एक बहुत बड़ा सरोवर था। उसके उत्तर तट पर मोर रहता था, दक्षिण सिरे पर मोरनी। एक दिन मोर ने प्रस्ताव रखा कि हम-तुम विवाह कर लें, तो कैसा अच्छा रहे ? मोरनी ने पूछा तुम्हारे मित्र कितने हैं ? उसने ‘नहीं’ में उत्तर दिया तो मोरनी ने विवाह से इनकार कर दिया।
मोर सोचने लगा । सुखपूर्वक रहने के लिए मित्र बनाना भी आवश्यक है। उसने पूर्व तट पर रहने वाले सिंह से, पश्चिम तट पर रहने वाले कछुए से और बगल में रहने वाली सिंह के लिये शिकार का पता लगाने वाली टिटहरी से दोस्ती कर ली। समाचार मोरनी को सुनाया, तो वह तुरंत विवाह के लिये तैयार हो गई। पेड़ पर घोंसला बनाया और उसमें अंडे दिये और भी कितने ही पक्षी उस पेड़ पर रहते थे।
एक दिन शिकारी आये। दिन भर कहीं शिकार न मिला तो, वे उसी पेड़ की छाया में ठहर गये और सोचने लगे, पेड़ पर चढ़ कर अंडे-बच्चों से भूख बुझाई जाय। मोर दंपत्ति को भारी चिंता हुई, मोर मित्रों के पास सहायता के नीचे चला जहाँ शिकारी बैठे थे। इतने में कछुआ भी पानी से निकल कर बाहर आ गया सिंह से डर कर भागते हुए शिकारियों ने कछुए को ले चलने की बात सोची। जैसे ही हाथ बढ़ाया कछुआ पानी में खिसक गया। शिकारियों के पैर दलदल में फँस गये इतने में सिंह आ पहुँचा और उन्हें ठिकाने लगा दिया।
मोरनी ने कहा- मैंने विवाह से पूर्व मित्रों की संख्या पूछी थी, सो बात काम की निकली न, यदि मित्र न होते, तो आज हम सबकी खैर न थी।