जी नहीं बेटे जी करेंगे। यह और भी शानदार होंगे। अब हम मिशनरी भावना की तरह फैलते चले जायेंगे। देखते-देखते कई गुना हो जायेंगे। तुममें से विवेकानंद निकलेंगे दयानंद निकलेंगे और देखते जाओ तुम से वह करालेंगे जो तुमने सोचा भी नहीं था।’

‘अशक्तता की वजह से मेरे हाथ पैर भले ही न चलते हों पर मेरी शक्ति पूरी तुम्हारे साथ हैं। मेरे हाथ और जुबान खूब चलती है। जब मैंने गुरुजी के साथ रहकर यहाँ तक विकास कर लिया तो तुम मेरा आशीर्वाद लेकर चलो, देखो तो सही तुम्हें कहाँ से कहाँ पहुँचा दूँगी।’

तुम सबको कोटि-कोटि आशीर्वाद। ॐ शाँतिः।


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