गुरुदेव! तुम्हें हमने, मन में बसा लिया है। एक शक्तिपीठ अंतरतम, को बना लिया ॥
तुम ही हो गायत्री माँ, तुम ही हमारे गुरुवर। तुम से अलग न दीखा, साक्षात् कोई ईश्वर॥ संपूर्ण समर्पण कर, जीवन सफल किया॥
अब तो तुम्हीं हृदय धन, यह चेतना तुम्हीं हो। चिन्तन चरित्र में तुम, सद्भावना तुम्हीं हो। व्यक्तित्व ही मिशनमय, कर आपने दिया है॥
तुमने हमें जनम भर, सद्ज्ञान ही सिखाया। मोड़ा अनीति पथ से, सद्मार्ग पर चलाया। आत्मा का ज्ञान देकर, अर्जुन बना लिया है।
छोटे से दीप का ही, हम है। प्रकाश-लेकिन। हम कर सकेंगे सबके अज्ञान का संघन तम॥ इसमें अखण्ड ज्योति का घी मिला लिया॥
देंगे संदेश गुरु का-जाएँगे, जहाँ भी हम। निष्ठा नहीं चुकेगी, होगी न आस्था कम॥ घर-घर भ्रमण करेंगे-बीड़ा, उठा लिया है।
पूछो जो घर कहाँ है-है शाँतिकुँज अपना। क्या दे गये पिता श्री-जगहित में सदा तपना। जिसने ग्रहण किया यह, जीवन वही जिया है॥
अब शक्ति भर करें, गुरुवर काम आपका ही। साफल्य जिंदगी का-यह, पूर्ति साधना की। अगले जन्म के हित भी-अमृत, यही पिया है॥
-भावुक शिष्य