VigyapanSuchana

August 1994

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ज्ञातव्य

बड़े आयोजनों की महत्ता असंदिग्ध है। उनसे वातावरण बनता है व जनमेदिनी से समष्टिगत चिंतन प्रवाह से सूक्ष्मजगत में चक्रवात बनते हैं जो परोक्ष के परिशोधन में सहायक होते हैं। प्रयाज-याज-अनुँयाज की अपनी महत्ता है एवं इससे भारत व विश्वभर में देवात्मक कुण्डलिनी शक्ति के जागरण की प्रक्रिया की पूर्वाभास तैयारी हो चुकी है। अब लक्ष्य यह होना चाहिए कि छोटे बड़े आयोजनों द्वारा राष्ट्र व विश्व का एक कोना भी न बचे जहाँ गायत्री व यज्ञ का तत्वदर्शन न पहुँचा हो। ये आयोजन संस्कार पर्व, दीप व छोटे कुण्डी यज्ञ, वैदिक गोष्ठियाँ व वर्कशाप, प्रभात फेरियाँ, नवरात्रि के शक्ति साधना आयोजन, अखण्ड जप कार्यक्रम , प्रज्ञा पुराण आयोजन, शक्तिपीठ वार्षिकोत्सव कार्यक्रम किन्हीं भी रूपों में हो सकते हैं। जो जाग्रत शक्तिपीठ वार्षिकोत्सव कार्यक्रम किन्हीं भी रूपों में हो सकते हैं। जो जाग्रत शक्तिपीठें हैं, वहाँ नये कार्यक्रम कुटीर उद्योग, स्वावलंबन कार्यक्रम, वृक्षारोपण, सफाई अभियान, शिक्षा विस्तार, दहेज विरोधी असहयोग आँदोलन जैसे कार्यक्रम चलें तथा जहाँ अभी जीवंत चेतना नहीं आई है, वहाँ के परिजन अब प्राण फूँकने के लिए तत्पर हो जायँ तथा एक वर्ष की अवधि में उनमें इतने कार्यक्रम संपन्न कर डालें कि गतिविधियाँ स्वतः चलने लगें। आगामी गायत्री जयंती समय तक का समय हमारे लिए परीक्षा काल है। इस बीच स्थगित हुए अश्वमेधों के अतिरिक्त शेष तो संपन्न होंगे ही, आँवलखेड़ा की अर्ध महापूर्णाहुति को विराट स्तर पर सफलतम बनाना हमारा प्रमुख ध्येय होगा। इसके लिए भारी संख्या में समयदानियों की जरूरत पड़ेगी। आशा ही नहीं, दृढ़ विश्वास भी है कि ऐसे विकट समय में कोई भी इस क्षेत्र में कोताही न बरतकर बढ़-चढ़ कर अपने समय व उपार्जन के श्रद्धा सुमन चढ़ाएगा।


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