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Akhand Jyoti
Year 1994
Version 2
शिष्य का...
शिष्य का निवेदन
August 1994
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Page Titles
पाप का प्राणहंता सौंदर्य भरा आकर्षण
प्रेम ही परमेश्वर है।
यमलोक का चित्रगुप्त हमारा अचेतन मन ही है
उपदेश एक ही सार्थक है, यदि हृदयंगम हो जाय
समस्याओं का कारण – मानवी दुर्बुद्धि
मजदूरी के पैसे (Kahani)
क्या मनुष्य ‘ब्रह्मा’ बन सकता है ?
देवर्षि की माया
अहंकार नहीं, स्वाभिमान ही वरेण्य
Quotation
तनिक उस पर विश्वास तो रखें!
अगली सदी नारी की होगी
मानसिक एवं आत्मिक बल (Kahani)
प्राणशक्ति संवर्धन हेतु ब्रह्मचर्य अनिवार्य
अंतःकरण ही वास्तविक भाग्य विधाता
भक्त की इच्छा भगवान ने कब पूरी नहीं की ?
विवेक का आश्रय लें-भटकाव से उबरें
सफलता की कसौटी क्या हो ?
विश्व संस्कृति का उद्गम केन्द्र रहा है भारतवर्ष
उदारता घाटे का नहीं, नफे का सौदा
मित्रों की संख्या (Kahani)
आस्तिकता का शास्त्र – आयुर्वेद
जितने दिन भी जियें, शान के साथ
उपासना फल क्यों नहीं देती ?
राम राज्य (Kahani)
ऐसे इतिहास को बदलना होगा
देश को हार से बचा लिया (Kahani)
“मातृ-वंदन”
मातृ-वंदन (Kavita)
शिष्य का निवेदन
गुरुदेव! तुम्हें हमने, मन में बसा लिया है (Kavita)
जल एक जीवन मूरि
आम और बाँस (Kahani)
विशेष लेख- - एक माँ की अंतः वेदना एवं अपेक्षा भरी गुहार
VigyapanSuchana
विशेष धारावाहिक लेखमाला-17 परमपूज्य गुरुदेव पं0 श्रीराम शर्मा आचार्य - जिनने सिखायी हमें खोज सद्गुरु की
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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