तनिक उस पर विश्वास तो रखें!

August 1994

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जीवन में कई बार ऐसे घटनाक्रम घटित होते हैं, जिन्हें देखते हुए सहसा मुँह से निकल पड़ता है-”मारने वालो से बचाने वाला बड़ा है” उक्त प्रसंगों में अनेक बार ऐसे अवसर उपस्थित होते हैं, जिनमें व्यक्ति को मन जाना चाहिए था, पर हर बार वह बड़े अलौकिक ढंग से बच निकलता और बुद्धि को इसी निर्णय पर पहुँचने के लिए बाधित करता है कि जब परमसत्ता कृपालु हो, तो भला उसे कौन मार सकता है ?

घटना 1950 की है। कोरिया युद्ध में प्रतिरोध के लिए अमरीकी वायुसेना की सहायता माँगी गई, जिसके अंतर्गत अनेक विमान कोरिया भेजे गये । इन विमान चालकों में एक नौजवान चालक भी था उसका नाम मैथुसन था। वह अभी-अभी वायुसेना में लेफ्टिनेण्ट के पद पर नियुक्त हुआ था, अतः युद्ध का उसे कोई विशेष अनुभव नहीं था, पर उसमें साहस की कमी नहीं थी।

अन्य विमानों के साथ वह भी नित्यप्रति कोरिया के ऊपर गश्त लगाया करता । इसी क्रम में एक दिन वह चार सहयोगी विमानों के साथ उड़ा चला जा रहा था। मैथुसन का विमान शेष चारों से आगे चल रहा था। अभी वह जा ही रहा था कि अचानक उसकी दृष्टि च्याँग योंग हवाई अड्डे पर गई। वहाँ दो लड़ाकू विमान उड़ने की तैयारी में थे। उन्हें देखकर उसे यह समझते देर न लगी कि वे उन पर आक्रमण के लिए ही उद्यत हो रहे हैं। तुरंत उसके मन में विचार कौंधा-क्यों न उन्हें उड़ने से पूर्व ही नष्ट कर दिया जाय। यह विचार आते ही वह उसे क्रियान्वित करने के लिए ताने-बाने बुनने लगा, किंतु इस मध्य उससे एक चूक हो गई। वह यह भूल बैठा कि स्वयं भी शत्रु-सीमा के अंदर है और विपक्षी उसके लिए घात लगाये बैठे होंगे। यही असावधानी विपत्ति का कारण बनी।

अभी वह कुछ कर पाता, इसके पूर्व ही उसके विमान को एक तीव्र झटका लगा। मैथुसन अविलंब समझ गया कि वह शत्रु के चंगुल में फँस चुका है और झटका विरोधी पक्ष द्वारा दागे गये किसी गोले का परिणाम है। उसका अनुमान सही निकला। विमान उक्त झटके के साथ डगमगाने लगा। डगमाहट बंद हुई, तो उसने देखा विमान के दो टुकड़े हो गये हैं। उसका पिछला हिस्सा तेजील से नीचे की ओर गिरता चला जा रहा है, जबकि अगले भाग में वह अब भी सवार था और उड़ रहा था।

दृश्य देखकर पहले तो घबरा उठा, पर तुरंत ही स्वयं को सँभाला और परिस्थिति के अनुकूल किया। काकपिट से नीचे झाँक कर देखा। शत्रु खेमे में काफी सक्रियता थी। वह अब भी कुछ करना चाहता था, इसी निमित्त हवाई अड्डे के ऊपर चक्कर काट रहा था, पर इस असहाय स्थिति में वह क्या करें ? कुछ सोच नहीं पा रहा था तभी एक गोला कैबिन की दीवार से टकराया। वह एक ओर सरक गया। कुछ सँभला ही था कि दूसरे गोले ने जहाज के डैने को ध्वस्त कर दिया। इस आघात के साथ केबिन के दो टुकड़े हो गये। इसी बीच तीसरे गोले के प्रहार ने कक्ष को चूर्ण-विचूर्ण कर दिया।

मैथुसन द्रुतगति से नीचे गिरने लगा। उसका पैराशूट तोप के व्याघातों से जर्जर हो गया था, अतः प्राणरक्षा के लिए उसका भी उपयोग नहीं कर सका। जब वह जमीन से टकराया, तो कुछ समय के लिए संज्ञानशून्य स्थिति में पड़ा रहा, किंतु जल्द ही उसे होश आ गया। भागने के लिए उठा, तो उस पर गोलियों की बौछार होने लगी। मैथुनसन सामने पड़े टूटे विमान के पीछे छिप गया। शत्रु उसकी ओर बढ़े आ रहे थे। मृत्यु एक बार फिर सामने खड़ी थी। वह लगभग हताश हो चुका था, तभी न जाने कैसे नष्ट विमान में अचानक विस्फोट हुआ। आग का गोला देख विपक्षी पीछे भागे। इसी समय मैथुन को भी भागने का मौका मिल गया।

वह बेतहाशा भागा चला जा रहा था, शत्रु सैनिक भी उसका लगातार पीछा कर रहे थे। अंततः बचने का कोई उपाय न देख, वह एक जंगली दलदल में घुस गया और पीठ के बल लेटा रहा। मौत फिर सिर के ऊपर मँडराने लगी। गोलियाँ शरीर के कुछ ही ऊपर से गुजर रही थीं और कभी भी उसमें धँस कर उसे प्राणहीन बना सकती थी।

आकास्मात् सब कुछ शाँत हो गया। पहले तो मैथुसन ने इसे शत्रु दल की कोई चाल समझी और स्वयं भी निश्चेष्ट पड़ा रहा। जब देर तक कोई आहट न हुई, तो वह उठ बैठा और शत्रुओं की टोह लेने लगा। कुछ ही देर में उसे सिर के ऊपर एक अमरीकी हैलिकाप्टर चक्कर काटता नजर आया। मैथुन खुशी से झूम उठा। जल्दी से दलदल से बाहर निकला और हाथ हिलाकर उसे इशारा करने लगा। हैलिकाप्टर तुरंत नीचे उतरा, मैथुसन उसमें बैठा और फिर उसे सुरक्षित मौत के मुँह से निकाल ले गया।

बाद में जब वह साथियों से मिला, तो वे यही कहते पाये गये कि ईश्वरीय अनुग्रह के बिना मैथुसन का बच पाना असंभव था। व्यक्ति जब अनेक बार मौत का सामना करके सुरक्षित बच गया हो, तो इसे उसकी अहैतुकी कृपा के अतिरिक्त और कहा क्या कहा जाय।


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