राम राज्य श्रेष्ठ सामाजिक व्यवस्था का एक आदर्श माना जाता है। उसका आधार भी यही पारिवारिक भाव था। श्री राम लक्ष्मण बन को गये, तो भाई भरत उनके ट्रस्टी के रूप में नंदी ग्राम में रहे। सारी अयोध्या इसे परिवार की ही घटना मानती रही तथा नागरिक गण अपनी जप, तप, साधना में उसी मनोयोग से लगे रहे, जिस भाव से भारत जी लगे थे। उस पृष्ठभूमि पर ही राम राज्य का भवन खड़ा किया गया था।
श्रीराम वन में मीलों के बीच रहे, बानर-भालुओं के साथ, उन्होंने उन सबके साथ परिवार का ही भाव बनाये रखा। सीता जी को जब लंका से मुक्त करके लाया गया, तो विभीषण उन्हें राजकीय ढँग से डोली में पर्दे में ला रहे थे। तब भगवान् श्रीराम ने कहा-”यह सब बालक अपनी माँ के दर्शन करने को आतुर हैं। सीता जी को पैदल इनके बीच से लाया जाय, ताकि इनके स्नेहभाव का पोषण हो सके।”
जब श्री राम अयोध्या लौटे तो साथ आये बानरों का परिचय उन्होंने अपने परिजनों के ही ढंग से दिया। उन्हें ‘भरतहुँ ते मोहि अधिक पियारे” कहकर पारिवारिकता का बोध सबको कराया।
राज्य सिंहासन पर बैठते ही उन्होंने मंत्रियों, ऋषियों, विचारकों तथा नागरिकों के बीच पहली घोषणा पारिवारिक स्तर पर ही की। जिन्हें पारिवारिक अधिकार देते हुए कहा-
“जो कछु अनुचित भाखहुँ भाई। तौ बरजेहु मोहि भय बिसराई॥
ऐसे स्नेहसिक्त पारिवारिक भाव ने ही समाज व्यवस्था को उसके स्तर तक पहुँचा दिया कि आज तक विश्व भर में राम राज्य श्रेष्ठतम व्यवस्था का पर्याय बना हुआ है। विश्व में और भी जहाँ आदर्श स्थापित हुए, हैं वहाँ पारिवारिक भावना ही मूल में कार्य करती रही है।